खेती की लागत में सिंचाई, खाद और गुड़ाई-निराई जैसी तीन गतिविधियों का बहुत बड़ा हिस्सा होता है। इसीलिए यदि इसकी लागत घटायी जा सके तो किसानों की आमदनी ख़ासी बढ़ सकती है। इन तीनों काम के लिए खेत में लगे पौधों को बूँद-बूँद पानी देने वाली टपक सिंचाई विधि या ड्रिप इरीगेशन सिस्टम लाज़बाब है, क्योंकि इससे 30 से 60 प्रतिशत पानी और 30 से 45 प्रतिशत रासायनिक उर्वरक की बचत होती है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, चूँकि टपक सिंचाई से पानी सीधे पौधों के जड़ों के नज़दीक दिया जाता है इसलिए आसपास की सूखी मिट्टी में अनावश्यक खरपतवार भी नहीं पनपते हैं और मिट्टी के पोषक तत्वों का उपयोग सिर्फ़ पौधे ही करते हैं। इस तरह, टपक सिंचाई से उच्च गुणवत्ता वाली ज़्यादा पैदावार मिलती है जिसका बाज़ार में ज़्यादा दाम मिलता है। ये तकनीक उन खेतों के लिए शानदार साबित होती है जो शुष्क और अर्द्धशुष्क कहलाते हैं।

टपक सिंचाई विधि का लाभ जहाँ कपास, गन्ना, मक्का, मूँगफली, ग़ुलाब और रजनीगन्धा आदि फ़सलों में भी लिया जा सकता है, वहीं फलों और सब्ज़ी की बाग़वानी में तो ये बेजोड़ साबित होती है। क्योंकि अनाज और अन्य नगदी फ़सलों के मुक़ाबले फल-सब्जी की खेती को ज़्यादा तथा नियमित सिंचाई की ज़रूरत होती है। टपक सिंचाई लम्बी अवधि वाली फसलों जैसे – सेब, अंगूर, सन्तरा, नीबू, केला, अमरूद, शहतूत, खजूर, अनार, नारियल, बेर, आम आदि के अलावा टमाटर, बैंगन, खीरा, लौकी, कद्दू, फूलगोभी, बन्दगोभी, भिंडी, आलू और प्याज़ जैसी सब्जियों की खेती के लिए भी बेहद उपयोगी साबित होती है।
क्या है टपक सिंचाई विधि?
पौधों की जड़ों में सिर्फ़ ज़रूरत के अनुसार ही पानी देने की इस तकनीक की खोज 1960 के दशक में इस्राइल में हुई लेकिन देखते ही देखते ये सारी दुनिया और ख़ासकर पानी के अभाव से जूझ़ने वाले देशों ख़ासकर खाड़ी के देशों में बेहद लोकप्रिय हो गयी। टपक सिंचाई विधि में पानी को पतले पाइप्स के नेटवर्क के ज़रिये सतत बूँदों के रूप में धीमी गति से पौधों के जड़-क्षेत्र में पहुँचाया जाता है। इसमें पानी का वाष्पन और उसकी ख़पत भी न्यूनतम होती है। इसी विधि से खाद के पोषक तत्व भी पानी में घुलकर सटीक जगह तक पहुँचते हैं।
टपक सिंचाई विधि के लाभ
- पानी कम, पैदावार ज़्यादा: टपक सिंचाई से पेड़-पौधे ज़रूरी मात्रा में पानी पाते हैं। इससे वो तनाव-मुक्त रहते हैं और सिंचाई की अन्य परम्परागत विधियों के मुक़ाबले 30 से 60 प्रतिशत तक पानी बचता है तथा सही अनुपात में पानी मिलने से पैदावार 20 से 50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
- ज़मीन: टपक सिंचाई विधि से पथरीली, ऊबड़-खाबड़, बंजर और शुष्क ज़मीन, पानी के कम रिसाव वाली और अल्प वर्षा वाली क्षारीय तथा समुद्र तटीय मिट्टी में भी खेती हो सकती है।
- रासायनिक खाद की बचत: टपक विधि से रासायनिक खाद को भी पानी में घोलकर सीधे पौधों की जड़ों तक भेजा जाता है ताकि पोषक तत्व सिर्फ़ अपेक्षित पेड़-पौधों तक ही पहुँचें। इससे एक ओर पैदावार में वृद्धि होती है तो दूसरी ओर 30 से 45 प्रतिशत तक रासायनिक खाद की बचत होती है।
