पॉली हाउस में होने वाली खेती से आज शायद ही कोई किसान अंजान हो। इसी तरह से ड्रिप इरीगेशन और स्प्रिंकलर से सिंचाई का तरीका भी ज़्यादा पुराना नहीं है। हरेक तकनीक का मक़सद कम से कम संसाधन या लागत में ज़्यादा से ज़्यादा उपज पाने की ही होता है। ‘स्पीड ब्रीडिंग’ भी ऐसी ही एक नयी तकनीक है जिसे लेकर दुनिया भर के कृषि वैज्ञानिकों में ख़ासा उत्साह है, क्योंकि इस तकनीक की बदौलत नियंत्रित या कृत्रिम परिस्थितियों में पौधों को काफ़ी तेज़ी से उगाया जा सकता है।
पौधों को तेज़ी से उगाने की ये तकनीक इतनी ज़बरदस्त पायी गयी कि किसान एक साल में गेहूँ, जौ, चना जैसी फसलों की 6 बार पैदावार ले सकते हैं। ये उपलब्धि गेहूँ-जौ जैसे अनाज और चना जैसे दलहन तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसने कैनोला यानी Rape Seed जैसी तिलहनी फसल में भी उत्साहजनक नतीज़े दिये हैं। तभी तो इसकी साल में 4 फसलें ली जा सकती हैं।
स्पीड ब्रीडिंग की शुरुआत
करीब 13-14 साल पहले अमेरिकी अन्तरिक्ष संस्थान ‘नासा’ (NASA) ने फसलों की प्रजनन गति और दक्षता को चुनौती देने के लिए शोध शुरू किया। इसका उद्देश्य था कि क्या पौधों के विकसित होने की गति को तेज़ करना सम्भव है और यदि हाँ तो कैसे तथा इसकी क्या सीमाएँ होंगी? इसी शोध परियोजना को ‘स्पीड ब्रीडिंग’ कहा गया। इसके ज़रिये नासा ने अन्तरिक्ष में भी गेहूँ उगाने में सफलता हासिल की। वहाँ पौधों के लिए ऑक्सीजन, मिट्टी और सिंचाई का इन्तज़ाम किया गया और स्पीड ब्रीडिंग के प्रयोग के लिए उन्हें लगातार प्रकाश सुलभ करवाया गया।
प्रयोगशाला में हुई ऐसी गतिविधि का नतीज़ा ये रहा कि पौधों का न सिर्फ़ शुरूआती विकास बहुत तेज़ी से हुआ, बल्कि उनके फसल चक्र की अवधि भी बेहद कम हो गयी और पैदावार की क्वालिटी पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं देखा गया। ऐसी शुरुआती कोशिश से उत्साहजनक नतीज़े मिलने के बाद ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने भी अपनी प्रयोगशालाओं में अन्तरिक्ष में अपनायी गयी प्रक्रिया को दोहराया और इस बात पर मुहर लगायी कि फसलों की बेहतर उपज और शोध में तेज़ी लाने की दिशा में स्पीड ब्रीडिंग की तकनीक क्रान्तिकारी बदलाव ला सकती है।

भारतीय वैज्ञानिकों ने भी स्पीड ब्राडिंग का उपयोगी पाया
दिल्ली विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार, स्पीड ब्रीडिंग तकनीक को लेकर हुए प्रयोगों के नतीज़ों से साबित हुआ कि इसके ज़रिये सन्तुलित तापमान और प्रकाश की मदद से एक साल में 4 से 6 बार एक ही ज़मीन पर गेहूँ की फसल उगाई जा सकती है। इसकी पैदावार को 3 गुना तक बढ़ाया जा सकता है। यही नहीं, स्पीड ब्रीडिंग की तकनीक से गेहूँ की फसल में रोग प्रतिरोधकता और अन्य गुणों को भी सुधारा जा सकता है।
