एकीकृत कृषि (Integrated Farming): कर्नाटक के प्रवीण ने अपनी सालना आमदनी को 47 हज़ार से 7 लाख रुपये पहुंचाया

किसान प्रवीण के पास 1.69 हेक्टेयर खेती योग्य भूमि है। प्रवीण पहले सिर्फ़ रागी, मक्का, आलू और नारियल की खेती करते थे, जिससे उन्हें सालाना करीबन 47 हज़ार की कमाई होती थी। जानिए कैसे उन्होंने अपनी आमदनी में किया इज़ाफ़ा?

एकीकृत कृषि

छोटी जोत वाले किसान एकीकृत कृषि प्रणाली का रूख कर रहे हैं। खेती के साथ बागवानी, पशुपालन, मुर्गीपालन, मछलीपान आदि गतिविधियों को अपनाकर अपनी आमदनी में इज़ाफ़ा कर रहे हैं। कर्नाटक के हसन ज़िले के वागरहल्ली गांव के रहने वाले किसान ने एकीकृत खेती की ऐसी मिसाल पेश की है कि उनके इलाके के लोग अब उन्हें रोल मॉडल मान रहे हैं। 

खेती के साथ ही अन्य गतिविधियां

किसान प्रवीण के पास 1.69 हेक्टेयर खेती योग्य भूमि है। इस ज़मीन पर उन्होंने आधुनिक तकनीक और एकीकृत कृषि के मॉडल को अपनाया हुआ है। पहले वह सिर्फ़ मक्का, रागी, आलू और नारियल की पारंपरिक खेती करते थे। एक छोटी सी डेयरी और पोल्ट्री इकाई भी चलाते थे। इससे जो आमदनी होती थी, उससे घर के बुनियादी खर्चे चलाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। फिर हसन स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में आने के बाद उन्होंने अपने फ़ार्म में कृषि से जुड़ी कई और गतिविधियां जोड़ीं। 

यंत्रों का इस्तेमाल

अब वह हाइब्रिड फसलों के उन्नत बीज का उपयोग करने के साथ ही बागवानी और रेशमकीट पालन भी करते हैं। साथ ही उन्होंने अपनी डेयरी, मुर्गीपालन और सूअर पालन यूनिट को भी उन्नत किया है। पशुओं के चारे के लिए अजोला का इस्तेमाल, वर्मीकंपोस्टिंग और फ़ार्म में मशीनों के इस्तेमाल से लागत को कम और मुनाफ़े को बढ़ाया है। 

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तस्वीर साभार: agricoop

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कैसे बढ़ी आमदनी?

प्रवीण पहले सिर्फ़ रागी, मक्का, आलू और नारियल की खेती करते थे, जिससे उन्हें सालाना करीबन 47 हज़ार की कमाई होती थी। कृषि विज्ञान केंद्र ने प्रवीण को उच्च मूल्य वाली फसलों की जानकारी दी। 

उन्होंने अदरक की खेती और रेशम कीट पालन शुरू किया जिससे उनकी आमदनी बढ़कर करीब 2 लाख 37 हज़ार रुपये हो गई। उन्होंने नारियल के पेड़ों के बीच में सहजन और पपीते की खेती शुरू की, जिससे अतिरिक्त आमदनी होने लगी। खेत के किनारों में सिल्वर ओक के पेड़ लगाकर भूमि का बखूबी इस्तेमाल किया है। घर के पीछे वह मुर्गीपालन करते हैं। उनके पास मुर्गियों की स्वर्णधारा, गिरिराजा और 20 स्थानीय नस्ले हैं। इससे उन्हें करीब 4,230 अंडे मिलते हैं। इससे करीब 49,780 रुपये की आमदनी होती है। भेड़ पालन से करीब 23,950 रुपये और सुअर पालन इकाई से 73,630 रुपये की आमदनी होती है। इस तरह से सभी गतिविधियों से उनकी सालाना कमाई 7.28 लाख रुपये के आसपास होती है।

चारे की लागत में कमी

गाय, भैंस और भेड़ को चारा खिलाने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से चारा ब्लॉक बनाया है। इसमें वो अजोला की खेती करते हैं। अजोला को खनिज मिश्रण में मिलाकर पशुओं को खिलाने से प्रतिदिन चारे की लागत में 150 रुपये की बचत होती है।

एकीकृत कृषि प्रणाली integrated farming system
तस्वीर साभार: agricoop

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उचित प्रबंधन

पानी बचाने के लिए उन्होंने नारियल के खेत में स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीक अपनाई है। साथ ही वह कोकोनट क्लाइंबर, कोकोनट डिहस्कर और साइकल वीडर जैसी मशीनों का इस्तेमाल करके खेती में लगने वाली मेहनत को कम करते हैं। इतना ही नहीं, वह खेती से निकलने वाले अपशिष्टों से वर्मीकंपोस्ट तैयार करते हैं। उनके खेत में औसतन सालाना 5,400 नारियल, 10 टन वर्मीकंपोस्ट, 5 टन गोबर, 40 टन चारा और करीब 1 लाख रुपये मूल्य की सब्ज़ियों का उत्पादन होता है। प्रवीण के सफल एकीकृत कृषि प्रणाली को देखकर इलाके के अन्य लोग भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित हुए हैं।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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