- खरपतवार नियंत्रण: टपक सिंचाई वाले खेतों में आवश्यक पेड़-पौधों के आसपास की वो मिट्टी सूखी रहती है जहाँ खरपतवार पनपना चाहते हैं लेकिन उन्हें सूखी ज़मीन से अपेक्षित पोषक तत्व और नमी नहीं मिल पाती। खरपतवार के नहीं पनप पाने की वजह से गुड़ाई-निराई की मज़दूरी और खरपतवारनाशक के ख़र्च की बचत होती है।
- कीट और रोग नियंत्रण: टपक सिंचाई से पेड़-पौधों का स्वस्थ और समुचित विकास होता है। इससे उनमें कीटों और रोगों का मुक़ाबला करने की भी ज़्यादा क्षमता होती है। इससे कीटनाशकों पर होने वाले ख़र्च भी कम होता है।
- प्रदूषित जल का उपयोग: टपक सिंचाई विधि को उन इलाकों के लिए भी बेहद उपयोगी बनाया जा सकता है जहाँ साफ़ और उपयुक्त पानी उपलब्ध नहीं है। ऐसी जगहों पर प्रदूषित पानी को फिल्टर करके सिंचाई के काम में लाया जा सकता है।
टपक सिंचाई विधि की कार्यप्रणाली
टपक सिंचाई विधि को मिट्टी की नमी के स्तर को नियंत्रित करने वाले सेंसर लगाकर स्वचालिक या ऑटोमैटिक बनाया जाता है। इसके लिए पारम्परिक ड्रिप इरीगेशन के उपकरणों – सिंचाई कंट्रोलर, मोटर रिले और सोलेनोइड वाल्व के नेटवर्क के साथ मिट्टी की नमी पर हमेशा नज़र रखने वाले सेंसर को भी जोड़ दिया जाता है। इस सेंसर को खेत में पौधे की जड़ के पास मिट्टी में दबा दिया जाता है।
कंट्रोलर को सेंसर से मिले संकेतों के अनुसार ही खेतों में जा रहे पाइप के बीच में लगे सोलेनोइड वाल्व खुलते और बन्द होते हैं। टपक सिंचाई विधि में विभिन्न फ़सलों की पानी की ज़रूरत के हिसाब से कंट्रोलर में जैसी सेंटिंग की जाती है उसी के अनुसार बूँदों के टपकने की रफ़्तार कम-ज़्यादा या बन्द हो सकती है। इससे पौधों की पत्तियाँ अपना ज़्यादा भोजन बना पाती हैं और पैदावार बढ़ती है।

टपक सिंचाई के उपकरण
टपक सिंचाई संयंत्र के प्रमुख उपकरण के नाम हैं: हेडर असेंबली, फिल्टर्स-हायड्रोसाइक्लोन, सैंड और स्क्रीन फिल्टर्स, रसायन और खाद देने के साधन – व्हेंचुरी, फर्टिलाइजर टैंक, मेन लाइन, सबमेन लाइन, वॉल्व, लेटरल पंक्ति (पॉलीट्यूब) और एमीटर्स – ऑनपंक्ति / इनपंक्ति / मिनी स्प्रिंक्लर / जेट्स।
टपक सिंचाई संयंत्र की देखभाल
- पम्प शुरू करने के बाद और संयंत्र का दबाव स्थिर होने पर सैंड फिल्टर की बैकवॉशिंग रोज़ाना करनी चाहिए। हाइड्रोसाइक्लोन आरम्भिक सफ़ाई के बाद प्रत्येक 5-6 घंटे या पानी की गुणवत्ता के अनुसार समय-समय पर फिल्टर्स साफ़ करने चाहिए।
- फिल्टर की सफ़ाई के बाद हेडर असेम्बली के बाइपास वॉल्व की सहायता से उचित दाब नियंत्रित करना चाहिए। उपयुक्त दबाव पर चलने वाले संयंत्र से पानी सभी जगह समान मात्रा में मिलता है।
- खेतों में निरीक्षण करके देखें कि पाइप में कहीं कोई टूट-फूट या लीकेज़ तो नहीं हो रही या कोई पाइप मुड़ा हुआ या दबा हुआ तो नही है। ऐसा हो तो इसे फ़ौरन दुरुस्त करें।
