Table of Contents
राइज़ोबियम कल्चर (Rhizobium Culture): खेती में दिनों-दिन जिस रफ़्तार से केमिकल युक्त खाद (Chemical Fertilizer) और कीटनाशकों (Pesticides) का इस्तेमाल किया जा रहा है। उससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य (Environment And Human Health) दोनों का संकट गहराता जा रहा है। साथ ही मिट्टी की उर्वरता (Soil Fertility) कम होने से लंबे समय में फसल उत्पादन पर भी इसका असर दिख रहा है। ऐसे में आज के समय में बायो फ़र्टिलाइज़र (Biofertilizer) की ज़रूरत बहुत बढ़ गयी है।
जैव उर्वरक क्या हैं? (What Is Biofertilizer?)
बायो फ़र्टिलाइज़र एक जीवाणु खाद है। इसमें लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु होते हैं, जो वायुमंडल में पहले से मौजूद नाइट्रोजन को अवशोषित कर और मिट्टी में मौजूद फॉस्फोरस को पानी में घुलनशील बनाकर पौधों को देते हैं। इससे पौधो की नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की ज़रूरतों को पूरा किया जा सकता है। ये जैव उर्वरकों यानी बायो फ़र्टिलाइज़र मानव स्वास्थ, पर्यावरण और खेत की मिट्टी की उर्वरता के लिए भी लाभकारी होते हैं।
जैव उर्वरक राइज़ोबियम कल्चर (Biofertilizer Rhizobium Culture)
ऐसे में जितना हो सके किसानों को प्राकृतिक तरीके से खेती की कोशिश करनी चाहिए और इसमें जैव उर्वरक सहायक हैं। बात अगर दलहनी फसलों की करें तो इससे न सिर्फ़ अच्छा मुनाफ़ा होता है, बल्कि इससे पशुओं को हरा चारा और मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है। इसलिए इसके उत्पादन पर अधिक ज़ोर दिया जाता है। ऐसे में अगर प्राकृतिक तरीके से पौधों को नाइट्रोजन मिलता रहे, तो न सिर्फ़ उनका अच्छा विकास होगा, बल्कि किसानों को अलग से नाइट्रोजन डालने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
इसके लिए कृषि विशेषज्ञ किसानों को जैव उर्वरक इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। आज इस लेख में हम आपको नाइट्रोजन की पूर्ति करने वाले एक जैव उर्वरक राइजोबियम कल्चर के बारे में बताने जा रहे हैं। दलहनी फसलों के लिए राइज़ोबियम कल्चर के इस्तेमाल पर किसान ऑफ़ इंडिया ने मध्य प्रदेश के सागर स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र की कृषि वैज्ञानिक डॉ. ममता सिंह से ख़ास बातचीत की।
डॉ. ममता सिंह बताती हैं कि अब इंटीग्रेटेड न्यूट्रिएंट मैनेजमेंट और जैविक खेती पर ज़ोर देने की ज़रूरत है। खेत की मिट्टी की सेहत सुधारने वाले जैव उर्वरकों यानी बायो फ़र्टिलाइज़र के इस्तेमाल पर ज़ोर देना होगा।

क्या है राइज़ोबियम कल्चर? (What Is Rhizobium Culture)
