सरसों की खेती (Mustard Farming): सरसों रबी में उगाई जाने वाली प्रमुख तिलहन फसल है। इसकी खेती सिंचित और असिंचित यानी बारानी खेतों में संरक्षित नमी के ज़रिये की जाती है। देश के सरसों उत्पादन में राजस्थान का प्रमुख स्थान है। पश्चिमी क्षेत्र के राज्यों का देश के कुल सरसों उत्पादन में 29 प्रतिशत योगदान है। सरसों की औसत उपज काफ़ी कम यानी महज 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
अगर सरसों की खेती की उन्नत तकनीकें अपनायी जाएँ तो औसत पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर यानी दो से ढाई गुना ज़्यादा मिल जाती है। ये भी माना गया है कि असिंचित क्षेत्रों में सरसों की पैदावार 20 से 25 क्विंटल तक तथा सिंचित क्षेत्रों में 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है।
क्या है सरसों की खेती की उन्नत तकनीक?
- एक ही खेत में लगातार सरसों की फसल नहीं उगाना चाहिए।
- कीट प्रबन्धन: सरसों की खेती में कीटों का प्रकोप पूरे देश में पाया जाता है। सरसों की पैदावार को घटाने में कीटों की बड़ी भूमिका होती है। मेरठ स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के अनुसार, कीटों और बीमारियों से रबी की तिलहनी फसलों को सालाना 15-20 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचाता है। इससे किसान बहुत हतोत्साहित होते हैं। बेमौसम की बारिश से बढ़ने वाली नमी और धूप के कमी की वजह से सरसों की फसल में लगने वाले कीट तेज़ी से फैलते हैं। कभी-कभार ये कीट उग्र रूप धारण कर लेते हैं तथा फसलों को अत्याधिक हानि पहुँचाते हैं। इसीलिए सरसों या तिलहनी फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाना बेहद ज़रूरी है।
- फसल चक्र: खरपतवार के टिकाऊ उपचार में फसल चक्र अपनाने से बहुत फ़ायदा होता है। फसल चक्र का अधिक पैदावार प्राप्त करने, मिट्टी का उपजाऊपन बनाये रखने तथा बीमारियों और कीट से रोकथाम में भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। मूँग-सरसों, ग्वार-सरसों, बाजरा-सरसों जैसे एक वर्षीय फसल चक्र तथा बाजरा-सरसों-मूँग/ग्वार-सरसों का दो वर्षीय फसल चक्र में उपयोग करना बेहद लाभकारी साबित होता है। बारानी इलाकों में जहाँ सिर्फ़ रबी में फसल ली जाती हो वहाँ सरसों के बाद चना उगाया जा सकता है।
- सरसों की खेती के लिए उन्नत किस्मों का ही इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता और उत्पादकता बेहतर होती है।
सरसों की उन्नत किस्में | |||
किस्म | पकने की अवधि (दिन) | औसत उपज (क्विंटल/हेक्टेयर) | विशेषताएँ |
पूसा जय किसान | 125-130 | 18-20 | सफ़ेद रोली, उखटा और तुलासिता रोग रोधी, सिचिंत तथा असिचिंत (बारानी) खेतों के लिए उपयुक्त। |
आशीर्वाद | 125-130 | 16-18 | देरी से बुआई की जा सकती है। सिचिंत खेतों के लिए उपयुक्त। |
RH 30 | 130-135 | 18-20 | दाने मोटे होते हैं। मोयला का प्रकोप कम। सिचिंत और असिचिंत खेतों के लिए उपयुक्त। |
पूसा बोल्ड | 125-130 | 18-20 | दाने मोटे होते हैं। रोग कम लगते हैं। |
लक्ष्मी (RH 8812) | 135-140 | 20-22 | फलियाँ पकने पर चटकती नहीं। मोटा और काला दाना। |
- सरसों की खेती के साथ यदि किसान उन सावधानियों का ध्यान रखें जिससे उनके खेत में ही अगली फसल के लिए उन्नत किस्म के बीजों की पैदावार हो सके तो ये तरीका और फ़ायदेमन्द साबित होता है।
बीज उत्पादन
प्रगतिशील किसान कुछ सावधानियाँ रखकर सरसों का बीज अपने खेतों में ही पैदा कर सकते हैं। बीज उत्पादन के लिए ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिए, जिसमें पिछले साल सरसों की खेती नहीं की गयी हो। यहाँ तक कि खेत के चारों ओर 200 से 300 मीटर की दूरी तक सरसों की फसल नहीं होनी चाहिए। सरसों की खेती के लिए प्रमुख कृषि क्रियाएँ, फसल सुरक्षा, अवांछनीय पौधों को निकालना तथा उचित समय पर कटाई की जानी चाहिए।