- ध्यान रखें कि टपक संयंत्र के सभी ड्रिपर्स से पानी ठीक ढंग से और सही जगह पर ही गिरे। अन्यथा, ज़रूरी उपायों से सुनिश्चित करें कि ज़मीन के गीलेपन में एकरुपता हो।

टपक सिंचाई विधि की लागत
सिंचाई की इस सबसे उम्दा तकनीक को अपनाने की शुरुआती लागत (installation cost) इस बात पर निर्भर करती है कि इसे किस इलाके में स्थापित होना है, वहाँ की मिट्टी की गुणवत्ता, बुवाई का पैटर्न, पानी की गुणवत्ता और उपकरणों की गुणवत्ता कैसी है तथा इसका इस्तेमाल किस फ़सल के लिए होना है? मसलन, सब्जी की फ़सलों के लिए टपक सिंचाई प्रणाली स्थापित करने की लागत प्रति एकड़ खरीब 50 से 65 हज़ार रुपये बैठती है, तो फलों की खेती के लिए इसका खर्च 35 से 40 हज़ार रुपये प्रति एकड़ बैठ सकता है। यदि अच्छी क्वालिटी के ISI मार्क वाले उपकरण इस्तेमाल किये जाएँ तो ये 7 से 10 साल तक प्रभावी ढंग से काम कर सकते हैं।
टपक सिंचाई के लिए सरकार मदद
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत केन्द्र सरकार प्रति लाभार्थी को 5 हेक्टेयर तक के क्षेत्र में टपक सिंचाई संयंत्र स्थापित करने के लिए सब्सिडी देती है। सब्सिडी की मात्रा के लिए देश के इलाकों जैसे पहाड़ी, मैदानी, रेगिस्तानी, शुष्क, तटीय आदि श्रेणियों के अनुसार होती है। इस बारे में और जानकारी पाने के लिए या तो प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की वेबसाइट https://pmksy.gov.in/ पर जाएँ या फिर अपने नज़दीकी कृषि कार्यालय से सम्पर्क करें।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- Subsidy On Marigold Cultivation: बिहार सरकार की बड़ी पहल, गेंदे की खेती पर किसानों को मिलेगी 50 फीसदी सब्सिडीअगर आप भी गेंदे की खेती (Subsidy On Marigold Cultivation) करके अच्छी कमाई करना चाहते हैं, तो यह खबर आपके लिए ही है, आइए, जानते हैं कि कैसे मिलेगा इस स्कीम का लाभ और क्या हैं गेंदे की खेती से होने वाले फायदे।
- 14 खरीफ़ फसलों की MSP में हुई बढ़ोतरी, रामतिल को मिला सबसे ज़्यादा फ़ायदाप्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने खरीफ़ विपणन सीज़न 2025-26 के लिए 14 फसलों के MSP में वृद्धि को मंजूरी दी है। सबसे ज़्यादा बढ़ोतरी रामतिल, रागी, तिल और कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य में की गई है ताकि किसानों को लाभकारी मूल्य मिल सके।
- PM Modi Vision On Seafood And Solar Energy : पीएम मोदी ने समुद्री भोजन से लेकर ग्रीन हाइड्रोजन के लिए रखी रूपरेखाउन्होंने 53,400 करोड़ रुपये से अधिक की विकास योजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण (PM Modi Vision On Seafood And Solar Energy) किया, जिससे कच्छ अब देश का सबसे तेजी से उभरता हुआ आर्थिक केंद्र बनने जा रहा है।