राइज़ोबियम कल्चर एक जैविक उर्वरक है, जिसका इस्तेमाल बीजों के उपचार के लिए किया जाता है। कृषि पर हुए रिसर्च में ये पाया गया कि राइज़ोबियम कल्चर का इस्तेमाल करने से अनाज, दलहन, तिलहन, चारा, सब्जी, नकदी सहित अन्य फसलों पर अच्छा असर होता है। इसके इस्तेमाल से फसलों को कीट-रोगों से सुरक्षा मिलती है। बीजों का अंकुरण और पौधों का विकास अच्छा होता है और फसल उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है। दलहनी फसलों में राइज़ोबियम कल्चर इस्तेमाल करने पर बहुत सकारात्मक बदलाव देखे जा रहे हैं।
राइज़ोबियम एक तरह का जीवाणु है, जो पौधों की जड़ों की गांठों में अंदर जाल बनाकर एक छेद के अंदर रहता है। अपने पोषण के लिए ज़रूरी तत्व ये पौधों से ही लेता है और बदले में पौधों को वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन उपलब्ध कराता है। इससे बाहरी रूप से नाइट्रोजन देने की ज़रूरत नहीं पड़ती है।
जैव उर्वरक के प्रकार और महत्व
दलहनी फसलें अलग-अलग तरह की होती हैं जैसे-चना, मटर, मसूर, मूंग, उड़द, अरहर आदि। इसके अलावा सोयाबीन, मूंगफली, अलसी, मेथी, सेंजी, बरसीम, लूर्सन, लोबिया आदि भी इसी कैटेगरी में आती हैं। चूंकि फसलें अलग हैं, इसलिए जीवाणुओं की अलग-अलग किस्मों का इस्तेमाल इसके लिए किया जाता है। वैज्ञानिकों ने हर फसल के लिए इसकी अलग प्रजाति विकसित की है।
जैव उर्वरक राइज़ोबियम कल्चर, एजेक्टोबैक्टर के इस्तेमाल से 30 से 40 किलो ग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर फसलों को मिल जाती है। इससे फसलों की उत्पादन क्षमता में भी लगभग 10 से 20 फ़ीसदी बढ़ोत्तरी देखी गई है।
इसी तरह फॉस्फो बैक्टीरिया और माइकोराइजा जैव उर्वरक के इस्तेमाल से खेतों में 20 से 30 फ़ीसदी फ़ॉस्फ़ोरस की मात्रा बढ़ सकती है। इन बायो फ़र्टिलाइज़र के इस्तेमाल से एक ओर किसान की उत्पादन लागत घटती है तो वहीं उनकी खेतों की मृदा संरचना भी बेहतर होती है।

दलहनी फसलों के लिए राइज़ोबियम कल्चर (Use Of Rhizobium Culture For Pulse Crops)
डॉ. ममता सिंह ने बताया कि दलहनी फसलों में नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए बायो फ़र्टिलाइज़र राइज़ोबियम कल्चर का इस्तेमाल बीजों के उपचार और मृदा उपचार के रुप में किया जाता है। खेतों में बीजों की बुवाई के बाद राइज़ोबियम के जीवाणु पौधों के जड़ों में प्रवेश करके छोटी-छोटी गांठें बना लेते हैं। इन गांठों में जीवाणु अपनी सख्यां बढ़ाते हैं। फिर प्राकृतिक रूप से मौजूद नाइट्रोजन को वायुमंडल से शोषित करके, उसे पोषक तत्वों में परिवर्तित कर, पौधों को उपलब्ध कराते हैं।
राइज़ोबियम कल्चर दलहनी फसलों की जड़ों में गांठे बनाता है। इससे ज़मीन में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होता है। राइज़ोबियम दलहनी फसलों में नाइट्रोजन की मात्रा को 70 प्रतिशत तक पूरा करता है। इसका इस्तेमाल दहलनी फसलों जैसे अरहर, चना, मूंग, उड़द, मटर, मसूर,सोयाबीन, मूंगफली व सेम जैसी कई फसलों में किया जाता है।
कैसे करें राइज़ोबियम कल्चर का इस्तेमाल? (How To Use Rhizobium Culture?)