फसल की कटाई के वक़्त खेत को चारों ओर से 10 मीटर क्षेत्र छोड़ते हुए बीज के लिए लाटा काटकर अलग से सुखाना चाहिए तथा दाना निकालकर उसे साफ़ करके ग्रेडिंग करना चाहिए। दाने में नमी 8-9 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। बीज को कीट और कवकनाशी से उपचारित कर लोहे के ड्रम या अच्छी किस्म के बोरों में भरकर सुरक्षित जगह पर भंडारित करना चाहिए। ऐसे बीज को किसान अगले साल बुआई के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
सरसों की फसल की कटाई और गहाई
सरसों की फसल में जब 75% फलियाँ सुनहरे रंग की हो जाए, तब फसल को काटकर, सुखाकर या मड़ाई करके बीज अलग कर लेना चाहिए। फसल अधिक पकने पर फलियों के चटकने की आशंका बढ़ जाती है। इसीलिए पौधों के पीले पड़ने और फलियाँ भूरी होने पर फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। लाटे को सूखाकर थैसर या डंडों से पीटकर दाने को अलग कर लिया जाता है। सरसों के बीज को अच्छी तरह सुखाकर ही भण्डारण करना चाहिए।
सरसों की उन्नत खेती के लिए मिट्टी और खेत की तैयारी
सरसों की खेती के लिए दोमट और बलुई मिट्टी सबसे बढ़िया होती है। इसे भुरभुरी होना चाहिए, क्योंकि ऐसी मिट्टी में ही सरसों के छोटे-छोटे बीजों का जमाव अच्छा होता है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए इसके बाद हैरो से एक क्रास जुताई और फिर कल्टीवेटर से जुताई करके पाटा लगाना चाहिए।
सरसों के बीज की बुआई
सरसों के लिए 4 से 5 किलो ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है। बारानी इलाकों में सरसों की बुआई 25 सितम्बर से 15 अक्टूबर तथा सिचिंत खेतों में 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच करनी चाहिए। फसल की बुआई पंक्तियों में करनी चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 50 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। सिचिंत क्षेत्रों में फसल की बुआई पलेवा देकर करनी चाहिए।
ये भी पढ़ें- Mustard Variety: सरसों की उन्नत किस्म से बढ़ाई पैदावार, जानिए बलवंत सिंह ने क्यों चुनी ये किस्म
सरसों की खेती के लिए खाद और उर्वरक
सरसों की फसल के लिए 8-10 टन गोबर की सड़ी हुई या कम्पोस्ट खाद को बुआई से कम से कम तीन से चार सप्ताह पूर्व खेत में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए। इसके बाद मिट्टी की जाँच रिपोर्ट के अनुसार सिचिंत फसल के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर के हिसाब बुआई के समय कूडों में, 87 किलोग्राम DAP (डाइ अमोनियम फॉस्फेट) और 32 किलोग्राम यूरिया या 65 किलोग्राम यूरिया और 250 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट खेत में डालना चाहिए।
पहली सिंचाई के समय 30 किलोग्राम नाइट्रोजन और 65 किलोग्राम यूरिया का प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा जब फसल 40 दिन की हो 40 किलोग्राम गन्धक का चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। असिचिंत क्षेत्र में 40-40 किलोग्राम नाइट्रोजन और फॉस्फोरस को बुआई के समय तथा 87 किलोग्राम DAP और 54 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए।
सरसों की खेती में सिंचाई
सरसों की खेती के लिए 5 सिंचाई पर्याप्त होती है। इसे फव्वारा विधि से करना चाहिए। पहली सिंचाई बुआई के समय, दूसरी शाखाएँ बनते वक़्त यानी बुआई के 25-30 दिन बाद, तीसरी फूल निकलने की शुरुआत होने या 45-50 दिन बाद, चौथी सिंचाई फलियाँ बनते समय या 70-80 दिन बाद और आख़िरी दाना पकते समय या बुआई के 100-110 दिन बाद करनी चाहिए।
सरसों की फसल की निराई-गुहाई
