आपने अब तक पीली हल्दी (Turmeric) के बारे में ही सुना होगा। खाने में मसालों के रूप में हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि पीली के अलावा, काली हल्दी (Black Turmeric भी होती है? जी हाँ, इसके फ़ायदे बेजोड़ हैं। इसके औषधीय गुणों के कारण इसकी बाज़ार में कीमत भी ज़्यादा है। यहाँ हम आपको काली हल्दी की खेती से जुड़ी अहम जानकारियां देने जा रहे हैं।
काली हल्दी के क्या हैं उपयोग? Use of Black Turmeric/Benefits of Black Turmeric
अपने एंटीबायोटिक गुणों के कारण आयुर्वेद में काली हल्दी का इस्तेमाल जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता है। कॉस्मेटिक में भी इसका इस्तेमाल होता है। घाव भरने, मोच, त्वचा रोग, पाचन क्रिया को दुरुस्त करने और लीवर से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में काली हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है। यह कोलेस्ट्राल को कम करने में मदद करती है। काली हल्दी का वैज्ञानिक नाम Curcuma caesia है। इसे अंग्रेजी में ‘ब्लेक जेडोरी’ भी कहते हैं।
काली हल्दी की खेती के लिए जलवायु (Climate for cultivation of black turmeric)
काली हल्दी की खेती के लिए तापमान 15 से 40 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए। इसके लिए उष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। इसके पौधे पाले को भी झेलने में सक्षम होते हैं। इसके पौधे विपरीत मौसम में भी अपना अनुकूलन बनाए रखते हैं।
काली हल्दी के कंद और पौधों की पहचान (Black turmeric plants)
काली हल्दी के कंद या राईज़ोम बेलनाकार कालिमायुक्त गहरे रंग के होते हैं। सूखने पर ये ठोस क्रिस्टल में तब्दील हो जाते हैं। काली हल्दी के पौधे तना रहित 30 से 60 सेंटीमीटर ऊंचे होते हैं। पत्तियाँ चौड़ी भालाकार और पत्तियों के बीच में एक लंबी लाइन बनी होती है। काली हल्दी के पौधे पर लगने वाले फूलों का रंग गुलाबी होता है।
काली हल्दी की खेती के लिए कौन सी मिट्टी उपयुक्त?
काली हल्दी की खेती के लिए बलुई, दोमट, मटियार, मध्यम पानी पकड़ने वाली भूमि सबसे अच्छी होती है। ध्यान रहे कि चिकनी काली मुरूम मिश्रित मिट्टी में काली हल्दी के कंदों का विकास नहीं होता है। मिट्टी में भरपूर जीवाश्म होना चाहिए। जल भराव या कम उपजाऊ भूमि में इसकी खेती नहीं की जा सकती है। इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए।
काली हल्दी की खेती के लिए खेत की तैयारी
मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करें। खेत को धूप लगने के लिए कुछ दिनों तक खुला छोड़ दें। फिर निर्धारित मात्रा में गोबर की खाद डालकर उअच्छे से मिट्टी में मिला लें। खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की दो से तीन बार तिरछी जुताई कर दें। जुताई के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेवा कर दें। पलेवा करने के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखने लगे तब खेत की फिर से जुताई करें। उसमें रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लें। इसके बाद खेत को समतल कर दें।
बुवाई का समय और बीज की मात्रा
बारिश के मौसम में काली हल्दी के पौधों की बुवाई जून-जुलाई महीने में की जा सकती है। सिंचाई के पर्याप्त साधन होने पर इसे मई महीने में भी लगाया जा सकता है। काली हल्दी की खेती में प्रति हेक्टेयर लगभग 20 क्विंटल बीज (कंद) की मात्रा लगती है।
कैसे करें काली हल्दी का बीजोपचार?
इसके कंदों को रोपाई से पहले बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए। वाविस्टिन के 2 प्रतिशत घोल में कंद 15 से 20 मिनिट तक डुबोकर रखना चाहिए क्योंकि इसकी खेती में बीज पर ही अधिक खर्चा होता है।
कैसे करें काली हल्दी की रोपाई?