स्पीड ब्रीडिंग तकनीक के उत्साहजनक नतीज़ों को देखते हुए इसमें शोधकर्ताओं की दिलचस्पी बेहद बढ़ गयी है। प्रयोगशालों में मिली क़ामयाबी के बाद ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक ने तीन साल पहले स्पीड ब्रीडिंग तकनीक से विकसित गेहूँ की एक नयी किस्म को भी विकसित किया और इसे किसानों के बीच वितरित किया गया। भारत जैसे अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबन्धीय (semi arid and tropical) इलाकों के लिए हैदराबाद स्थित अन्तर्राष्ट्रीय फसल अनुसन्धान संस्थान तथा वाराणसी स्थित अन्तर्राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान में भी क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया के सहयोग से शोध परियोजना चलायी जा रही हैं।
स्पीड ब्रीडिंग और साधारण ग्लास हाउस विधि की तुलना | ||
फसल | स्पीड ब्रीडिंग ग्लास हाउस प्रकाश अवधि 22 घंटे | साधारण ग्लास हाउस प्रकाश अवधि 12 घंटे |
गेहूँ | 6 फसल | 3 फसल |
जौ | 6 फसल | 3 फसल |
चना | 6 फसल | 3 फसल |
कनोला | 4 फसल | 2 फसल |
स्पीड ब्रीडिंग के लिए हुए शोध का नतीज़ा
एलायंस फ़ॉर एग्रीकल्चर एंड फूड इनोवेशन और क्वींसलैंड विश्वविद्यालय की शोध टीम के अनुसार, स्पीड ब्रीडिंग वाले ख़ास ग्लास हाउस में बसन्त का गेहूँ, ड्यूरम गेहूँ, जौ, चना और मटर की फसल को एक साल में 6 बार और केनोला की उपज को साल में 4 बार हासिल किया जा सकता है। जबकि साधारण ग्लास हाउस वाली परिस्थितियों से केवल 2 से 3 फसलें ही उगायी जा सकती हैं। स्पीड ब्रीडिंग वाले ख़ास ग्लास हाउस में पौधों को 22 घंटे तक प्रकाश मुहैया करवाया जाता है, जबकि साधारण ग्लास हाउस में इसकी अवधि 10 घंटे की होती है।
इसीलिए सिडनी विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय, क्वींसलैंड और युनाइटेड किंगडम के जॉन इनेस सेंटर के वैज्ञानिकों ने स्पीड ब्रीडिंग की सोच और वास्तविकता दोनों को आगे बढ़ाया है। इसके लिए ज़रूरी रिसर्च प्रणाली, ग्लास हाउस की नियमित सुविधाओं आदि के बारे में जानकारी एक शोध लेख प्रतिष्ठित ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित भी हुई है, जिसमें बताया गया है कि ग्लास हाउस में LED बल्बों की सहायता से ज़रूरी रोशनी मुहैया करवाकर बीजों के विकास की गति को तेज़ किया जा सकता है। इतना ही नहीं, सन्तुलित जलवायु और बेहतर रोशनी में उगाए जाने वाले पौधों की गुणवत्ता और उपज भी साधारण ग्लास हाउस में उगायी गयी फसल की तुलना में ख़ासी बेहतर पायी गयी।
स्पीड ब्रीडिंग तकनीक का महत्व और लाभ
ग्लास हाउस को पौधों का ग्रोथ चैम्बर भी कहा जाता है। एक तरफ जहाँ ग्लास हाउस में उगने वाले पौधों को आमतौर पर एक दिन में 10 घंटे तक साधारण बल्ब के प्रकाश में रखते हैं, वहीं स्पीड ब्रीडिंग वाले ग्लास हाउस में रोज़ाना 22 घंटे तक LED की रोशनी पौधों को दिया जाता है। इस तकनीक के दौरान पौधों में भोजन बनाने की प्रक्रिया यानी कि प्रकाश संश्लेषण (फोटो सिंथेसिस) तेज़ी से होता है और इसकी बदौलत पौधे तेज़ी से बढ़ते हैं। इसीलिए वैज्ञानिकों के समुदाय में ये एक आम राय है कि स्पीड ब्रीडिंग ग्लास हाउस तकनीक के ज़रिये पौधों की नयी किस्मों को भी बेहद कम समय में और तेज़ी से विकसित किया जा सकता है।