सरसों की फसल को गोयला, चील, मोरया, प्याजी जैसे खरपतवार नुकसान पहुँचाते हैं। इनके नियत्रंण के लिए बुआई के 25 से 30 दिन बाद करसी से गुड़ाई करनी चाहिए। दूसरी गुड़ाई 50 दिन बाद करनी चाहिए। खरपतवारों की रोकथाम के लिए पेंडीमथालिन की 3 लीटर मात्रा बुआई के 2 दिनों तक इस्तेमाल करना चाहिए। सरसों की फसल में आग्या (ओरोबंकी) नामक परजीवी खरपतवार भी पौधों की जड़ों पर उगकर अपना भोजन प्राप्त करता है। इससे फसल के पौधे कमज़ोर रह जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए इसके पौधों को बीज बनने से पहले ही उखाड़ देना चाहिए।
सरसों की फसल में एकीकृत कीट नियंत्रण
1. चंपा या माहूं या अल: इस कीट के वयस्क और शिशु, पौधों के विभिन्न हिस्सों से रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुँचाते हैं। इससे पौधों के विभिन्न भाग चिपचिपे हो जाते हैं। उन पर काला कवक पनप जाता है। इससे पौधे कमज़ोर हो जाते हैं तथा पैदावार घट जाती है। इस कीट का प्रकोप दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह से मार्च तक बना रहता है।
इसकी रोकथाम के लिए फसल की बुआई सही समय पर करें तो कीट का प्रकोप कम होता है। राई प्रजाति की किस्मों पर चंपा का प्रकोप कम होता है।
दिसम्बर के अन्तिम और जनवरी के पहले हफ़्ते में कीटग्रस्त पौधों के विभिन्न भागों को खेत से बाहर निकालकर जला देना चाहिए। परभक्षी कीट क्राइसोपरला कार्निया को 50,000 की संख्या में प्रति हेक्टेयर की दर से पूरे खेत में छोड़ना भी बेहद फ़ायदेमन्द उपाय है। इसके अलावा डाइमिथोस्ट 50 EC की 250 मिलीलीटर मात्रा को 400-500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। मेटासिस्टॉक्स 25 EC की 250 मिलीलीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से भी इस कीट से फसल बचाव हो जाता है।
2. आरा मक्खी: इस कीट की पूर्ण विकसित सूंडी (ग्रब) 15-20 मिलीमीटर लम्बी होती है। इसका रंग हरा-सिलेटी और सिर काला होता है। इस कीट की सूंडी पौधों के उगते ही उनके पत्तों को काटकर खा जाती है। कभी-कभी अत्यधिक आक्रमण के समय सुंडियाँ तने की छाल तक भी खा जाती हैं। इसका प्रकोप अक्टूबर-नवम्बर में होता है।
इसकी रोकथाम के लिए गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें। सूंडी को पकड़कर नष्ट कर दें। फसल की सिंचाई करने पर कीट की सूंडी डूबकर मर जाती है। एक लीटर मेलाथियान 50 EC को 150-200 ली. पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। पहला छिड़काव अक्टूबर में तथा दूसरा छिड़काव मार्च-अप्रैल में करें।
3. बालों वाली सुंडी: इस कीट का वयस्क लाल-भूरे रंग का होता है। पूर्ण विकसित सूंडी हरे-पीले रंग की होती है। इसका शरीर रोयों से ढका रहता है। यह सूंडी फसलों को अधिक हानि पहुँचाती है। यह पौधों की मुलायम पत्तियों, शाखाओं और तने को काटकर उन्हें नुकसान पहुँचाती है।
इसकी रोकथाम के लिए फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें। अंडों को खेत से बाहर निकालकर नष्ट कर दें। अधिक प्रकोप होने पर 250 मिलीलीटर डाइक्लोरवास को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। मेलाथियान 50 EC 400 मिलीलीटर को 700-800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करें।
4. सुरंग बनाने वाली कीट या लीफ माइनर: इस कीट का वयस्क भूरे रंग का और 1.5-2.0 मिमीमीटर लम्बा होता है। इसकी सूंडी का रंग पीला होता है। यह सूंडी पत्ती के अन्दर टेढ़ी-मेढ़ी सुरंग बनाकर उसके हरे पदार्थ को खा जाती है।
इस कारण पत्ती की भोजन बनाने की प्रक्रिया कम हो जाती है। फसल की पैदावार पर इसका बुरा असर पड़ता है। उग्र रूप धारण करके ये सुंडियाँ पूरी पत्तियों को नुकसान पहुँचाती हैं। फसल पर इनका हमला जनवरी से मार्च के दौरान होता है।
