सरसों की खेती (Mustard Farming): सरसों रबी में उगाई जाने वाली प्रमुख तिलहन फसल है। इसकी खेती सिंचित और असिंचित यानी बारानी खेतों में संरक्षित नमी के ज़रिये की जाती है। देश के सरसों उत्पादन में राजस्थान का प्रमुख स्थान है। पश्चिमी क्षेत्र के राज्यों का देश के कुल सरसों उत्पादन में 29 प्रतिशत योगदान है। सरसों की औसत उपज काफ़ी कम यानी महज 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
अगर सरसों की खेती की उन्नत तकनीकें अपनायी जाएँ तो औसत पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर यानी दो से ढाई गुना ज़्यादा मिल जाती है। ये भी माना गया है कि असिंचित क्षेत्रों में सरसों की पैदावार 20 से 25 क्विंटल तक तथा सिंचित क्षेत्रों में 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है।
क्या है सरसों की खेती की उन्नत तकनीक?
- एक ही खेत में लगातार सरसों की फसल नहीं उगाना चाहिए।
- कीट प्रबन्धन: सरसों की खेती में कीटों का प्रकोप पूरे देश में पाया जाता है। सरसों की पैदावार को घटाने में कीटों की बड़ी भूमिका होती है। मेरठ स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के अनुसार, कीटों और बीमारियों से रबी की तिलहनी फसलों को सालाना 15-20 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचाता है। इससे किसान बहुत हतोत्साहित होते हैं। बेमौसम की बारिश से बढ़ने वाली नमी और धूप के कमी की वजह से सरसों की फसल में लगने वाले कीट तेज़ी से फैलते हैं। कभी-कभार ये कीट उग्र रूप धारण कर लेते हैं तथा फसलों को अत्याधिक हानि पहुँचाते हैं। इसीलिए सरसों या तिलहनी फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाना बेहद ज़रूरी है।
- फसल चक्र: खरपतवार के टिकाऊ उपचार में फसल चक्र अपनाने से बहुत फ़ायदा होता है। फसल चक्र का अधिक पैदावार प्राप्त करने, मिट्टी का उपजाऊपन बनाये रखने तथा बीमारियों और कीट से रोकथाम में भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। मूँग-सरसों, ग्वार-सरसों, बाजरा-सरसों जैसे एक वर्षीय फसल चक्र तथा बाजरा-सरसों-मूँग/ग्वार-सरसों का दो वर्षीय फसल चक्र में उपयोग करना बेहद लाभकारी साबित होता है। बारानी इलाकों में जहाँ सिर्फ़ रबी में फसल ली जाती हो वहाँ सरसों के बाद चना उगाया जा सकता है।
- सरसों की खेती के लिए उन्नत किस्मों का ही इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता और उत्पादकता बेहतर होती है।
सरसों की उन्नत किस्में | |||
किस्म | पकने की अवधि (दिन) | औसत उपज (क्विंटल/हेक्टेयर) | विशेषताएँ |
पूसा जय किसान | 125-130 | 18-20 | सफ़ेद रोली, उखटा और तुलासिता रोग रोधी, सिचिंत तथा असिचिंत (बारानी) खेतों के लिए उपयुक्त। |
आशीर्वाद | 125-130 | 16-18 | देरी से बुआई की जा सकती है। सिचिंत खेतों के लिए उपयुक्त। |
RH 30 | 130-135 | 18-20 | दाने मोटे होते हैं। मोयला का प्रकोप कम। सिचिंत और असिचिंत खेतों के लिए उपयुक्त। |
पूसा बोल्ड | 125-130 | 18-20 | दाने मोटे होते हैं। रोग कम लगते हैं। |
लक्ष्मी (RH 8812) | 135-140 | 20-22 | फलियाँ पकने पर चटकती नहीं। मोटा और काला दाना। |
- सरसों की खेती के साथ यदि किसान उन सावधानियों का ध्यान रखें जिससे उनके खेत में ही अगली फसल के लिए उन्नत किस्म के बीजों की पैदावार हो सके तो ये तरीका और फ़ायदेमन्द साबित होता है।
बीज उत्पादन
प्रगतिशील किसान कुछ सावधानियाँ रखकर सरसों का बीज अपने खेतों में ही पैदा कर सकते हैं। बीज उत्पादन के लिए ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिए, जिसमें पिछले साल सरसों की खेती नहीं की गयी हो। यहाँ तक कि खेत के चारों ओर 200 से 300 मीटर की दूरी तक सरसों की फसल नहीं होनी चाहिए। सरसों की खेती के लिए प्रमुख कृषि क्रियाएँ, फसल सुरक्षा, अवांछनीय पौधों को निकालना तथा उचित समय पर कटाई की जानी चाहिए।