- भूपेश रेड्डी: जब एक MBA ग्रेजुएट बना किसानों का साथी, जेडीआर एग्रीटेक का एग्री मिशनजब ज़्यादातर लोग गांव छोड़कर शहर की ओर भागते हैं, भूपेश रेड्डी ने विपरीत रास्ता चुना। एक एमबीए ग्रेजुएट होते हुए भी उन्होंने कॉरपोरेट दुनिया को छोड़, किसानों के साथ ज़मीन पर उतरने का फैसला लिया। उनके नेतृत्व में JDR Agritech आज ग्रामीण नवाचार और कृषि-उद्यमिता का नया मॉडल बन गया है।
- India’s Largest Frozen Potato Processing Plant : आलू किसानों को मिलेगा फायदा, बढ़ेगी रोज़गार की संभावनाएंये प्लांट न सिर्फ भारत का सबसे बड़ा फ्रोज़न आलू प्रोसेसिंग प्लांट (India’s largest frozen potato processing plant)है, बल्कि ये देश को ग्लोबल फ्रोज़न फूड मैन्युफैक्चरिंग हब (Global Frozen Food Manufacturing Hub) बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम भी है।
- High-Resolution Global Forecast Model: मौसम की सटीक जानकारी देने के लिए लॉन्च हुआ विकसित हाई-रिजोल्यूशन ग्लोबल फोरकास्ट मॉडल (BFS)विकसित हाई-रिजोल्यूशन ग्लोबल फोरकास्ट मॉडल (High-Resolution Global Forecast Model) से किसानों को मिलेगी तेज और सटीक Weather Update अब खेती होगी और सुरक्षित।
- चारू फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट से लेकर इंटीग्रेटेड फ़ार्मिंग तक, सूमि बरदलोई की ग्रामीण क्रांतिसंस्कृत की टीचर से महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनीं असम की सूमि बरदलोई। जानिए कैसे उनके प्रोसेसिंग यूनिट और एकीकृत फ़ार्मिंग मॉडल ने बदली गांव की महिलाओं की तस्वीर।
- Viksit Bharat Sankalp Padyatra: विकसित भारत की ओर बढ़ते कदम,शिवराज सिंह चौहान की पदयात्रा ने जगाई नई उम्मीदकेंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री की ‘विकसित भारत संकल्प पदयात्रा’ (Viksit Bharat Sankalp Padyatra) के दूसरे दिन भी जनता के बीच ज़बरदस्त उत्साह देखने को मिला। गांव-गांव जाकर लोगों से रूबरू हुए।
- Setup Of Biogas Plant: पशुधन के गोबर से बायोगैस प्लांट, खाना पकाने से लेकर बिजली उत्पादन तक में उपयोगपशुधन के गोबर से बायोगैस प्लांट अब गांवों में रसोई गैस से लेकर बिजली उत्पादन तक का समाधान बन रहे हैं। जानिए इस टिकाऊ तकनीक के फायदे, उपयोग और ग्रामीण विकास में इसकी भूमिका।
- Multilayer Farming का कॉन्सेप्ट लाने वाले ये हैं आकाश चौरसिया, जानिए इस स्मार्ट फ़ार्मिंग की हर तकनीकमल्टीलेयर फ़ार्मिंग (Multilayer Farming) तकनीक से आकाश चौरसिया ने शुरू की क्रांतिकारी खेती, 10 डेसिमल से 28 एकड़ तक का सफर बना मिसाल।
- Why Are Leher Drones The Future Of Smart Farming? लेहर ड्रोन स्मार्ट खेती का भविष्य क्यों है?लेहर ड्रोन (Leher Drones) से छिड़काव मैन्युअल छिड़काव विधियों की तुलना में ज़्यादा सटीक है। यह किसानों के हानिकारक रसायनों के संपर्क में आने को भी कम करता है।
- PM Modi ने मन की बात में की ‘सोन हनी’, Bee Friends और तेलंगाना की ड्रोन दीदियों की सराहनाप्रधानमंत्री मोदी ने भारत में शहद उत्पादन में हुई ‘Sweet Revolution’ की बात की। उन्होंने बताया कि जहां 10-11 साल पहले उत्पादन 70-75 हज़ारमीट्रिक टन होता था, वहीं अब ये बढ़कर करीब 1.25 लाख मीट्रिक टन हो चुका है यानी 60% की बढ़ोतरी।