काली हल्दी के कंदों की रोपाई कतारों में की जाती है। प्रत्येक कतार के बीच डेढ़ से 2 फ़ीट की दूरी होना चाहिए। कतारों में लगाये जाने वाले कंदों के बीच की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर के आसपास होनी चाहिए। कंदों की रोपाई ज़मीन में 7 सेंटीमीटर गहराई में करनी चाहिए। पौध के रूप में इसकी रोपाई मेढ़ बनाकर की जाती है। प्रत्येक मेढ़ के बीच एक से सवा फ़ीट की दूरी होनी चाहिए। मेढ़ पर पौधों के बीच की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए। मेढ़ की चौड़ाई आधा फ़ीट के आसपास होनी चाहिए।
कैसे तैयार करें काली हल्दी की पौध?
काली हल्दी की रोपाई इसकी पौध तैयार करके भी की जा सकती है। इसकी पौध तैयार करने के लिए इसके कंदों की रोपाई ट्रे या पॉलीथिन में मिट्टी भरकर की जाती है। इसके कंदों की रोपाई करने से पहले बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए। इसके कंद नर्सरी में रोपाई के दो महीने बाद खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। एक हेक्टेयर में 1100 पौधे लगते हैं। पौधों की रोपाई बारिश के मौसम के शुरूआत में की जाती है।
कब करें सिंचाई?
काली हल्दी के पौधों को ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती। इसके कंदों की रोपाई नमी युक्त ज़मीन में की जाती है। इसके कंद या पौध रोपाई के तुरंत बाद, सिंचाई कर देनी चाहिए। हल्के गर्म मौसम में इसके पौधों को 10 से 12 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए। सर्दी के मौसम में 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।
खाद-उर्वरक
खेत की तैयारी के समय आवश्यकतानुसार पुरानी गोबर की खाद मिट्टी में मिलाकर पौधों को देना चाहिए। प्रति एकड़ 10 से 12 टन सड़ी हुई गोबर खाद मिलाना चाहिए। घर पर तैयार किये गये जीवामृत को पौधों की सिंचाई के साथ देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण निराई-गुड़ाई के ज़रिए किया जाता है। पौधों की रोपाई के 25 से 30 दिन बाद हल्की निराई-गुड़ाई करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए 3 गुड़ाई काफ़ी हैं। प्रत्येक गुड़ाई 20 दिन के अंतराल पर करें। रोपाई के 50 दिन बाद गुड़ाई बंद कर देनी चाहिए नहीं तो कंदों को नुकसान पहुंचता है।
मिट्टी चढ़ाना और कीट नियंत्रण कैसे करें?
रोपाई के दो महीने बाद पौधों की जड़ों में मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। हर एक से दो महीने बाद मिट्टी चढ़ानी चाहिए। कीटों की रोकथाम के लिए जैविक कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं।
कंदो की खुदाई और पैदावार
इसकी फसल रोपाई के करीबन 250 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कंदों की खुदाई जनवरी से मार्च तक की जाती है। इसकी पैदावार 2 से ढाई किलो प्रति पौधा होना अनुमानित है। एक हेक्टेयर में 1100 पौधे लगते हैं, जिनसे 48 टन पैदावार होती है। प्रति एकड़ लगभग 12 से 15 टन पैदावार होती है, जो सूखकर 1 से 1.5 टन रह जाती है।
लेखक:
राजेश कुमार मिश्रा
सीनियर हॉर्टिकल्चर ऑफ़िसर (रिटायर्ड)
सागर, मध्य प्रदेश
राजेश कुमार मिश्रा से आप इस ईमेल आईडी पर संपर्क कर सकते हैं: [email protected]
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- बिहार के पूर्णिया में पशुपालकों के लिए वरदान: देश की तकनीक से बनी ‘Sex Sorted Semen Facility’ का उद्घाटनप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने 15 सितंबर को पूर्णिया स्थित एक अत्याधुनिक सीमन स्टेशन पर ‘Sex Sorted Semen Facility’ (लिंग-चयनित वीर्य सुविधा) का उद्घाटन किया। ये न केवल बिहार बल्कि पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत की पहली ऐसी सुविधा है, जिसे ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भावना के तहत स्वदेशी तकनीक ‘Gausort’ से लैस किया गया है।