फसल की कटाई के वक़्त खेत को चारों ओर से 10 मीटर क्षेत्र छोड़ते हुए बीज के लिए लाटा काटकर अलग से सुखाना चाहिए तथा दाना निकालकर उसे साफ़ करके ग्रेडिंग करना चाहिए। दाने में नमी 8-9 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। बीज को कीट और कवकनाशी से उपचारित कर लोहे के ड्रम या अच्छी किस्म के बोरों में भरकर सुरक्षित जगह पर भंडारित करना चाहिए। ऐसे बीज को किसान अगले साल बुआई के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
सरसों की फसल की कटाई और गहाई
सरसों की फसल में जब 75% फलियाँ सुनहरे रंग की हो जाए, तब फसल को काटकर, सुखाकर या मड़ाई करके बीज अलग कर लेना चाहिए। फसल अधिक पकने पर फलियों के चटकने की आशंका बढ़ जाती है। इसीलिए पौधों के पीले पड़ने और फलियाँ भूरी होने पर फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। लाटे को सूखाकर थैसर या डंडों से पीटकर दाने को अलग कर लिया जाता है। सरसों के बीज को अच्छी तरह सुखाकर ही भण्डारण करना चाहिए।
सरसों की उन्नत खेती के लिए मिट्टी और खेत की तैयारी
सरसों की खेती के लिए दोमट और बलुई मिट्टी सबसे बढ़िया होती है। इसे भुरभुरी होना चाहिए, क्योंकि ऐसी मिट्टी में ही सरसों के छोटे-छोटे बीजों का जमाव अच्छा होता है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए इसके बाद हैरो से एक क्रास जुताई और फिर कल्टीवेटर से जुताई करके पाटा लगाना चाहिए।
सरसों के बीज की बुआई
सरसों के लिए 4 से 5 किलो ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है। बारानी इलाकों में सरसों की बुआई 25 सितम्बर से 15 अक्टूबर तथा सिचिंत खेतों में 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच करनी चाहिए। फसल की बुआई पंक्तियों में करनी चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 50 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। सिचिंत क्षेत्रों में फसल की बुआई पलेवा देकर करनी चाहिए।
ये भी पढ़ें- Mustard Variety: सरसों की उन्नत किस्म से बढ़ाई पैदावार, जानिए बलवंत सिंह ने क्यों चुनी ये किस्म
सरसों की खेती के लिए खाद और उर्वरक
सरसों की फसल के लिए 8-10 टन गोबर की सड़ी हुई या कम्पोस्ट खाद को बुआई से कम से कम तीन से चार सप्ताह पूर्व खेत में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए। इसके बाद मिट्टी की जाँच रिपोर्ट के अनुसार सिचिंत फसल के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर के हिसाब बुआई के समय कूडों में, 87 किलोग्राम DAP (डाइ अमोनियम फॉस्फेट) और 32 किलोग्राम यूरिया या 65 किलोग्राम यूरिया और 250 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट खेत में डालना चाहिए।
पहली सिंचाई के समय 30 किलोग्राम नाइट्रोजन और 65 किलोग्राम यूरिया का प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा जब फसल 40 दिन की हो 40 किलोग्राम गन्धक का चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। असिचिंत क्षेत्र में 40-40 किलोग्राम नाइट्रोजन और फॉस्फोरस को बुआई के समय तथा 87 किलोग्राम DAP और 54 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए।
सरसों की खेती में सिंचाई
सरसों की खेती के लिए 5 सिंचाई पर्याप्त होती है। इसे फव्वारा विधि से करना चाहिए। पहली सिंचाई बुआई के समय, दूसरी शाखाएँ बनते वक़्त यानी बुआई के 25-30 दिन बाद, तीसरी फूल निकलने की शुरुआत होने या 45-50 दिन बाद, चौथी सिंचाई फलियाँ बनते समय या 70-80 दिन बाद और आख़िरी दाना पकते समय या बुआई के 100-110 दिन बाद करनी चाहिए।
सरसों की फसल की निराई-गुहाई