- The Magic of Honey Bees: एड्स और कैंसर जैसी ख़तरनाक बीमारी का इलाज छुपा है इनके डंक में! रिसर्च में खुलासामधुमक्खी (The Magic of Honey Bees) एड्स (HIV) और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का इलाज भी कर सकती है? जी हां! हाल ही में वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि मधुमक्खी के डंक में पाया जाने वाला एक खास प्रोटीन “मेलिटिन” (Melittin) इन बीमारियों से लड़ने में कारगर हो सकता है।
- अब नहीं होगी राशन की बर्बादी, केंद्र सरकार करेगी 1280 करोड़ से PDS और गोदामों का कायाकल्पदेश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System) की और मजबूती के लिए केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लिया है। गोदामों को आधुनिक बनाने के लिए 1280 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे।
- Viksit Krishi Sankalp Abhiyan: वैज्ञानिकों और किसानों का मिलन, कृषि संस्थानों की ताकत अब पूरी दुनिया पहचानेगीकेंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान (Union Agriculture, Farmers Welfare and Rural Development Minister Shivraj Singh Chouhan) के नेतृत्व में “विकसित कृषि संकल्प अभियान” (Viksit Krishi Sankalp Abhiyan) की तैयारियां अपने अंतिम चरण में हैं।
- भारत का मछली पालन क्षेत्र (Fisheries Sector) कर रहा है सबसे तेज़ ग्रोथ! क्या कहते हैं आकंड़े?समंदर से तालाब तक, भारत का मत्स्य पालन (Fish Farming) क्षेत्र ग्रामीण भारत की नई आशा बन रहा है। भारत का मत्स्य और तटीय क्षेत्र न केवल देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि लाखों ग्रामीण और तटीय परिवारों के लिए रोज़गार का मुख्य साधन भी है।
- प्रधानमंत्री मोदी ने किया Rising NorthEast Summit 2025 का उद्घाटन, पूर्वोत्तर को बताया विकास का नया केंद्रRising North East Summit 2025 में PM मोदी ने पूर्वोत्तर को बताया विकास का अगुवा, निवेश को बढ़ावा देने की रणनीति साझा की।
- मूंगफली की कटाई और पोस्ट-हार्वेस्ट मैनेजमेंट: फ़सल की गुणवत्ता कैसे बनाए रखें?मूंगफली की कटाई (Groundnut Harvesting) के सही समय, सूखाने की विधियां और भंडारण तकनीक से फ़सल की गुणवत्ता बनाए रखें और बाज़ार मूल्य में बढ़ोतरी करें।
- मिट्टी से सोना उगाने वाले चरणजीत सिंह: वो प्रगतिशील किसान जिसने खेती को बनाया करोड़ों का व्यवसाय!चरणजीत सिंह (Progressive farmer of Uttarakhand) ने अपने खेत को एक स्वावलंबी इकाई (self supporting unit) के रूप में डेपलप किया है। उनके फार्म पर आपको हर तरह की गतिविधियां एक साथ चलती दिखेंगी।
- लातूर के किसान महादेव गोमारे ने बांस की खेती और पोषण गार्डन मॉडल से बदली क़िस्मतमहादेव गोमारे ने लातूर में बांस की खेती और पोषण गार्डन मॉडल से बदली किसानों की तक़दीर, बने समाज बदलाव की अनूठी मिसाल।