लीफ़ माइनर (leaf miner) से बचाव के लिए फसल की समय पर बुआई करें। इससे कीट का प्रकोप कम होता है। फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें। कीटग्रस्त पत्तियों को तोड़कर उन्हें खेत से बाहर निकाल दें। डाइमिथोएट 50 EC की 250 मिलीलीटर या मेटासिस्टॉक्स 25 EC की 250 मिलीलीटर का 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
5. चितकबरा कीट या पेन्टेड बग: यह कीट काले रंग का होता है। इस पर नारंगी रंग के धब्बे होते हैं। इसके शिशु तथा वयस्क दोनों ही पत्तियों, टहनियों तथा फलियों का रस चूसते हैं। इसके अलावा फसल कटाई के बाद भी हानि पहुँचाते हैं। इस कीट के आक्रमण के कारण दानों में तेल की मात्रा कम हो जाती है और उनका वजन घट जाता है। इसका प्रकोप फरवरी से मार्च तक रहता है।
इसकी रोकथाम के लिए फसल की बुआई तब करें, जब दिन का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस के आसपास हो। कीट के अंडों को नष्ट करके उन्हें खेत से बाहर निकाल दें। बीज को 5 ग्राम इमिडाक्लोरोप्रिड 70 WS प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। मेलाथियान 50 EC की 400 मिलीलीटर मात्रा को 700-800 लीटर पानी में मिलाकर इसका प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
6. मोयला: यह कीट हरे, काले और पीले रंग का होता है तथा पौधों की पत्तियों, शाखाओं, फूलों और फलियों का रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुँचता है। इसका प्रकोप आमतौर पर फसल में फूल आने के बाद और हवा में नमी बढ़ने के मौसम में होता है।
इसकी रोकथाम के लिए फॉस्फोमीडोन 85WC की 250 मिलीलीटर या इपीडाक्लोराप्रिड की 500 मिलीलीटर या मैलाथियोन 50EC की 1.25 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर एक सप्ताह के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए।
7. दीमक: दीमक की रोकथाम के लिए अन्तिम जुताई के समय क्लोरोपाइरीफोस 4 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण की 25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाना चाहिए।
खड़ी फसल में यदि दीमक का प्रकोप दिखायी दे तो सिंचाई के साथ 1 लीटर क्लोरोपाइरीफोस प्रति हेक्टेयर को पानी के साथ देना चाहिए।
8. सफ़ेद रोली: इसके प्रकोप के कारण पत्तियों, तनों, फूलों और फलियों पर सफ़ेद फफोले पैदा हो जाते हैं। इस रोग से ग्रसित पौधों पर फलियाँ और बीज नहीं बनते।
इसकी रोकथाम के लिए 6 ग्राम एपरोन प्रति किलो दर से बीजोपचार करके ही बुआई करनी चाहिए। खड़ी फसल पर मेटालेक्जिल 8 प्रतिशत और मेन्कोजेब की 2.5 ग्राम मात्रा का प्रतिलीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव या बुरकाव करना चाहिए।
9. छाछ्या: इसके प्रकोप से पूरा पौधा सफ़ेद पाउडर जैसे पदार्थ से ढक जाता है। उसकी पत्तियाँ झड़ने लगती हैं और फलियों में दाने सिकुड़े हुए बनते हैं।
इसके नियंत्रण के लिए डायनोकेप या केराथेन की 1 किलोग्राम मात्रा या 20 किलोग्राम गन्धक का चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
10. तुलासिता: इसके प्रकोप के कारण पत्तियों के नीचे रूई के समान सफ़ेद फफूँद दिखाई देती हैं। पत्तियों के ऊपर हल्के भूरे बादामी रंग के धब्बे बन जाते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए फसल पर मेटालेविजल 8 प्रतिशत + मैंकोजेब की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। तुलासिता के नियंत्रण के लिए केराथेन की 1 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर भी छिड़काव किया जा सकता है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- Stubble Management: केंद्र और राज्यों ने कसी कमर, अब पराली प्रबंधन पर जोर, लिया जाएगा सख़्त एक्शनधान की कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेष (stubble management) को जलाने के पीछे किसानों की मजबूरी है। अगली फसल (गेहूं) की बुवाई के लिए समय बहुत कम होता है और पराली हटाने की पारंपरिक विधियां महंगी और वक्त लेने वाली हैं। इससे निपटने के लिए अब सरकार ने जो रणनीति बनाई है
