सरसों की खेती (Mustard Farming): सरसों रबी में उगाई जाने वाली प्रमुख तिलहन फसल है। इसकी खेती सिंचित और असिंचित यानी बारानी खेतों में संरक्षित नमी के ज़रिये की जाती है। देश के सरसों उत्पादन में राजस्थान का प्रमुख स्थान है। पश्चिमी क्षेत्र के राज्यों का देश के कुल सरसों उत्पादन में 29 प्रतिशत योगदान है। सरसों की औसत उपज काफ़ी कम यानी महज 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
अगर सरसों की खेती की उन्नत तकनीकें अपनायी जाएँ तो औसत पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर यानी दो से ढाई गुना ज़्यादा मिल जाती है। ये भी माना गया है कि असिंचित क्षेत्रों में सरसों की पैदावार 20 से 25 क्विंटल तक तथा सिंचित क्षेत्रों में 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है।
क्या है सरसों की खेती की उन्नत तकनीक?
- एक ही खेत में लगातार सरसों की फसल नहीं उगाना चाहिए।
- कीट प्रबन्धन: सरसों की खेती में कीटों का प्रकोप पूरे देश में पाया जाता है। सरसों की पैदावार को घटाने में कीटों की बड़ी भूमिका होती है। मेरठ स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के अनुसार, कीटों और बीमारियों से रबी की तिलहनी फसलों को सालाना 15-20 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचाता है। इससे किसान बहुत हतोत्साहित होते हैं। बेमौसम की बारिश से बढ़ने वाली नमी और धूप के कमी की वजह से सरसों की फसल में लगने वाले कीट तेज़ी से फैलते हैं। कभी-कभार ये कीट उग्र रूप धारण कर लेते हैं तथा फसलों को अत्याधिक हानि पहुँचाते हैं। इसीलिए सरसों या तिलहनी फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाना बेहद ज़रूरी है।
- फसल चक्र: खरपतवार के टिकाऊ उपचार में फसल चक्र अपनाने से बहुत फ़ायदा होता है। फसल चक्र का अधिक पैदावार प्राप्त करने, मिट्टी का उपजाऊपन बनाये रखने तथा बीमारियों और कीट से रोकथाम में भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। मूँग-सरसों, ग्वार-सरसों, बाजरा-सरसों जैसे एक वर्षीय फसल चक्र तथा बाजरा-सरसों-मूँग/ग्वार-सरसों का दो वर्षीय फसल चक्र में उपयोग करना बेहद लाभकारी साबित होता है। बारानी इलाकों में जहाँ सिर्फ़ रबी में फसल ली जाती हो वहाँ सरसों के बाद चना उगाया जा सकता है।
- सरसों की खेती के लिए उन्नत किस्मों का ही इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता और उत्पादकता बेहतर होती है।
सरसों की उन्नत किस्में | |||
किस्म | पकने की अवधि (दिन) | औसत उपज (क्विंटल/हेक्टेयर) | विशेषताएँ |
पूसा जय किसान | 125-130 | 18-20 | सफ़ेद रोली, उखटा और तुलासिता रोग रोधी, सिचिंत तथा असिचिंत (बारानी) खेतों के लिए उपयुक्त। |
आशीर्वाद | 125-130 | 16-18 | देरी से बुआई की जा सकती है। सिचिंत खेतों के लिए उपयुक्त। |
RH 30 | 130-135 | 18-20 | दाने मोटे होते हैं। मोयला का प्रकोप कम। सिचिंत और असिचिंत खेतों के लिए उपयुक्त। |
पूसा बोल्ड | 125-130 | 18-20 | दाने मोटे होते हैं। रोग कम लगते हैं। |
लक्ष्मी (RH 8812) | 135-140 | 20-22 | फलियाँ पकने पर चटकती नहीं। मोटा और काला दाना। |
- सरसों की खेती के साथ यदि किसान उन सावधानियों का ध्यान रखें जिससे उनके खेत में ही अगली फसल के लिए उन्नत किस्म के बीजों की पैदावार हो सके तो ये तरीका और फ़ायदेमन्द साबित होता है।
बीज उत्पादन