- Rabi Campaign 2025: पूसा सम्मेलन में तय हुई रबी की रणनीति, अब भारत बनेगा दुनिया की Food Basketनई दिल्ली स्थित पूसा में 15 से 16 सिंतंबर से चल रहे दो दिवसीय ‘राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन-रबी अभियान 2025’ (‘National Agriculture Conference – Rabi Campaign 2025’) कृषि क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत का संकेत दे रहा है।
- India’s Dairy Revolution: NDDB में महाशक्तिशाली सांड़ ‘वृषभ’ का जन्म, सुपर बुल और Genomic Selection से तकनीक का चमत्कारराष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (National Dairy Development Board) ने हाल ही में देश के पहले ‘Super Bull’ यानी महाशक्तिशाली सांड़ ‘वृषभ’ के जन्म की घोषणा की है। ये कोई आम सांड़ नहीं है, बल्कि अत्याधुनिक जीनोमिक चयन (Genomic Selection) और इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन–एंब्रियो ट्रांसफर (IVF-ET) तकनीक का चमत्कार है।
- प्राकृतिक खेती से गांव में नई पहचान बना रहे हैं हिमाचल के रहने वाले रोहित सापड़ियाप्राकृतिक खेती अपनाकर रोहित सापड़िया ने कैसे अपनी ज़िंदगी बदली, ख़र्च कम किया और दूसरों को भी खेती की ओर प्रेरित किया, जानिए।
- Rabi Abhiyan 2025: ‘एक राष्ट्र-एक कृषि-एक टीम’ के संकल्प के साथ तैयार होगा New Action Planदिल्ली में 2 दिवसीय ‘राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन-रबी अभियान 2025’ (Two-day ‘National Agriculture Conference – Rabi Abhiyan 2025’) का आगाज़ हो गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में हो रहे इस सम्मेलन का उद्देश्य न सिर्फ आगामी रबी सीज़न 2025-26 के उत्पादन लक्ष्यों को तय करना है, बल्कि Integrated Strategy के ज़रिए देश के किसानों की आमदनी बढ़ाना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए स्ट्रैटजी बनानी है।
- खुशबू और सफलता की नई कहानी: सीमैप की ‘Kharif Mint Technology’ ने बदल दी मेंथा की खेती का नक्शाCentral Institute of Medicinal and Aromatic Plants (सीमैप – CIMAP), लखनऊ के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी क्रांतिकारी टेक्नोलॉजी डेवलप की है जो मेंथा की खेती के पुराने नियमों को ही बदल देती है।
- AI-Based Weather Forecasting: AI की बदौलत बारिश की हर बूंद का अंदाजा! अब नहीं होगी मेहनत बेकार, मिलेगा अगले 4 हफ्ते का पूरा प्लानभारत सरकार ने कृषि क्षेत्र में एक ऐतिहासिक और दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रोग्राम शुरू किया है- एआई-आधारित मौसम पूर्वानुमान (AI-based weather forecasting)। ये सिर्फ एक टेक्नोलॉजी प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि करोड़ों किसानों की जिंदगी बदलने का एक ज़रिया है।
- रजीना देवी की सफलता की कहानी प्राकृतिक खेती से मिली नई राहरजीना देवी की प्रेरणादायक सफलता कहानी, जहां प्राकृतिक खेती ने कम लागत और अधिक लाभ से उन्हें नई पहचान दिलाई।
- European Union ने भारतीय मत्स्य निर्यात के लिए खोले नए द्वार, 102 और फर्मों को मिली मंज़ूरीयूरोपीय संघ (European Union) दुनिया के सबसे बड़े और सबसे सख्त मानकों वाले आयात बाजारों में से एक है। उसके खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता के मानक (Food safety and quality standards) काफी हाई हैं। ऐसे में, 102 नई यूनिट्स का मंजूरी पाना इस बात का प्रमाण है कि India’s export control mechanism (एक्सपोर्ट इंस्पेक्शन काउंसिल – EIC) कितना मजबूत और भरोसेमंद है।