- Shepherd Community: भारत की अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक ताने-बाने में ग्रामीण जीवन की धड़कन है चरवाहा समुदायचरवाहा समुदाय (shepherd community) की भूमिका सिर्फ पशुपालन (animal husbandry) तक सीमित नहीं है। वे एक पुल की तरह काम करते हैं। जो हमारी परंपरा को आज के वक्त के साथ जोड़ते हैं, प्रकृति के साथ coexistence बढ़ाते हैं। देश की खाद्य सुरक्षा की नींव मजबूत करते हैं।
- खेत से बाज़ार तक बस एक क्लिक! Kapas Kisan App लाया क्रांति, लंबी कतारों और भ्रष्टाचार से मुक्तिकेंद्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह ने ‘कपास किसान’ (Kapas Kisan App) मोबाइल ऐप लॉन्च करके देश की कपास खरीद प्रोसेस में एक डिजिटल क्रांति (digital revolution )की शुरूआत की
- प्राकृतिक खेती और सेब की बागवानी से शिमला के किसान सूरत राम को मिली नई पहचानप्राकृतिक खेती से शिमला के किसान सूरत राम ने सेब की खेती में कम लागत और अधिक मुनाफे के साथ अपनी पहचान बनाई है।
- 1962 Mobile App: पशुपालकों का स्मार्ट साथी,Animal Husbandry Revolution का डिजिटल सूत्रधार!Digital India के इस युग में, पशुपालन (animal husbandry) के क्षेत्र में एक ऐसी स्मार्ट क्रांति की शुरुआत हुई है, जो किसानों और पशुपालकों की हर समस्या का समाधान उनकी उंगलियों के इशारे पर ला देना चाहती है। इस क्रांति का नाम है-1962 Mobile App- पशुपालन का स्मार्ट साथी।
- Pulses Atmanirbharta Mission: 11,440 करोड़ रुपये का दलहन आत्मनिर्भरता मिशन, भारत की आत्मनिर्भरता की ओर ऐतिहासिक छलांगकेंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए ‘दलहन आत्मनिर्भरता मिशन’ (Pulses Atmanirbharta Mission) को मंजूरी दे दी है। ये मिशन, जो 2025-26 से 2030-31 तक चलेगा, देश को दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक सशक्त कदम है।
- Makhana Revolution In Bihar: बिहार में शुरू हुई मखाना क्रांति, गरीब का ‘Superfood’ बन रहा है वैश्विक धरोहरमखाना महोत्सव 2025 (Makhana Festival 2025) का मंच सिर्फ एक उत्सव का प्लेटफॉर्म नहीं, बल्कि बिहार की अर्थव्यवस्था (Economy of Bihar) के एक नए युग का सूत्रपात (Makhana Revolution In Bihar) बन गया।
- Natural Farming: बीर सिंह ने प्राकृतिक खेती से घटाया ख़र्च और बढ़ाई अपनी आमदनी, जानिए उनकी कहानीविदेश से लौटकर बीर सिंह ने संतरे की खेती में नुक़सान के बाद प्राकृतिक खेती शुरू की और अब कमा रहे हैं बढ़िया मुनाफ़ा।
- हरियाणा के रोहतक में खुला साबर डेयरी प्लांट पशुपालकों की आय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलेगी मज़बूतीरोहतक में शुरू हुआ साबर डेयरी प्लांट जो देश का सबसे बड़ा डेयरी प्लांट है किसानों की आय और दिल्ली एनसीआर की जरूरतों को पूरा करेगा।
- Cluster Development Programme: भारत का क्लस्टर डेवलपमेंट प्रोग्राम है किसानों की आमदनी बढ़ाने की एक क्रांतिकारी रणनीतिकृषि क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए भारत सरकार ने क्लस्टर डेवलपमेंट प्रोग्राम (Cluster Development Programme – CDP) की शुरुआत की है। ये केवल एक योजना नहीं, बल्कि कृषि व्यवस्था में एक अहम परिवर्तन लाने का एक सशक्त मॉडल है।
- Mushroom Farming In Bihar: बिहार में महिला किसानों के लिए ‘सोना’ उगाने का मौका! मशरूम योजना से महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भरबिहार जैसे घनी आबादी वाले राज्य में जहां जोत छोटी है और संसाधन सीमित, मशरूम की खेती एक वरदान साबित हो सकती है। ये एक ऐसी कृषि तकनीक है जिसे छोटे से घर के आंगन या खेत के एक कोने में भी शुरू किया जा सकता है। सबसे बड़ा फायदा ये है कि मशरूम की फसल बेहद कम समय में तैयार हो जाती है।