प्रगतिशील किसान कुछ सावधानियाँ रखकर सरसों का बीज अपने खेतों में ही पैदा कर सकते हैं। बीज उत्पादन के लिए ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिए, जिसमें पिछले साल सरसों की खेती नहीं की गयी हो। यहाँ तक कि खेत के चारों ओर 200 से 300 मीटर की दूरी तक सरसों की फसल नहीं होनी चाहिए। सरसों की खेती के लिए प्रमुख कृषि क्रियाएँ, फसल सुरक्षा, अवांछनीय पौधों को निकालना तथा उचित समय पर कटाई की जानी चाहिए।
फसल की कटाई के वक़्त खेत को चारों ओर से 10 मीटर क्षेत्र छोड़ते हुए बीज के लिए लाटा काटकर अलग से सुखाना चाहिए तथा दाना निकालकर उसे साफ़ करके ग्रेडिंग करना चाहिए। दाने में नमी 8-9 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। बीज को कीट और कवकनाशी से उपचारित कर लोहे के ड्रम या अच्छी किस्म के बोरों में भरकर सुरक्षित जगह पर भंडारित करना चाहिए। ऐसे बीज को किसान अगले साल बुआई के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
सरसों की फसल की कटाई और गहाई
सरसों की फसल में जब 75% फलियाँ सुनहरे रंग की हो जाए, तब फसल को काटकर, सुखाकर या मड़ाई करके बीज अलग कर लेना चाहिए। फसल अधिक पकने पर फलियों के चटकने की आशंका बढ़ जाती है। इसीलिए पौधों के पीले पड़ने और फलियाँ भूरी होने पर फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। लाटे को सूखाकर थैसर या डंडों से पीटकर दाने को अलग कर लिया जाता है। सरसों के बीज को अच्छी तरह सुखाकर ही भण्डारण करना चाहिए।
सरसों की उन्नत खेती के लिए मिट्टी और खेत की तैयारी
सरसों की खेती के लिए दोमट और बलुई मिट्टी सबसे बढ़िया होती है। इसे भुरभुरी होना चाहिए, क्योंकि ऐसी मिट्टी में ही सरसों के छोटे-छोटे बीजों का जमाव अच्छा होता है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए इसके बाद हैरो से एक क्रास जुताई और फिर कल्टीवेटर से जुताई करके पाटा लगाना चाहिए।
सरसों के बीज की बुआई
सरसों के लिए 4 से 5 किलो ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है। बारानी इलाकों में सरसों की बुआई 25 सितम्बर से 15 अक्टूबर तथा सिचिंत खेतों में 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच करनी चाहिए। फसल की बुआई पंक्तियों में करनी चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 50 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। सिचिंत क्षेत्रों में फसल की बुआई पलेवा देकर करनी चाहिए।
ये भी पढ़ें- Mustard Variety: सरसों की उन्नत किस्म से बढ़ाई पैदावार, जानिए बलवंत सिंह ने क्यों चुनी ये किस्म
सरसों की खेती के लिए खाद और उर्वरक
सरसों की फसल के लिए 8-10 टन गोबर की सड़ी हुई या कम्पोस्ट खाद को बुआई से कम से कम तीन से चार सप्ताह पूर्व खेत में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए। इसके बाद मिट्टी की जाँच रिपोर्ट के अनुसार सिचिंत फसल के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर के हिसाब बुआई के समय कूडों में, 87 किलोग्राम DAP (डाइ अमोनियम फॉस्फेट) और 32 किलोग्राम यूरिया या 65 किलोग्राम यूरिया और 250 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट खेत में डालना चाहिए।
पहली सिंचाई के समय 30 किलोग्राम नाइट्रोजन और 65 किलोग्राम यूरिया का प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा जब फसल 40 दिन की हो 40 किलोग्राम गन्धक का चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। असिचिंत क्षेत्र में 40-40 किलोग्राम नाइट्रोजन और फॉस्फोरस को बुआई के समय तथा 87 किलोग्राम DAP और 54 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए।
सरसों की खेती में सिंचाई