राइज़ोबियम कल्चर दो तरह के होते हैं। पहला पाउ़डर (200 ग्राम का पैकेट) और दूसरा तरल रूप में (1 लीटर की बोतल)। वैसे तो दोनों ही रूप में इस उर्वरक का इस्तेमाल फ़ायदेमंद होता है, लेकिन तरल रूप में जीवाणु ठंडे स्थान में ज़्यादा समय तक जीवित रह सकते हैं। पाउडर रूप में अगर सही रख-रखाव न किया जाए, तो वो जल्दी मरने लगते हैं।
अगर आप पाउडर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो एक एकड़ फसल के बीजोपचार के लिए 5 पैकेट की ज़रूरत होगी, जबकि तरल रूप में इस्तेमाल करने पर एक बोतल एक एकड़ के लिए काफ़ी है।

राइज़ोबियम जीवाणु (Rhizobium Bacteria) का इस्तेमाल बीजोपचार और मिट्टी में जुताई के समय किया जाता है।
बीजोपचार: बीज को अच्छी तरह से साफ़ करके एक बर्तन में रखें और तरल उर्वरक को इस पर डालकर अच्छी तरह से मिलाएं। अगर आप पाउडर रूप में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं, तो एक हेक्टेयर के लिए पहले एक लीटर पानी में 60 ग्राम गुड़ को पिघला कर घोल बनाएं और ठंडा होने पर इसमें 3 पैकेट राइज़ोबियम कल्चर मिलाएं। इसे धीरे-धीरे लकड़ी से हिलाते रहें। फिर बीजों पर इस घोल को इस तरह से छिड़कें की सभी बीजों पर ये अच्छी तरह से चिपक जाए और फिर बीजों को छाया में सुखा लें ताकि चिपचिपाहट कम हो जाए। उसके बाद बुवाई करें।
इसे मिट्टी में भी मिलाया जा सकता है। इसके लिए तरल या पाउडर को अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाएं और जुताई के समय इसे मिट्टी में मिला दें। ऐसा करने से इसकी उपयोग क्षमता बढ़ जाती है और उत्पादन भी अच्छा रहता है।
राइज़ोबियम कल्चर: इन बातों का रखें ध्यान (Key Points For Rhizobium Culture)
- बाज़ार से राइज़ोबियम कल्चर खरीदते समय पैकेट पर फसल का नाम, उपयोग का तरीका और तरीख ज़रूर पढ़ें।
- कृषि विशेषज्ञ की सलाह और बीजों की मात्रा के अनुसार ही राइज़ोबियम कल्चर का इस्तेमाल करना फ़ायदेमंद होता है।
- हर दलहन को उसके लिए बने विशेष कल्चर से ही उपचारित करना चाहिए। दूसरे कल्चर का इस्तेमाल करने से जड़ों में गांठें नहीं बनेगी और फसल को इसका फ़ायदा नहीं मिलेगा।
- राइज़ोबियम एक जीवित जीवाणु है। इसलिए इसे धूप से बचाएं और ठंडी जगह पर रखें।
- बीजोपचार के बाद बीज को सीधे धूप में न सुखाएं।
- बीजोपचार की सारी तैयारी करने के बाद आखिर में राइज़ोबियम का पैकेट खोलना चाहिए।
- बुवाई के दौरान बीजों को अच्छी तरह से मिट्टी में ढका होना चाहिए, वरना तेज़ धूप में जीवाणु मर सकते हैं।
राइज़ोबियम कल्चर के फ़ायदे (Benefits Of Rhizobium Culture)
- खेती की लागत में कमी आती है क्योंकि इसके बाद अलग से नाइट्रोजन के लिए यूरिया नहीं डालना पड़ता। इससे कम खर्च में अच्छा उत्पादन होता है।
- इसके इस्तेमाल से सोयाबीन की फसल में 10-25 प्रतिशत और चना, मूंग, उड़द, अरहर, लोबिया, मूंगफली की फसल में भी अच्छी बढ़ोतरी है। भूमि में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है और यह उपजाऊ बनी रहती है।
- दलहनों की जड़ों में मौजूद जीवाणुओं द्वारा एकत्रित नाइट्रोजन को अगली फसल ग्रहण करती हैं।
- राइज़ोबियम कल्चर से उपचारित बीज बोने से फसल उत्पादन में 8 से 15 प्रतिशत तक वृद्धी होती है।
- इसके इस्तेमाल से नाइट्रोजन खाद (जैसे यूरिया और डीएपी) में 25 प्रतिशत तक बचत होती है।
ये भी पढ़ें: जीवाणु खाद (Bio-Fertilizer) अपनाकर बदलें फ़सलों और खेतों की किस्मत
