Seed Production: बीज उत्पादन का ऐसा मॉडल कि खरीदारी की समस्या भी हुई हल, कृषि विज्ञान केन्द्र ने की पहल
सहभागी बीज उत्पादन से किसानों को हुआ फ़ायदा
बीज अच्छा होगा तो फसल भी अच्छी होगी। कई बार किसानों को समय पर उन्नत बीज न मिलने की वजह से नुकसान झेलना पड़ता है। बीजों की उपलब्धता बनी रहे इसके लिए हिरेहल्ली के कृषि विज्ञान केन्द्र ने सहभागी बीज उत्पादन (Participatory Seed Production) के ज़रिए इस समस्या का हल निकाला।
बीज उत्पादन (Seed Production): जब किसानों को अच्छी गुणवत्ता के बीज मिलेंगे, तो फसल का उत्पादन अधिक होगा और जब उत्पादन अधिक होगा तो ज़ाहिर सी बात है कि उनकी आमदनी बढ़ेगी। भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (ICAR-Indian Institute of Horticultural Research) जैसी संस्थाएं समय-समय पर सब्ज़ियों के बीज की उन्नत किस्में विकसित करती रहती है। पर कई बार किसानों को पर्याप्त मात्रा में उन्नत बीज उपलब्ध नहीं हो पाते।
किसानों की ज़रूरत को पूरा करना सिर्फ़ कृषि विज्ञान केन्द्र (KVK-Krishi Vigyan Kendra) के लिए भी संभव नहीं है, ऐसे में कृषि विज्ञान केन्द्र, हिरेहल्ली ने तुमकूर ज़िले के कई किसानों को साथ लेकर सहभागी बीज उत्पादन (Seed Production) की योजना बनाई। इससे किसानों को फ़ायदा हुआ।
क्या है सहभागी बीज उत्पादन (Participatory Seed Production)
कर्नाटक के तुमकूर ज़िले के किसानों को सब्ज़ियों व अन्य फसलों के उन्नत बीज उपबल्ध कराने के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र, हिरेहल्ली इस योजना की शुरुआत की, जिसने धीरे-धीरे किसानों का रुझान बीज उत्पादन गतिविधियों में बढ़ाया और जिसका फ़ायदा राज्य के बढ़े हुए उत्पादन के रूप में सामने आया। इस योजना के तहत ज़िले के किसान वीरक्यथारायप्पा ने बीज का उत्पादन शुरू किया। पहले वो 5 एकड़ खेत में धान, रागी, लाल चना जैसी पारंपरिक फसलों का उत्पादन करते थे, लेकिन KVK की सलाह पर बीज का उत्पादन करना शुरू कर दिया।
इन बीजों का कर रहे उत्पादन
कृषि विज्ञान केन्द्र के अधिकारियों की निगरानी में बीज का उत्पादन किया गया। बाकायदा किसानों व कृषि विज्ञान केन्द्र की बीच बीज गुणवत्ता और खरीद जैसे कई विषयों पर एग्रीमन्ट हुआ। इसके तहत किसान द्वारा तैयार बीज को कृषि विज्ञान केन्द्र खरीदेगा और फिर उसे अन्य किसानों को बेचा जाएगा। पहले साल में वीरक्यथारायप्पा ने कॉटन हाइब्रिड, रागी की ML-365 किस्म, ओकरा की अर्का अनामिका और तुरई की अर्का प्रसन्ना किस्म के बीजों का उत्पादन किया।
बीज के उत्पादन से बढ़ी आमदनी
बीज का उत्पादन करने से पहले वीरक्यथारायप्पा को पारंपरिक फसलों जैसे मक्का, रागी, लाल चना जैसी फसलों के उत्पादन से सालाना एक लाख से भी कम की आमदनी होती थी। इसके अलावा, बाजरा मूल्यों में उतार-चढ़ाव और मार्केटिंग भी एक समस्या थी, मगर सहभागी बीज उत्पादन योजना में शामिल होने के बाद उन्हें सालाना 2,42,000 की आय प्राप्त होने लगी और अब उन्हें मार्केटिंग की समस्या का भी सामना नहीं करना पड़ता।
अन्य किसान भी आए आगे
वीरक्यथारायप्पा की सफलता को देखकर आसपास के अन्य किसान भी बीज का उत्पादन जैसी गतिविधि में शामिल होकर कृषि विज्ञान केन्द्र के साथ सहयोग करने के लिए आगे आए। 30 किसान कृषि विज्ञान केन्द्र की मदद से बीज उत्पादन गतिविधि शुरू कर चुके हैं। किसानों को स्थायी आमदनी प्राप्त करने के साथ ही अन्य किसानों को बेहतरीन गुणवत्तापूर्ण बीज मिलने लगे। इस योजना के शुरू होने के बाद राज्य के कुल उत्पादन और किसानों की आय में बढ़ोतरी देखी गई।
इसके अलावा इस योजना से रोजगार भी बढ़ा है क्योंकि बीज उत्पादन गतिविधि में मैनुअल क्रॉसिंग, बीज निष्कर्षण, बीज सुखाना, सफाई, पैकिंग का काम भी होता है। यानी बीज उत्पादन गतिविधियों से हर किसी को फ़ायदा होगा।
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