सरसों की फसल को गोयला, चील, मोरया, प्याजी जैसे खरपतवार नुकसान पहुँचाते हैं। इनके नियत्रंण के लिए बुआई के 25 से 30 दिन बाद करसी से गुड़ाई करनी चाहिए। दूसरी गुड़ाई 50 दिन बाद करनी चाहिए। खरपतवारों की रोकथाम के लिए पेंडीमथालिन की 3 लीटर मात्रा बुआई के 2 दिनों तक इस्तेमाल करना चाहिए। सरसों की फसल में आग्या (ओरोबंकी) नामक परजीवी खरपतवार भी पौधों की जड़ों पर उगकर अपना भोजन प्राप्त करता है। इससे फसल के पौधे कमज़ोर रह जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए इसके पौधों को बीज बनने से पहले ही उखाड़ देना चाहिए।
सरसों की फसल में एकीकृत कीट नियंत्रण
1. चंपा या माहूं या अल: इस कीट के वयस्क और शिशु, पौधों के विभिन्न हिस्सों से रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुँचाते हैं। इससे पौधों के विभिन्न भाग चिपचिपे हो जाते हैं। उन पर काला कवक पनप जाता है। इससे पौधे कमज़ोर हो जाते हैं तथा पैदावार घट जाती है। इस कीट का प्रकोप दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह से मार्च तक बना रहता है।
इसकी रोकथाम के लिए फसल की बुआई सही समय पर करें तो कीट का प्रकोप कम होता है। राई प्रजाति की किस्मों पर चंपा का प्रकोप कम होता है।
दिसम्बर के अन्तिम और जनवरी के पहले हफ़्ते में कीटग्रस्त पौधों के विभिन्न भागों को खेत से बाहर निकालकर जला देना चाहिए। परभक्षी कीट क्राइसोपरला कार्निया को 50,000 की संख्या में प्रति हेक्टेयर की दर से पूरे खेत में छोड़ना भी बेहद फ़ायदेमन्द उपाय है। इसके अलावा डाइमिथोस्ट 50 EC की 250 मिलीलीटर मात्रा को 400-500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। मेटासिस्टॉक्स 25 EC की 250 मिलीलीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से भी इस कीट से फसल बचाव हो जाता है।
2. आरा मक्खी: इस कीट की पूर्ण विकसित सूंडी (ग्रब) 15-20 मिलीमीटर लम्बी होती है। इसका रंग हरा-सिलेटी और सिर काला होता है। इस कीट की सूंडी पौधों के उगते ही उनके पत्तों को काटकर खा जाती है। कभी-कभी अत्यधिक आक्रमण के समय सुंडियाँ तने की छाल तक भी खा जाती हैं। इसका प्रकोप अक्टूबर-नवम्बर में होता है।
इसकी रोकथाम के लिए गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें। सूंडी को पकड़कर नष्ट कर दें। फसल की सिंचाई करने पर कीट की सूंडी डूबकर मर जाती है। एक लीटर मेलाथियान 50 EC को 150-200 ली. पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। पहला छिड़काव अक्टूबर में तथा दूसरा छिड़काव मार्च-अप्रैल में करें।
3. बालों वाली सुंडी: इस कीट का वयस्क लाल-भूरे रंग का होता है। पूर्ण विकसित सूंडी हरे-पीले रंग की होती है। इसका शरीर रोयों से ढका रहता है। यह सूंडी फसलों को अधिक हानि पहुँचाती है। यह पौधों की मुलायम पत्तियों, शाखाओं और तने को काटकर उन्हें नुकसान पहुँचाती है।
इसकी रोकथाम के लिए फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें। अंडों को खेत से बाहर निकालकर नष्ट कर दें। अधिक प्रकोप होने पर 250 मिलीलीटर डाइक्लोरवास को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। मेलाथियान 50 EC 400 मिलीलीटर को 700-800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करें।
4. सुरंग बनाने वाली कीट या लीफ माइनर: इस कीट का वयस्क भूरे रंग का और 1.5-2.0 मिमीमीटर लम्बा होता है। इसकी सूंडी का रंग पीला होता है। यह सूंडी पत्ती के अन्दर टेढ़ी-मेढ़ी सुरंग बनाकर उसके हरे पदार्थ को खा जाती है।
इस कारण पत्ती की भोजन बनाने की प्रक्रिया कम हो जाती है। फसल की पैदावार पर इसका बुरा असर पड़ता है। उग्र रूप धारण करके ये सुंडियाँ पूरी पत्तियों को नुकसान पहुँचाती हैं। फसल पर इनका हमला जनवरी से मार्च के दौरान होता है।
लीफ़ माइनर (leaf miner) से बचाव के लिए फसल की समय पर बुआई करें। इससे कीट का प्रकोप कम होता है। फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें। कीटग्रस्त पत्तियों को तोड़कर उन्हें खेत से बाहर निकाल दें। डाइमिथोएट 50 EC की 250 मिलीलीटर या मेटासिस्टॉक्स 25 EC की 250 मिलीलीटर का 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