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- Cloning Technology Created History: ‘गंगा’ गाय के Ovum से पैदा हुई स्वस्थ बछड़ी, डेयरी क्षेत्र में बड़ी कामयाबीराष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (National Dairy Research Institute), करनाल के वैज्ञानिकों ने क्लोनिंग तकनीक (Cloning Technology Created History) के जरिए एक बड़ी सफलता पाई है। देश की पहली क्लोन गिर गाय ‘गंगा’ (Country’s first cloned Gir cow ‘Ganga’) के अंडाणुओं (Ovum) से एक स्वस्थ बछड़ी का जन्म हुआ है।
- Maize Cultivation: मक्के की खेती का उन्नत तरीक़ा क्या है, जानिए प्रगतिशील किसान ब्रजेश कुमार सेप्रगतिशील किसान ब्रजेश कुमार मक्के की खेती (Maize cultivation) में उन्नत तकनीकों से उच्च उत्पादन ले रहे हैं और आलू बीज उत्पादन में भी सराहे गए हैं।
- India Is Becoming A Global Leader In Green Energy: भारत ने स्वच्छ ऊर्जा में 5 साल के टारगेट को वक्त से पहले किया पूराहरित ऊर्जा (Green Energy) के क्षेत्र में भी एक ग्लोबल लीडर (Global Leader) की भूमिका निभा रहा है। जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण (Climate change and pollution) की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत ने स्वच्छ ऊर्जा (Clean Energy) को अपनी प्राथमिकता बनाया है और इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
- धान से दाल तक, खेत से बाज़ार तक: जानिए कैसे प्रगतिशील किसान चरन सिंह ने संकर धान से बदली अपनी किस्मतउत्तर प्रदेश कानपुर देहात के गांव औरंगाबाद, पोस्ट भेवान के प्रगतिशील किसान चरन सिंह ने (Progressive farmer Charan Singh changed his fortunes), जो पिछले 20 सालों से खेती कर रहे हैं और आज न सिर्फ अपने 4 एकड़ खेत से अच्छी आमदनी कमा रहे हैं, बल्कि दूसरे किसानों के लिए भी मिसाल बन गए हैं।
- रासायनिक खेती छोड़ सुषमा चौहान ने अपनाई प्राकृतिक खेती, शिमला में बनाई अपनी ख़ास पहचानप्राकृतिक खेती (Natural farming) से हिमाचल की सुषमा चौहान ने फल उत्पादन में पाया शानदार सुधार और ख़र्च घटाकर मुनाफ़ा बढ़ाया।
- Beekeeping: कैसे सफल व्यवसाय बन सकता है मधुमक्खी पालन? जानिए, प्रोफेसर डॉ. मनोज कुमार जाट सेमधुमक्खी पालन (Beekeeping) को सफल व्यवसाय में बदलने की जानकारी दे रहे हैं डॉ. मनोज कुमार जाट, जानिए शहद उत्पादन और वैज्ञानिक तकनीकें।
- PM Dhan-Dhanya Krishi Yojana: प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना है किसानों के लिए ऐतिहासिक कदम,100 चुनिंदा ज़िलों में होगी शुरूप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की अध्यक्षता में कैबिनेट ने ‘प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना’ (PM Dhan-Dhanya Krishi Yojana) को मंजूरी दे दी है। ये योजना देश के 100 चुनिंदा जिलों में शुरू की जाएगी
- New Initiative Of NABARD: GRIP, CoLab और Whatsapp चैनल से ग्रामीण भारत को मिलेगी बड़ी ताकत!नाबार्ड (NABARD) ने Graduated Rural Income Generation Programme (GRIP) की शुरुआत की है, जिसका मकसद ग्रामीण गरीबों की आय बढ़ाना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का 97वां स्थापना दिवस: कृषि विकास की नई उपलब्धियों का उत्सवभारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का 97वां स्थापना दिवस (97th Foundation Day of ICAR) नई तकनीकों, रिकॉर्ड उत्पादन और किसानों के लिए नवाचारों का जश्न है।
- CARI-Nirbheek: देसी मुर्गी पालन में क्रांति, किसानों की आय दोगुनी करने वाला आया ‘Super Chicken’!ICAR-Central Avian Research Institute (CARI), बरेली ने ‘सीएआरआई-निर्भीक’ (CARI-Nirbheek ) नाम की एक शानदार देसी मुर्गी की प्रजाति विकसित की है, जो ग्रामीण और छोटे किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है।
