फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management): भारत एक कृषि प्रधान देश के साथ साथ बहुमौसमी देश भी है। जहां पर तीन तरह की कृषि ऋतुएं होती हैं और विभिन्न प्रकार की फसलों का उत्पादन किया जाता है। फसलों के उत्पादन से काफी मात्रा में फसल अवशेष भी निकलता है। इस अवशेष का समुचित उपयोग और वैज्ञानिक तकनीक से प्रबंधन कैसे किया जाए, इसे लेकर कई शोध और कार्य किए भी जा रहे हैं।
फसल अवशेष (Crop Residue) जलाने से हमारी ज़मीन में उपलब्ध पोषक तत्वों को हानि होती है। धीरे-धीरे ज़मीन की उर्वरक शक्ति कम होती चली जाती है। साथ ही वायु प्रदूषण बढ़ने जैसी कई घटनाएं हम देख भी चुके हैं। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि आखिर हमारे देश में प्रति वर्ष कितना फसल अवशेष का उत्पादन होता है और इसके दुष्प्रभावों से हमारे पर्यावरण को कितना नुक़सान होता है।
क्योंं ज़रूरी है फसल अवशेष प्रबंधन?
पराली या फसल अवशेष को खेत में जलाने से हमारे खेत का तापमान ज़्यादा हो जाता है। भूमि की ऊपरी परत कठोर हो जाती है। इसके कारण भूमि में जल अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है। हमारे खेत में मौजूद लाभकारी बैक्टीरिया और किसान मित्र केंचुओं की मृत्यु हो जाती है।
साथ ही पराली जलाने से उत्सर्जित गैसों में कार्बनमोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रसऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, सीएफसी जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्ज होता है, जो मानव स्वास्थ्य, पशु-पक्षियों और वातावरण के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इसकी वजह से खांसी, अस्थमा, त्वचा में जलन, फेफडों से सम्बन्धित रोग उत्पन्न होते हैं। इन सभी से बचने के लिए सबसे अच्छा उपाय है कि वैज्ञानिक तकनीक से फसल अवशेष का प्रबंधन करें और अपने पर्यावरण के साथ-साथ कृषि योग्य भूमि की उर्वरकता को बनाएं रखें।
किस फसल से कितना फसल अवशेष का उत्पादन?
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली और खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर (मध्य प्रदेश) से प्राप्त जानकारी के अनुसार, फसल अवशेष जलाने में चीन, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका शीर्ष स्थान पर हैं। हमारे देश में फसल अवशेषों की उपलब्धता लगभग 8 करोड़ टन अनुमानित है, जिसमें कुल फसल का अवशेष उत्पादन का लगभग 51 प्रतिशत धान का और लगभग 27 प्रतिशत सरसों का अवशेष है और शेष अन्य फसलों का है।
भारत में कृषि की दृष्टि से हरियाणा व पंजाब जैसे राज्यों में मात्र 10 प्रतिशत किसान ही फसल अवशेषों का प्रबंधन कर रहे हैं। हमारे देश में प्रति वर्ष 154.59 टन धान के अवशेष का उत्पादन होता है। इसको जलाने से भूमि में प्रति वर्ष 0.236 टन नाइट्रोजन, 0.009 टन फॉस्फोरस एवं 0.200 टन पोटाश का नुकसान हो रहा है।
फसल अवशेष में पोषक तत्वों की मात्रा
किसी भी फसल की कटाई के बाद खेत में जो डंठल, पुआल, ज़मीन पर पड़ी हुई पत्तियां या जो पेड़ का तना बच जाता है, उसे फसल अवशेष कहते हैं, जो हमारी भूमि में कार्बनिक पदार्थ का प्रमुख स्रोत होता है। हमारे देश के कृषि योग्य भूमि में 0.5 प्रतिशत या इससे भी कम मात्रा में कार्बनिक पदार्थ मौजूद हैं। जबकि अच्छे कृषि उत्पादन के लिए 2 प्रतिशत से 4 प्रतिशत के मध्य कार्बनिक पदार्थ की मात्रा उपयुक्त मानी जाती है।
मृदा में कार्बनिक पदार्थ की उपयोगिता उसी तरह है, जिस प्रकार हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की। कार्बनिक पदार्थ हमारी मृदा के ऊपरी सतह पर पाया जाता है, जो जल धारण क्षमता को बढ़ाता है। इसमें अधिक संख्या में माइक्रोब, बैक्टीरिया, एक्टीनोंमाइसीट्स पाए जाते हैं, जो हमारे भूमि की ऊर्वरक शक्ति को बढ़ा देते हैं। एक टन फसल अवशेष में लगभग 400 किलोग्राम कार्बन, 5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 1 किलोग्राम फास्फोरस, 15 किलोग्राम पोटाश होता है। एक टन फसल अवशेष में लगभग 11 किलोग्राम यूरिया, 10 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 25 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश के बराबर NPK पाया जाता है। साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, कॉपर, आयरन और मैंगनीज पाए जाते हैं।
फसल अवशेष जलाने से पोषक तत्वों को हानि
भूमि में पौधों के लिए 17 प्रकार के पोषक तत्व और सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसमें से पौधे 16 प्रकार के पोषक तत्वों का उपयोग अपने पोषण के लिए करते हैं। वैज्ञानिक आंकड़ों के अनुसार, प्रति वर्ष धान की पराली जलाने से 0.236 टन नाइट्रोजन, 0.009 टन फास्फोरस और 0.200 टन पोटाश का नुक़सान होता है। तो वहीं गन्ना का अवशेष जलाने से प्रति वर्ष लगभग 0.079 टन नाइट्रोजन, 0.001 टन फास्फोरस और 0.033 टन पोटाश का नुकसान होता है। इस तरह से धान, गन्ना और अन्य फसलों के अवशेष जलाने से प्रति वर्ष लगभग 0.394 टन नाइट्रोजन, 0.014 टन फास्फोरस और 0.294 टन पोटाश का नुक़सान हो रहा है।
इस लेख के अगले भाग में हम आपको फसल अवशेष प्रबंधन के सुझाए गए तरीकों के बारे में बताएंगे।
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