सरसों की खेती के लिए 5 सिंचाई पर्याप्त होती है। इसे फव्वारा विधि से करना चाहिए। पहली सिंचाई बुआई के समय, दूसरी शाखाएँ बनते वक़्त यानी बुआई के 25-30 दिन बाद, तीसरी फूल निकलने की शुरुआत होने या 45-50 दिन बाद, चौथी सिंचाई फलियाँ बनते समय या 70-80 दिन बाद और आख़िरी दाना पकते समय या बुआई के 100-110 दिन बाद करनी चाहिए।
सरसों की फसल की निराई-गुहाई
सरसों की फसल को गोयला, चील, मोरया, प्याजी जैसे खरपतवार नुकसान पहुँचाते हैं। इनके नियत्रंण के लिए बुआई के 25 से 30 दिन बाद करसी से गुड़ाई करनी चाहिए। दूसरी गुड़ाई 50 दिन बाद करनी चाहिए। खरपतवारों की रोकथाम के लिए पेंडीमथालिन की 3 लीटर मात्रा बुआई के 2 दिनों तक इस्तेमाल करना चाहिए। सरसों की फसल में आग्या (ओरोबंकी) नामक परजीवी खरपतवार भी पौधों की जड़ों पर उगकर अपना भोजन प्राप्त करता है। इससे फसल के पौधे कमज़ोर रह जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए इसके पौधों को बीज बनने से पहले ही उखाड़ देना चाहिए।
सरसों की फसल में एकीकृत कीट नियंत्रण
1. चंपा या माहूं या अल: इस कीट के वयस्क और शिशु, पौधों के विभिन्न हिस्सों से रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुँचाते हैं। इससे पौधों के विभिन्न भाग चिपचिपे हो जाते हैं। उन पर काला कवक पनप जाता है। इससे पौधे कमज़ोर हो जाते हैं तथा पैदावार घट जाती है। इस कीट का प्रकोप दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह से मार्च तक बना रहता है।
इसकी रोकथाम के लिए फसल की बुआई सही समय पर करें तो कीट का प्रकोप कम होता है। राई प्रजाति की किस्मों पर चंपा का प्रकोप कम होता है।
दिसम्बर के अन्तिम और जनवरी के पहले हफ़्ते में कीटग्रस्त पौधों के विभिन्न भागों को खेत से बाहर निकालकर जला देना चाहिए। परभक्षी कीट क्राइसोपरला कार्निया को 50,000 की संख्या में प्रति हेक्टेयर की दर से पूरे खेत में छोड़ना भी बेहद फ़ायदेमन्द उपाय है। इसके अलावा डाइमिथोस्ट 50 EC की 250 मिलीलीटर मात्रा को 400-500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। मेटासिस्टॉक्स 25 EC की 250 मिलीलीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से भी इस कीट से फसल बचाव हो जाता है।
2. आरा मक्खी: इस कीट की पूर्ण विकसित सूंडी (ग्रब) 15-20 मिलीमीटर लम्बी होती है। इसका रंग हरा-सिलेटी और सिर काला होता है। इस कीट की सूंडी पौधों के उगते ही उनके पत्तों को काटकर खा जाती है। कभी-कभी अत्यधिक आक्रमण के समय सुंडियाँ तने की छाल तक भी खा जाती हैं। इसका प्रकोप अक्टूबर-नवम्बर में होता है।
इसकी रोकथाम के लिए गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें। सूंडी को पकड़कर नष्ट कर दें। फसल की सिंचाई करने पर कीट की सूंडी डूबकर मर जाती है। एक लीटर मेलाथियान 50 EC को 150-200 ली. पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। पहला छिड़काव अक्टूबर में तथा दूसरा छिड़काव मार्च-अप्रैल में करें।
3. बालों वाली सुंडी: इस कीट का वयस्क लाल-भूरे रंग का होता है। पूर्ण विकसित सूंडी हरे-पीले रंग की होती है। इसका शरीर रोयों से ढका रहता है। यह सूंडी फसलों को अधिक हानि पहुँचाती है। यह पौधों की मुलायम पत्तियों, शाखाओं और तने को काटकर उन्हें नुकसान पहुँचाती है।
इसकी रोकथाम के लिए फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें। अंडों को खेत से बाहर निकालकर नष्ट कर दें। अधिक प्रकोप होने पर 250 मिलीलीटर डाइक्लोरवास को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। मेलाथियान 50 EC 400 मिलीलीटर को 700-800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करें।