- Fake And Substandard Fertilizers : नकली और घटिया खाद के धोखे को रोकने के लिए केंद्र सरकार का बड़ा कदम, अब होगी सख्त कार्रवाईकेंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान (Union Agriculture and Farmers Welfare Minister Shivraj Singh Chouhan) ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर नकली और घटिया गुणवत्ता वाली खाद (Fake and poor quality fertilizers) की बिक्री पर तुरंत सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।
- The Poultry Expo 2025 का इंडिया एक्सपो मार्ट, ग्रेटर नोएडा में 21 से 23 अगस्त तक होने जा रहा है आयोजनThe Poultry Expo 2025 ग्रेटर नोएडा में होगा भारत का सबसे बड़ा पोल्ट्री एक्सपो, जहां इनोवेशन, नेटवर्किंग और मार्केट की अपार संभावनाएं मिलेंगी।
- World Youth Skills Day: देश के युवा आधुनिक कृषि तकनीक, जैविक खेती के साथ कृषि क्रांति में भर रहे नई उड़ान15 जुलाई, विश्व युवा कौशल दिवस (World Youth Skills Day) के अवसर पर आइए जानते हैं कि कैसे देश के युवा आधुनिक कृषि तकनीक, जैविक खेती, कृषि-उद्यमिता (Agripreneurship) और फूड प्रोसेसिंग (Food Processing सुनहरा भविष्य बना रहे हैं।
- Ornamental Fish Rearing: सजावटी मछली पालन है फायदेमंद शौक के साथ शानदार बिज़नेस भीसजावटी मछली पालन (Ornamental Fish Rearing) न सिर्फ एक अच्छा शौक है, बल्कि एक फ़ायदेमंद बिज़नेस (Fish Farming) भी बन सकता है। अगर आपको मछलियों से प्यार है और आप कुछ अलग करना चाहते हैं, तो ये आर्टिकल आपके लिए ही है।
- Bio Mustard farming: सरसों की जैविक खेती को अपनाकर चुनें सालों-साल ज़्यादा उपज पाने का रास्तासरसों की जैविक खेती (Bio mustard farming) से कम लागत में अधिक मुनाफ़ा संभव है। नए शोध से साबित हुआ है कि जैविक तरीक़े से उपज को साल दर साल बढ़ाया जा सकता है।
- Google’s AI Revolution: भारतीय किसानों के लिए खुशख़बरी, AMED API नया डिजिटल साथीGoogle ने भारत के कृषि क्षेत्र को बदलने के लिए एक बड़ी पहल की है। इसके तहत AMED API (Agricultural Monitoring and Event Detection) और भारतीय भाषाओं व संस्कृति को समझने वाले एआई मॉडल्स (AI Models) लॉन्च किए गए हैं। यह न सिर्फ किसानों के लिए वरदान साबित होगा, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाएगा।
- भोपाल में रोज़गार मेला: शिवराज सिंह चौहान ने सौंपी युवाओं को नियुक्ति पत्र, बोले – विकसित भारत की दिशा में ऐतिहासिक कदमभोपाल में शिवराज सिंह चौहान ने रोज़गार मेला में 51,000 से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र सौंपे।
- CM योगी का ‘Green Gold’ विजन: Carbon Credits से उत्तर प्रदेश बनेगा अमीर,अयोध्या बनेगा ‘ग्रीन सिटी’योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) को देश का पहला ‘कार्बन क्रेडिट हब’ (Carbon Credits Hub) बनाने की ओर बड़ा कदम बढ़ाया है।
- बिहार का ‘मखाना’ अब Global Star: सुपरफूड मखाना बिहार के किसानों की आय में लगाएगा पंख, जानें कैसे HS कोड ने बदला गेममखाना और इससे बने उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अलग-अलग HS Code (Harmonized System Code) मिल गया है। ये निर्णय बिहार के किसानों, उद्यमियों और निर्यातकों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
- गन्ने की प्राकृतिक खेती के साथ ही प्रोसेसिंग से अच्छी कमाई कर रहे हैं प्रगतिशील किसान योगश कुमार, जानिए उनका सक्सेस मंत्रगन्ने की प्राकृतिक खेती के साथ ही प्रोसेसिंग कर इनोवेटिव किसान योगेश कुमार बना रहे हैं नए उत्पाद और कमा रहे हैं बेहतर मुनाफ़ा।