- कौशल विकास और प्रशिक्षण से किसान हो रहे सशक्त, बढ़ रही है क्षमता और हो रहा है विकासकिसानों को कौशल विकास और प्रशिक्षण के माध्यम से नई तकनीक, आधुनिक खेती और आय बढ़ाने के साधन उपलब्ध कराकर उन्हें सशक्त और आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है।
- राजस्थान के SKN कृषि विश्वविद्यालय का अनोखा रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम एक तालाब में जमा होता है 11 करोड़ लीटर पानीराजस्थान के श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग से जल संरक्षण और खेती के भविष्य को मिल रहा है नया रास्ता।
- भारत ने पाई Animal Health में ऐतिहासिक उपलब्धि: ख़तरनाक IBR बीमारी के लिए ‘Raksha-IBR’ वैक्सीन विकसितएक्सपर्ट्स के अनुसार, भारत में IBR के मामलों की दर 32 फीसदी से ज़्यादा है, जो एक बेहद चिंताजनक स्थिति है। इस बीमारी के कारण देश के डेयरी उद्योग को हर साल लगभग 18 हजार करोड़ रुपये का भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा था। ये नुकसान मुख्य रूप से दूध उत्पादन में कमी, प्रजनन क्षमता में गिरावट और पशुओं की मृत्यु दर के कारण होता था।
- Problem Of Stubble Burning: हरियाणा-यूपी में पराली जलाने पर ‘Zero Tolerance’! अब हर खेत की होगी मैपिंग, लगेगा भारी जुर्मानाहरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने पराली जलाने की समस्या (Problem Of Stubble Burning ) से निपटने के लिए सख़्त कार्यवाही करने के आदेश दिये हैं। पराली प्रबंधन (stubble management) को लेकर एक व्यवस्थित और सख्त रणनीति पर काम शुरू किया है।पराली जलाने वालों (Stubble Burning) के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
- World Food India 2025: भारत बना Global Food Processing का ‘पावरहाउस’, 1.02 लाख करोड़ के समझौतों ने रचा इतिहासचार दिनों 25-28 सितंबर तक चले वर्ल्ड फूड इंडिया 2025 (World Food India 2025) के सफल समापन ने न केवल रिकॉर्ड बनाया, बल्कि भारत को ग्लोबल एग्री-फूड वैल्यू चेन का एक ‘सशक्त और विश्वसनीय भागीदार’ (‘Strong and reliable partner’) घोषित कर दिया।
- Natural Farming: प्राकृतिक खेती से आत्मनिर्भर बनी प्रगतिशील महिला किसान मनजीत कौरमनजीत कौर ने प्राकृतिक खेती से संतरे व अन्य फ़सलों की बागवानी में सफलता पाई उनकी कहानी किसानों और महिलाओं को नई राह दिखाती है।
- Strawberry Farming in Bihar: बिहार के किसानों के लिए सुनहरा अवसर, स्ट्रॉबेरी की खेती पर 3 लाख रुपये तक मिलेगी सब्सिडी!बिहार सरकार की स्ट्रॉबेरी विकास योजना (‘Strawberry Development Plan 2025-26’) किसानों की आय बढ़ाने और कृषि क्षेत्र में विविधता लाने की दिशा में एक सराहनीय कदम है। स्ट्रॉबेरी एक नकदी फसल है, जिसकी बाजार में मांग लगातार बढ़ रही है।
- Paramparagat Krishi Vikas Yojana: ऑर्गेनिक फार्मिंग के साथ किसानों को ‘End-To-End Support’ तक का पूरा ढांचा करा रही मुहैयासरकार का ज़ोर अब जैविक खेती (Organic Farming) को बढ़ावा देने पर है। ये सिर्फ एक तरकीब नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों की उस सोच की वापसी है जो प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर खेती करने में भरोसा रखती थी। परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana) (PKVY) इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
- मूंग के बाद धान की खेती क्यों है फ़ायदेमंद और खेत में ही कैसे स्टोर कर सकते हैं प्याज़, जानिए प्रगतिशील किसान सत्यवान सेमूंग के बाद धान की खेती से उपज बढ़ती है और मिट्टी उपजाऊ रहती है। जानिए कैसे सत्यवान खेत में ही प्याज़ स्टोर कर लाभ कमा रहे हैं।