5. चितकबरा कीट या पेन्टेड बग: यह कीट काले रंग का होता है। इस पर नारंगी रंग के धब्बे होते हैं। इसके शिशु तथा वयस्क दोनों ही पत्तियों, टहनियों तथा फलियों का रस चूसते हैं। इसके अलावा फसल कटाई के बाद भी हानि पहुँचाते हैं। इस कीट के आक्रमण के कारण दानों में तेल की मात्रा कम हो जाती है और उनका वजन घट जाता है। इसका प्रकोप फरवरी से मार्च तक रहता है।
इसकी रोकथाम के लिए फसल की बुआई तब करें, जब दिन का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस के आसपास हो। कीट के अंडों को नष्ट करके उन्हें खेत से बाहर निकाल दें। बीज को 5 ग्राम इमिडाक्लोरोप्रिड 70 WS प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। मेलाथियान 50 EC की 400 मिलीलीटर मात्रा को 700-800 लीटर पानी में मिलाकर इसका प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
6. मोयला: यह कीट हरे, काले और पीले रंग का होता है तथा पौधों की पत्तियों, शाखाओं, फूलों और फलियों का रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुँचता है। इसका प्रकोप आमतौर पर फसल में फूल आने के बाद और हवा में नमी बढ़ने के मौसम में होता है।
इसकी रोकथाम के लिए फॉस्फोमीडोन 85WC की 250 मिलीलीटर या इपीडाक्लोराप्रिड की 500 मिलीलीटर या मैलाथियोन 50EC की 1.25 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर एक सप्ताह के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए।
7. दीमक: दीमक की रोकथाम के लिए अन्तिम जुताई के समय क्लोरोपाइरीफोस 4 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण की 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाना चाहिए।
खड़ी फसल में यदि दीमक का प्रकोप दिखायी दे तो सिंचाई के साथ 1 लीटर क्लोरोपाइरीफोस प्रति हेक्टेयर को पानी के साथ देना चाहिए।
8. सफ़ेद रोली: इसके प्रकोप के कारण पत्तियों, तनों, फूलों और फलियों पर सफ़ेद फफोले पैदा हो जाते हैं। इस रोग से ग्रसित पौधों पर फलियाँ और बीज नहीं बनते।
इसकी रोकथाम के लिए 6 ग्राम एपरोन प्रति किलो दर से बीजोपचार करके ही बुआई करनी चाहिए। खड़ी फसल पर मेटालेक्जिल 8 प्रतिशत और मेन्कोजेब की 2.5 ग्राम मात्रा का प्रतिलीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव या बुरकाव करना चाहिए।
9. छाछ्या: इसके प्रकोप से पूरा पौधा सफ़ेद पाउडर जैसे पदार्थ से ढक जाता है। उसकी पत्तियाँ झड़ने लगती हैं और फलियों में दाने सिकुड़े हुए बनते हैं।
इसके नियंत्रण के लिए डायनोकेप या केराथेन की 1 किलोग्राम मात्रा या 20 किलोग्राम गन्धक का चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
10. तुलासिता: इसके प्रकोप के कारण पत्तियों के नीचे रूई के समान सफ़ेद फफूँद दिखाई देती हैं। पत्तियों के ऊपर हल्के भूरे बादामी रंग के धब्बे बन जाते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए फसल पर मेटालेविजल 8 प्रतिशत + मैंकोजेब की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। तुलासिता के नियंत्रण के लिए केराथेन की 1 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर भी छिड़काव किया जा सकता है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- Mini Nandini Krishak Samridhi Yojana: उत्तर प्रदेश के डेयरी किसानों के लिए मिनी नंदिनी योजना, पाएं 11.80 लाख तक की सब्सिडी‘नंद बाबा दुग्ध मिशन’ के तहत चलाई जा रही ‘मिनी नंदिनी कृषि समृद्धि योजना’ ((Mini Nandini Krishak Samridhi Yojana) ) किसानों को आज़ाद बनने और डेयरी बिज़नेस शुरू करने का एक शानदार मौका दे रही है। इस स्कीम का सबसे आकर्षक पहलू ये है कि इसमें 11.80 लाख रुपये तक की सब्सिडी सरकार देगी।