4. सुरंग बनाने वाली कीट या लीफ माइनर: इस कीट का वयस्क भूरे रंग का और 1.5-2.0 मिमीमीटर लम्बा होता है। इसकी सूंडी का रंग पीला होता है। यह सूंडी पत्ती के अन्दर टेढ़ी-मेढ़ी सुरंग बनाकर उसके हरे पदार्थ को खा जाती है।
इस कारण पत्ती की भोजन बनाने की प्रक्रिया कम हो जाती है। फसल की पैदावार पर इसका बुरा असर पड़ता है। उग्र रूप धारण करके ये सुंडियाँ पूरी पत्तियों को नुकसान पहुँचाती हैं। फसल पर इनका हमला जनवरी से मार्च के दौरान होता है।
लीफ़ माइनर (leaf miner) से बचाव के लिए फसल की समय पर बुआई करें। इससे कीट का प्रकोप कम होता है। फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें। कीटग्रस्त पत्तियों को तोड़कर उन्हें खेत से बाहर निकाल दें। डाइमिथोएट 50 EC की 250 मिलीलीटर या मेटासिस्टॉक्स 25 EC की 250 मिलीलीटर का 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
5. चितकबरा कीट या पेन्टेड बग: यह कीट काले रंग का होता है। इस पर नारंगी रंग के धब्बे होते हैं। इसके शिशु तथा वयस्क दोनों ही पत्तियों, टहनियों तथा फलियों का रस चूसते हैं। इसके अलावा फसल कटाई के बाद भी हानि पहुँचाते हैं। इस कीट के आक्रमण के कारण दानों में तेल की मात्रा कम हो जाती है और उनका वजन घट जाता है। इसका प्रकोप फरवरी से मार्च तक रहता है।
इसकी रोकथाम के लिए फसल की बुआई तब करें, जब दिन का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस के आसपास हो। कीट के अंडों को नष्ट करके उन्हें खेत से बाहर निकाल दें। बीज को 5 ग्राम इमिडाक्लोरोप्रिड 70 WS प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। मेलाथियान 50 EC की 400 मिलीलीटर मात्रा को 700-800 लीटर पानी में मिलाकर इसका प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
6. मोयला: यह कीट हरे, काले और पीले रंग का होता है तथा पौधों की पत्तियों, शाखाओं, फूलों और फलियों का रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुँचता है। इसका प्रकोप आमतौर पर फसल में फूल आने के बाद और हवा में नमी बढ़ने के मौसम में होता है।
इसकी रोकथाम के लिए फॉस्फोमीडोन 85WC की 250 मिलीलीटर या इपीडाक्लोराप्रिड की 500 मिलीलीटर या मैलाथियोन 50EC की 1.25 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर एक सप्ताह के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए।
7. दीमक: दीमक की रोकथाम के लिए अन्तिम जुताई के समय क्लोरोपाइरीफोस 4 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण की 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाना चाहिए।
खड़ी फसल में यदि दीमक का प्रकोप दिखायी दे तो सिंचाई के साथ 1 लीटर क्लोरोपाइरीफोस प्रति हेक्टेयर को पानी के साथ देना चाहिए।
8. सफ़ेद रोली: इसके प्रकोप के कारण पत्तियों, तनों, फूलों और फलियों पर सफ़ेद फफोले पैदा हो जाते हैं। इस रोग से ग्रसित पौधों पर फलियाँ और बीज नहीं बनते।
इसकी रोकथाम के लिए 6 ग्राम एपरोन प्रति किलो दर से बीजोपचार करके ही बुआई करनी चाहिए। खड़ी फसल पर मेटालेक्जिल 8 प्रतिशत और मेन्कोजेब की 2.5 ग्राम मात्रा का प्रतिलीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव या बुरकाव करना चाहिए।
9. छाछ्या: इसके प्रकोप से पूरा पौधा सफ़ेद पाउडर जैसे पदार्थ से ढक जाता है। उसकी पत्तियाँ झड़ने लगती हैं और फलियों में दाने सिकुड़े हुए बनते हैं।