स्पीड ब्रीडिंग तकनीक से न सिर्फ़ कम समय में बेहतर उपज पाने का कल्पना साकार होती है, बल्कि वैज्ञानिकों के लिए डीएनए चेन, जीनोम सेलेक्शन जैसे आधुनिक फसल विकास तकनीकों में भी शोध के नये आयाम जोड़ती है। सबसे ज़ोरदार बात ये है कि स्पीड ब्रीडिंग की सारी प्रक्रिया प्रकृति के नियमों के अनुकूल है, क्योंकि पौधे प्राकृतिक रूप से सूरज की रोशनी में अपना भोजन का निर्माण करते हुए विकास के अलग-अलग चरण को पार करते हैं।
इसीलिए रात के वक़्त जब पौधों को सूरज की रोशनी नहीं मिलती तो उन्हें अन्य प्राणियों की तरह साँस लेते हुए आराम करना पड़ता है। जबकि स्पीड ब्रीडिंग की मदद से पौधों के लिए रात में भी प्रकाश की व्यवस्था करके हम उनकी भोजन निर्माण प्रक्रिया को लम्बे वक़्त के लिए जारी रख लेते हैं। यहाँ प्रकाश की भूमिका वैसे ही है, जैसे हम पौधों को खाद और सिंचाई वग़ैरह का सहयोग देकर समुचित विकास करने में मदद करते हैं।
स्पीड ब्रीडिंग तकनीक की सीमाएँ
तेज़ी से फसल को विकसित करने वाली स्पीड ब्रीडिंग तकनीक के उत्साहवर्धक नतीज़े उन्हीं फसलों के मामले में सामने आये हैं जिन्हें लम्बे समय तक रोशनी की ज़रूरत होती है जैसे-पालक, मूली और सलाद पत्ते। जबकि कम धूप वाली फसलों जैसे गन्ना, चावल, कपास आदि के मामलों में बेहतर नतीज़ा नहीं मिला है। इसीलिए वैज्ञानिकों के सामने ऐसी फसलों की ऐसी किस्मों को विकसित करने की भी चुनौती है जो स्पीड ब्रीडिंग तकनीक के अनुकूल हों और अच्छी उपज दे सकें।
स्पीड ब्रीडिंग और वैश्विक खाद्य सुरक्षा
इसमें कोई शक नहीं कि स्पीड ब्रीडिंग तकनीक से भविष्य में खेती-बाड़ी की सारी दुनिया ही बदल जाएगी। ये तकरीबन इतना व्यापक होगा, जितना कि बिजली की खोज़ के बाद हमने दुनिया में बदलाव देखा है। उम्मीद है कि भविष्य में दुनिया भर में खाद्यान्न की ज़रूरत को पूरा करने में ये तकनीक मील का पत्थर साबित होगी। क्योंकि अनुमान है कि 2050 तक दुनिया की आबादी करीब 9 अरब होगी। उतनी बड़ी आबादी की भोजन की ज़रूरत को पूरा करने के लिए आज के मुक़ाबले 50 से 60 फ़ीसदी ज़्यादा खाद्य पदार्थों की आवश्यकता होगी।
दूसरी ओर, ग्लोबल वार्मिग और मौसम के लगातार बदलते मिजाज़ और खेती के लगातार सीमित हो रहे साधनों की वजह से कृषि क्षेत्र पर भारी दबाब है। किसानों की अक्सर ये शिकायत रहती है कि उन्हें खेती में बढ़िया कमाई नहीं मिलती। इसी वजह से खेती-बाड़ी के प्रति साधारण लोगों का रुझान भी घटता हुआ नज़र आता है। लेकिन कल्पना कीजिए कि जब स्पीड ब्रीडिंग जैसी तकनीक आम किसानों से जुड़ने लायक बन जाएगी, तब खेती-बाड़ी की दुनिया कितनी आकर्षक हो सकती है।
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