- विदेश छोड़ गांव लौटे मोहन सिंह, प्राकृतिक खेती से कर रहे शानदार कमाईमोहन सिंह ने विदेश नौकरी छोड़ प्राकृतिक खेती अपनाई। कम खर्च, ज़्यादा उत्पादन और लाखों की आमदनी से बने प्रेरणा।
- Silk: भारत की विरासत का ‘Golden Fabric’ जो हज़ार साल से भी ज़्यादा पुराना,अर्थव्यवस्था का स्टाइलिश सपोर्ट सिस्टमभारत में रेशम (Silk) का इतिहास हज़ारों साल पुराना है। पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि रेशम का जन्म चीन में हुआ, लेकिन भारत ने इसे अपनाकर एक नई पहचान दी। कुछ विद्वान मानते हैं कि ऋग्वेद में ‘तृप’ नामक वस्त्र का जिक्र रेशमी वस्त्र ही था।
- Green Revolution In Uttar Pradesh: यूपी सरकार की Natural Farming योजना से बदलेगी किसानों की तकदीरराष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (National Mission on Natural Farming) की रिव्यू मीटिंग में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही (Agriculture Minister Surya Pratap Shahi) ने अधिकारियों को साफ निर्देश दिए कि योजनाओं को बेहतर और ज़मीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से उतारना काफी ज़रूरी है।
- बैलों से AI तक: भारतीय कृषि क्रांति की कहानी जो है हल से हार्वेस्टर तक, Agricultural Mechanization का सदियों लंबा सफ़र1960 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति (Green Revolution) ने न केवल भारत को खाद्यान्न (Food grain production) में आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि यही वो दौर था जहां से भारत में कृषि मशीनीकरण (Agricultural Mechanization) की वास्तविक शुरुआत हुई। उच्च उपज वाली किस्मों (HYV) के बीजों ने जहां उत्पादन बढ़ाया, वहीं उनकी कटाई, गहाई और सिंचाई के लिए मशीनों की ज़रूरत महसूस हुई।
- The Story of Golden Fibres: भारत की पश्मीना से लेकर शेख़ावटी ऊन ने दुनिया में बजाया अपना डंका,ऊन उत्पादन में भारत ने मारी बाजी!भारत ने ऊन उत्पादन (Wool Production) एक चमकता हुआ रत्न (The Story of Golden Fibres) है। वर्ष 2023-24 में भारत ने 33.69 मिलियन किलोग्राम (लगभग 3.37 करोड़ किलो) ऊन का उत्पादन करके एक नई उपलब्धि हासिल की है।
- मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के जितेन्द्र कुमार गौतम प्राकृतिक खेती से कमा रहे हैं बेहतर आमदनीप्राकृतिक खेती से सिवनी जिले के किसान जितेन्द्र ने मिट्टी की सेहत सुधारी, लागत घटाई और बेहतर आमदनी का नया रास्ता बनाया।
- भारत ने Egg Production में मारी बाज़ी, लेकिन 4 रुपये वाला अंडा या 30 रुपये वाला कौन सा बेस्ट?अंडे के नाम पर ठग न जाएं, यहां है पूरी गाइडभारत अंडा उत्पादन (Egg production) में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है (India is the third largest egg producer in the world)। चीन पहले नंबर पर है (दुनिया का 38 फीसदी उत्पादन), उसके बाद अमेरिका और फिर भारत का नंबर आता है।
- प्रकृति का सच्चा साथी: विजय सिंह, जिन्होंने YouTube देखकर बदली खेती की तस्वीर, बने Natural Farming के ‘गुरु’!विजय सिंह बताते हैं कि उन्होंने प्राकृतिक खेती (Natural Farming) की शुरुआत यूट्यूब (YouTube) पर वीडियो देखकर की। राजीव दीक्षित के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने इस पर अमल करना शुरू किया और नतीजे हैरान करने वाले थे।
- किसानों की सोयाबीन फसल को ‘ज़हरीली’ दवा ने जलाया,कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने किया औचक निरीक्षण, कंपनी पर भड़केप्रदेश के रायसेन जिले के छीरखेड़ा गांव (Chhirkheda village in Raisen district of Madhya Pradesh) खरपतवारनाशक दवा के नाम पर (Fake pesticides, fertilizers and seeds) कहर टूट पड़ा। खेतों में सोयाबीन की जगह अब सिर्फ जले हुए पौधों के ठूंठ और खरपतवार (plant stumps and weeds) नज़र आ रहे हैं। जहां एक कंपनी की दवा ने सैकड़ों किसानों की उम्मीदों को जड़ से जला दिया।