इसके नियंत्रण के लिए डायनोकेप या केराथेन की 1 किलोग्राम मात्रा या 20 किलोग्राम गन्धक का चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
10. तुलासिता: इसके प्रकोप के कारण पत्तियों के नीचे रूई के समान सफ़ेद फफूँद दिखाई देती हैं। पत्तियों के ऊपर हल्के भूरे बादामी रंग के धब्बे बन जाते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए फसल पर मेटालेविजल 8 प्रतिशत + मैंकोजेब की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। तुलासिता के नियंत्रण के लिए केराथेन की 1 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर भी छिड़काव किया जा सकता है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- प्रधानमंत्री मोदी ने किया Rising NorthEast Summit 2025 का उद्घाटन, पूर्वोत्तर को बताया विकास का नया केंद्रRising North East Summit 2025 में PM मोदी ने पूर्वोत्तर को बताया विकास का अगुवा, निवेश को बढ़ावा देने की रणनीति साझा की।
- मूंगफली की कटाई और पोस्ट-हार्वेस्ट मैनेजमेंट: फ़सल की गुणवत्ता कैसे बनाए रखें?मूंगफली की कटाई (Groundnut Harvesting) के सही समय, सूखाने की विधियां और भंडारण तकनीक से फ़सल की गुणवत्ता बनाए रखें और बाज़ार मूल्य में बढ़ोतरी करें।
- मिट्टी से सोना उगाने वाले चरणजीत सिंह: वो प्रगतिशील किसान जिसने खेती को बनाया करोड़ों का व्यवसाय!चरणजीत सिंह (Progressive farmer of Uttarakhand) ने अपने खेत को एक स्वावलंबी इकाई (self supporting unit) के रूप में डेपलप किया है। उनके फार्म पर आपको हर तरह की गतिविधियां एक साथ चलती दिखेंगी।
- लातूर के किसान महादेव गोमारे ने बांस की खेती और पोषण गार्डन मॉडल से बदली क़िस्मतमहादेव गोमारे ने लातूर में बांस की खेती और पोषण गार्डन मॉडल से बदली किसानों की तक़दीर, बने समाज बदलाव की अनूठी मिसाल।
- International Buyer-Seller Meet: बिहार की कृषि क्रांति में खुला नया अध्याय, अंतर्राष्ट्रीय बायर-सेलर मीट से जगी उम्मीदें!पटना के ज्ञान भवन में आयोजित पहले अंतर्राष्ट्रीय बायर-सेलर मीट (International Buyer-Seller Meet) ने बिहार के किसानों, FPOs, SHGs और MSMEs के लिए ग्लोबल मार्केट के दरवाज़े खोल दिए।
- कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की पदयात्रा, गांव-गांव सीधा संवाद और जानेंगे ज़मीनी हकीकतकृषि मंत्री हर सप्ताह दो दिन पदयात्रा करेंगे और प्रतिदिन करीब 25 किलोमीटर पैदल चलकर गांव-गांव जाएंगे। जानिए इस पदयात्रा से जुड़े अहम बिन्दु।
- Solar Panel Subsidy Scheme: दिल्लीवालों के लिए 300 यूनिट फ्री बिजली! जानें कैसे उठाएं फायदा?केंद्र और दिल्ली सरकार मिलकर आपको सोलर पैनल (Solar Panel Subsidy Scheme) लगवाने पर 60 हजार रुपये तक की सब्सिडी दे रही हैं। साथ ही, हर महीने 300 यूनिट तक बिजली भी फ्री।
- मूंगफली बीज उपचार: फंगल और बैक्टीरियल बीमारियों से कैसे करें बचाव?मूंगफली बीज उपचार से फ़सल को रोगों से बचाएं और पैदावार बढ़ाएं। जानें पारंपरिक, जैविक व आधुनिक उपचार के प्रभावी तरीके।
- White Revolution 2.0 : गोबर से लेकर मृत पशुओं तक, अब सहकारी समितियां बदलेंगी डेयरी क्षेत्र का गेमकेंद्र सरकार ने डेयरी क्षेत्र में (White Revolution 2.0) एक बड़ा कदम उठाया है। अब तीन नई मल्टी-स्टेट सहकारी समितियां (Three new multi-state cooperative societies) बनाई जाएंगी