- Mushroom Production Training से सहरसा की महिलाएं लिख रहीं आत्मनिर्भरता की कहानी, दे रहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूतीबिहार के सहरसा ज़िले (Saharsa district of Bihar) अगवानपुर के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) में आयोजित चार दिवसीय मशरूम प्रोडक्शन ट्रेनिंग (Mushroom production training) ने न सिर्फ महिलाओं को एक नई राह दिखाई है, बल्कि उन्हें ‘आत्मनिर्भर भारत’ की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया है।
- हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने किसानों के लिए विकसित की गेहूं की नई क़िस्म WH 1309गेहूं की नई क़िस्म WH 1309 पछेती बिजाई के लिए वरदान है, अधिक पैदावार और रोगरोधी गुणों के साथ किसानों को देगा स्थिर लाभ।
- Role of Technology in Agriculture: कृषि में प्रौद्योगिकी की भूमिका से बदल रहा है भारतीय खेती का भविष्यकृषि में प्रौद्योगिकी की भूमिका किसानों की आय, पैदावार और आत्मनिर्भरता बढ़ा रही है। जिससे भारत में खेती-किसानी की तस्वीर बदल रही है।
- Rangeen Machhli App: ICAR का ‘रंगीन मछली’ ऐप जो दे रहा सजावटी मत्स्य पालन और आजीविका के अवसरों को बढ़ावाRangeen Machhli App सिर्फ एक साधारण जानकारी देने वाला टूल नहीं है, बल्कि ये मछली पालन के शौकीनों (hobbyists), किसानों और बिजनेसमैन के लिए एक पूरी गाइड है। आइए जानते हैं इसकी ख़ास बातें।
- सफ़ेद चादर-सा काशी फूल: झारखंड की संस्कृति और जीवन से जुड़ी अनोखी पहचानझारखंड की संस्कृति और जीवन से जुड़ा काशी फूल शरद ऋतु का प्रतीक है। यह फूल आजीविका और धार्मिक महत्व दोनों में अहम भूमिका निभाता है।
- National Gopal Ratna Award 2025: देश के डेयरी किसानों और तकनीशियनों का सर्वोच्च सम्मान, जानिए कैसे करें अप्लाईराष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार 2025 (National Gopal Ratna Award 2025) देश के डेयरी किसानों, सहकारी समितियों और तकनीशियनों (Dairy farmers, co-operatives and technicians) के लिए एक शानदार अवसर है। ये न केवल एक Prestigious honors और Financial Aid प्रदान करता है, बल्कि देश के Dairy Sector में वैज्ञानिक और टिकाऊ तरीकों को अपनाने के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन भी है।
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के 5 साल, क्या कहते हैं मछली पालन से जुड़े ताज़ा आंकड़े?प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना: ब्लू इकोनॉमी की ताकत, तकनीक और रोजगार से बदल रहा है भारत का मत्स्य क्षेत्र।
- सरस आजीविका मेला 2025: Vocal for Local और ग्रामीण आजीविका का संगम 22 सितंबर तक22 सितंबर तक दिल्ली में आयोजित सरस आजीविका मेला 2025, लखपति दीदियों और ग्रामीण महिलाओं के उत्पाद, संस्कृति, वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत का उत्सव है।
- गोबर से कागज़ और राखियां बनाकर जयपुर के भीमराज शर्मा ने शुरू किया अनोखा एग्री बिज़नेसगोबर से कागज़ और राखियां बनाकर एग्री बिज़नेस में जयपुर के भीमराज शर्मा ने पर्यावरण हितैषी नवाचार से नई पहचान बनाई।
- जामताड़ा ज़िले में मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना से पशुपालकों को आत्मनिर्भरता की राहमुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना से जामताड़ा के किसानों को मिला चूज़ा वितरण का लाभ, पशुपालन से आत्मनिर्भरता की नई राह।
- अडबंधा में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम से किसानों की आमदनी बढ़ी, मछली पालन बना आजीविका का नया साधनमहात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम से अडबंधा में बने कृषि तालाब से सिंचाई और मछली पालन से किसानों की आय बढ़ी।