- हरियाणा के किसानों के लिए बड़ी राहत! भारी बारिश से हुए नुकसान का मुआवज़ा पाने का आख़िरी मौकाभारी बारिश से हुए फसल नुकसान को लेकर 31 अगस्त 2025 तक (Haryana farmers can claim for crop loss as govt-opens e-kshatipurti portal till 31st August 2025) प्रभावित किसान ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल के जरिए अपना मुआवज़ा दावा कर सकते हैं।
- Viksit Krishi Sankalp Abhiyan For Rabi Crop: कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों के लिए शुरू किए बड़े अभियान!शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि 15-16 सितंबर 2025 को नई दिल्ली में दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस होगी, जिसमें रबी फसल (Viksit Krishi Sankalp Abhiyan For Rabi Crop) की तैयारियों पर स्ट्रैटजी बनेगी।
- सत्या देवी ने रसायन खेती छोड़ प्राकृतिक खेती अपनाई, बनी क्षेत्र की मिसालहिमाचल की सत्या देवी ने प्राकृतिक खेती (Natural farming) से ख़र्च घटाकर मुनाफ़ा बढ़ाया और सेहत सुधारी, बन गईं क्षेत्र की प्रेरणा।
- Historic Decision Of Modi government: अब विदेशी कंपनियों का नहीं चलेगा रंग,किसानों ने जमकर किया समर्थनकिसान संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) सरकार के उस ठोस फैसले का स्वागत किया, जिसमें विदेशी कंपनियों को भारतीय कृषि और डेयरी क्षेत्र (Indian Agriculture and Dairy Sector) में घुसपैठ करने से (Historic Decision Of Modi government) रोक दिया गया।
- हिमाचल के किसान मनोज शर्मा ने प्राकृतिक खेती से मिट्टी और फ़सल में लाया सुधारप्राकृतिक खेती से हिमाचल के किसान मनोज शर्मा ने खर्च घटाकर आमदनी बढ़ाई और मिट्टी की सेहत में सुधार किया।
- अनियमित बारिश हो या सूखा-बाढ़ से फसलें तबाह, Digi-Claim से मिनटों में किसान भाई पाएं बीमा राशिपहले बीमा क्लेम (Insurance Claim) लेने का प्रोसेस इतनी कठिन था कि किसानों को महीनों तक चक्कर काटने पड़ते थे। अब इसका समाधान हो गया है, वो है Digi-Claim Digital Platform जिसके ज़रीये ने बीमा क्लेम का प्रोसेस को आसान, तेज और ट्रांसपेरेंट बना दिया है।
- Cow Dung से अब बनेगा Green Gold: गाय के गोबर चलेंगी गाड़ियां, यूपी सरकार का ख़ास प्लानएक्सपर्ट के मुताबिक, एक गाय के गोबर (Cow dung) से सालाना 225 लीटर पेट्रोल के बराबर मीथेन गैस (methane Gas ) बनाई जा सकती है। इसे प्रोसेस करके उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में Compressed Biogas (CBG) में बदला जाएगा, जो गाड़ियो को चलाने के काम आएगा।
- लाहौल के किसान तोग चंद ठाकुर की मेहनत से देश में पहली बार सफल हुई हींग की खेतीलाहौल के किसान तोग चंद ठाकुर ने देश में पहली बार हींग की खेती में सफलता पाई, आत्मनिर्भर भारत की ओर बड़ा कदम।
- समुद्री कछुओं को बचाने का बड़ा कदम: अब ट्रॉलरों में अनिवार्य होंगे Turtle Excluder Device, मछुआरों का होगा फायदादेश भर के मछुआरों को अपने ट्रॉलर जहाजों में Turtle Excluder Device (TED) लगाना अनिवार्य होगा। ये डिवाइस न सिर्फ मछलियों के शिकार को आसान बनाएगी, बल्कि गलती से जाल में फंसने वाले लुप्तप्राय समुद्री कछुओं (endangered sea turtles) को सुरक्षित बाहर निकालने में मदद करेगी।
- Testing of irrigation water: क्यों खेती की कमाई बढ़ाने के लिए ज़रूरी है सिंचाई के पानी की जाँच?सिंचाई के पानी की जाँच (Testing of irrigation water) से उसकी तासीर जानकर फ़सल का सही चयन करें, जिससे मिट्टी स्वस्थ रहे और खेती में बेहतर उत्पादन हो।