अच्छी फसल में बीज की अहम भूमिका होती है। पुराने ज़माने में किसान हर साल अगले साल के लिए बीज खुद ही सुरक्षित रख लेते थे। लेकिन अब बदलते समय के साथ खेती की तकनीक बदल रही है और किसान पुरानी परंपरा को भूलकर हाइब्रिड बीज की तरफ भागने लगे हैं। किसान देसी बीजों को सहेजना ही भूल गए है। इसका नतीजा ये हुआ है कि देसी बीज को धीरे-धीरे किसान खो चुके हैं। हाइब्रिड बीजों से फसल तो अच्छी हो जाती है, लेकिन स्वाद और पौष्टिकता कम हो गई। इससे खेती की लागत बढ़ गई है लेकिन किसान विदेशी कंपनियों पर आश्रित हो गए है क्योंकि हाइब्रिड बीज ज़्यादातर देशी कंपनियां ही बनाती है। बीजों की सुरक्षित रखने की परंपरा और देसी बीजों को सुरक्षित रखना क्यों ज़रूरी है, इस बेहद ही अहम मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह ने बात की किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता गौरव मनराल के साथ।
देसी बीज को सहेजने की परंपरा
प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह बताते हैं कि देसी बीज का मतलब है पारंपरिक बीज। इसे हमारे पूर्वज सहेजते आए हैं और ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता है। बुंदेलखंड में बीजों को सरंक्षित करने के लिए सावन के महीने में बीजोत्सव मनाते हैं। इसे कजीलिया कहा जाता है। इस परंपरा के तहत हर साल बीजों के लिए खेत बदल दिया जाता है यानी एक खेत के बीज को अगले साल दूसरे खेत में बोया जाता है। और फिर तीसरे साल एक गांव के बीज को दूसरे गांव में बोया जाता है। इस परंपरा का फायदा ये होता है कि इससे बीज का संवर्धन हो जाता है। इससे बीजों में हर तरह की मिट्टी और वातावरण को सहने की क्षमता विकसित हो जाती है। प्रेम सिंह का मानना है कि हर क्षेत्र में इस तरह की कोई परंपरा ज़रूरी होगी। अगर इन परंपराओं के बारे में जानकारी हो और इसका ठीक से पालन किया जाए तो आसानी से देसी बीजों को संरक्षित किया जा सकता है।
हाइब्रिड बीजों से स्वाद और पौष्टिकता खत्म हो रही है
प्रेम सिंह का मानना है कि हाइब्रिड वैरायटी से भले ही फसल का उत्पादन कुछ समय के लिए ज़्यादा होता है, लेकिन इससे स्वाद और पौष्टिकता कम होती जा रही है। जैसे दाल में प्रोटीन कम हो रहा है, गेहूं में कार्होबाइड्रेट घट रहा है। इससे सेहत को भी नुकसान होता है। हाइब्रिड बीज में एक बीज के गुण को दूसरे में और दूसरे बीज के गुण को तीसरे में डाला जाता है, जिससे निरंतरता नहीं रहती है और पौष्टिकता तो कम हो ही जाती है।
पहले बीजों की लागत शून्य थी
प्रेम सिंह कहते हैं कि सालों पहले तक किसान अपने बीज खुद ही तैयार करके सुरक्षित रखते थे। उन्होंने अपनी दादी के समय तक किसानों को ऐसा करते देखा है। उस समय किसान जब फसल पकने वाली होती थी, तो अच्छी गुणवत्ता वाली कुछ फसलों को चुनकर अगले साल के लिए बीज के रूप में रख लेते थे। जैसे अरहर की फसल से कुछ अच्छी फलियां तोड़ लीं, गेहूं के कुछ अच्छे बाल तोड़ लाएं और उसे आंगन में रोज़ धूप में सुखाकर अगले साल के लिए सुरक्षित कर लेते थे। इसमें कोई लागत नहीं आती थी और किसान आत्मनिर्भर बनता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब किसान विदेशी कंपनियों द्वारा तैयार हाइब्रिड बीज खरीद रहे हैं और जब ये बीज वातावरण के मुताबिक नहीं होते हैं तो इसके लिए किसानों को कीटनाशक आदि खरीदना पड़ता है।
ये कीटनाशक भी विदेशी कंपनियां ही बनाती हैं। इससे किसानों की लागत लगातार बढ़ने लगती है और मुनाफा कम होने लगता है। जबकि देसी बीज को सुरक्षित रखने पर ऐसा नहीं होता। हाइब्रिड बीज के ज़्यादा इस्तेमाल से देश का पैसा विदेशों में जा रहा है और किसानों की आत्मनिर्भरता कम हो रही है। प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह का मानना है कि अब तक अधिकांश फसलों के बेहतरीन गुणवत्ता वाले देसी बीज हम खो चुके हैं।
प्रेम सिंह का मानना है कि देसी बीज को सुरक्षित रखने की पहल अगर अब भी की जाए तो किसान आगे होने वाले अपने नुकसान को थोड़ा कम कर सकते हैं। अगर आप बीजों को सुरक्षित और संरक्षित करने से जुड़े सवाल किसान प्रेम सिंह से पूछना चाहते हैं, तो हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं।
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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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