- Jamun Variety Goma Priyanka: जामुन की क़िस्म गोमा प्रियंका से किसानों को कैसे मिल रहा है ज़बरदस्त मुनाफ़ाजामुन की क़िस्म गोमा प्रियंका (Jamun Variety Goma Priyanka) किसानों के लिए बेहतर विकल्प है, कम पानी में ज़्यादा पैदावार और बढ़िया मुनाफ़ा देती है।
- New Dairy Policy Of Uttar Pradesh: दूध उत्पादन में क्रांति, किसानों को मिलेंगे करोड़ों के अनुदान!अगर आप भी डेयरी व्यवसाय (New Dairy Policy of Uttar Pradesh) शुरू करने का सपना देख रहे हैं, तो यह खबर आपके लिए है। आइए जानते हैं कि यूपी सरकार की यह नई नीति किसानों और उद्यमियों के लिए कैसे गेम-चेंजर साबित होगी।
- ICAR-IIMR के हाइब्रिड मक्का के बीज से किसानों को मिला फ़ायदा, कम लागत में मिल रहा बेहतर उत्पादनICAR-IIMR के हाइब्रिड मक्का के बीज किसानों तक कम कीमत पर पहुंचाकर मक्का की खेती को नई ऊंचाई पर ले जा रहे हैं।
- International Tea Day : भारत की चाय-एक सुगंधित विरासत जो दुनिया को लुभा रही है! लेकिन किसानों की सामने चुनौतियां भीआइए, जानते हैं International Tea Day के मौके पर भारत में चाय उत्पादन की वर्तमान स्थिति, किसानों की चुनौतियां और कैसे भारत अपनी चाय को एक वैश्विक ब्रांड बना रहा है।
- International Tea Day : चाय की महक से जुड़ी अनोखी दास्तां, जानें एक प्याली में छुपी कितनी बड़ी अर्थव्यवस्थाInternational Tea Day : क्या आप जानते हैं कि चाय की खोज कैसे हुई? भारत चाय उत्पादन में कैसे अव्वल बना? आइए, चाय के रोचक इतिहास और इसके वैश्विक प्रभाव पर एक नज़र डालते हैं।
- Groundnut Cultivation: मूंगफली की खेती के लिए जल प्रबंधन रणनीतियां, सूखाग्रस्त क्षेत्रों पर केंद्रित उपायसूखे क्षेत्रों में मूंगफली की खेती (Groundnut Cultivation) को सफल बनाने के लिए जानें जल प्रबंधन की वैज्ञानिक और व्यवहारिक रणनीतियां।
- महाराष्ट्र से ‘वन नेशन, वन एग्रीकल्चर’ की शुरुआत, शिवराज सिंह चौहान ने किया विकसित कृषि संकल्प अभियान का शुभारंभशिवराज सिंह ने नागपुर में विकसित कृषि संकल्प अभियान (Vikasit Krishi Sankalp Abhiyan) की शुरुआत की, किसानों को मिली नई तकनीक और समर्थन की बड़ी सौगात।
- World Bee Day 2025: क्यों हैं मधुमक्खियां किसानों की सच्ची दोस्त? मधुमक्खी पालन में सफलता की कहानियां और सरकारी योजनाएं20 मई, विश्व मधुमक्खी दिवस (World Bee Day 2025) पर जानिए कैसे ये छोटी-सी मेहनती जीव हमारी कृषि और अर्थव्यवस्था की ‘अनसुनी हीरो’ बनी हुई है। मधुमक्खियां न सिर्फ शहद बनाती हैं, बल्कि 80 फीसदी फसलों की उपज बढ़ाने में मदद करती हैं।
- World Bee Day 2025: प्रकृति के सबसे महत्वपूर्ण इंजीनियर मधुमक्खियों के बिना धरती की कल्पना अधूरी20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस (World Bee Day 2025) के रूप में मनाकर हम इनकी अहमियत को समझते हैं और उनके संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाते हैं।
- Uttarakhand’s New Poultry Policy : अंडे-मुर्गी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता देवभूमि! महिलाओं को प्राथमिकतामुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई में हुई कैबिनेट बैठक में ‘नई पोल्ट्री नीति’ (Uttarakhand’s New Poultry Policy) को मंजूरी मिल गई है। जिसके तहत अब सूबे में 55 बड़े पोल्ट्री फार्म खोले जाएंगे।
- महाराष्ट्र में कृषि योजनाओं की समीक्षा बैठक, शिवराज सिंह ने दिए किसान हित में बड़े निर्देशकेंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा किसानों के लिए मौसम आधारित फ़सलें और फार्मर आईडी अनिवार्य, केंद्र देगा महाराष्ट्र को पूर्ण सहयोग।