लहसुन कंद वाली फसल है। प्याज़ के बाद देश में इसकी ज़बरदस्त मांग है। मसाले के रूप में इस्तेमाल होने के साथ ही आयुर्वेद में इसे दवा भी माना गया है। लहसुन की मांग सिर्फ़ देश ही नहीं, विदेशों में भी है। भारत बड़े पैमाने पर इसका निर्यात करता है, लेकिन कई बार लहसुन का भंडारण सही न होने की वजह से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। हमारे देश में लहसुन का सबसे अधिक उत्पदान महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में होता है। लहसुन की फसल 130 से 180 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। पौधों कीपत्तियाँ पीली पड़ने पर सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए। इसके कुछ दिन बाद लहसुन की खुदाई कर लेनी चाहिए। लहसुन एक ऐसी फसल है, जिसका अगर सही तरीके से भंडारण किया जाए तो ये 7 से 8 महीने तक सही रह सकती है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, लहसुन का भंडारण कैसे किया जाए? कौन सी विधि है सबसे कारगर और सस्ती? आइए आपको बताते हैं इस लेख में।

क्यों ज़रूरी है लहसुन का भंडारण?
आपको शायद लगता होगा कि लहसुन जल्दी खराब नहीं होता है, लेकिन ऐसा नहीं है। फसल काटने के बाद अगर इसे सही तरीके से स्टोर नहीं किया जाए तो लहसुन में ब्लू मोल्ड रॉट, बल्ब (प्रकंद) को नुकसान, एस्परजिलस रॉट, फ्यूसेरियम रॉट, ड्राइ रॉट और ग्रे मोल्ड रॉट जैसे रोग लग सकते हैं। इनमें से ब्लू मोल्ड रॉट रोग लगने के कारण सबसे ज़्यादा लहसुन खराब होता है। इसके अलावा, सड़न और फंगस भी लग जाता है।

कम लागत में लहसुन का भंडारण(Low Cost Garlic Storage Technique)
आमतौर पर देखा गया है कि सामान्य कमरे में लहसुन रख देने पर 43-50 प्रतिशत तक लहसुन के कंद खराब हो जाते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना ‘लहसुन उत्कृष्टता केंद्र’ परियोजना के तहत कृषि विज्ञान केंद्र, अंटा, बारां ने कम लागत वाला लहसुन भंडारण गृह विकसित किया है। इस भंडारण गृह को बनाने में एक लाख रुपये का खर्चा आएगा। इसे बनाने में बांस का इस्तेमाल किया गया है। ये लहसुन का भंडारण गृह अन्य तकनीकों के मुकाबले सस्ता और आसान है।
सीमेंट फर्श पर बांस की छड़ से बनाए गए इस लहसुन भंडारण गृह का ढांचा 15 फ़ीट चौड़ा, 30 फ़ीट लम्बा और 12 फ़ीट ऊंचा आकार का होता है। इस संरचना की ख़ासियत यह है कि इसमें 10 टन तक लहसुन रखा जा सकता है।

लहसुन भंडारण संरचना की ख़ासियत
भंडारण की इस तकनीक में लहसुन को पौधों के साथ रखा जाता है। इसको लंब समय तक रखने के लिए कमरे में हवा की उचित व्यवस्था की जाती है। इससे लहसुन के कंद खराब नहीं होते हैं और बीज के रूप में इनका इस्तेमाल करने पर लहसुन की कली की उपज क्षमता भी बढ़ती है। भंडारण के लिए लहसुन के कंद को पौधों के साथ ही रखा जाता है, जिसकी लंबाई करीब 3 फ़ीट तक की होती है, क्योंकि इस तरह से रखने पर लहसुन जल्दी खराब नहीं होते हैं। लहसुन के ढ़ेर की ऊँचाई तीन फीट तक ही रखनी चाहिए। लहसुन के लंबे जीवन के लिए भंडारण गृह में भंडारण का ये सबसे प्रभावी तरीका बताया गया है।

लहसुन भंडारण की उन्नत तकनीक ने पहुंचाया फ़ायदा
किसान पहले पारंपरिक तरीके से 7 से 8 फ़ीट तक की ऊंचाई तक लहसुन के ढ़ेर रखते थे। इससे करीबन 34 फ़ीसदी तक फसल को नुकसान पहुंचता था, लेकिन तीन फ़ीट तक की ऊंचाई में फसल नुकसान का प्रतिशत 3.4 फ़ीसदी पर गिरकर आ गया। यह लहसुन भंडारण संरचना राजस्थान के कई क्षेत्रों में लहसुन उत्पादकों के लिए मॉडल यूनिट्स में से एक बन गई है।

यहाँ से लें इस तकनीक के बारे में और जानकारी
कृषि विज्ञान केंद्र, अंटा, बारां की कम लागत वाली मॉडल संरचना को ज़िले के कई किसानों ने अपनाया है। मदाना खीरी गाँव को क्षेत्र में लहसुन भंडारण गाँव घोषित किया गया है। इस तकनीक के बारे में और विस्तार से जानने के लिए आप कृषि विज्ञान केंद्र बारां जाकर या 07457 – 244862 पर फोन करके संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा, [email protected], [email protected] पर मेल भेजकर जानकारी ले सकते हैं।
लहसुन की खेती (Garlic Farming in India)
लहसुन की खेती के लिए बहुत गर्मी और बहुत सर्दी दोनों ही मौसम उपयुक्त नहीं है। इसलिए इसकी बुवाई अक्टूबर-नवंबर में की जाती है। इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी भी ज़रूरी है। इसकी नियमित सिंचाई भी ज़रूरी है। हल्की सिंचाई की जानी चाहिए ताकि पानी खेत में भरे नहीं। आमतौर पर लहसुन की फसल 130-180 दिनों में तैयार हो जाती है। फसल की कटाई के बाद लहसुन की कलियों को 3-4 दिन छाया में सुखाना चाहिए, उसके बाद ही लहसुन का भंडारण करना चाहिए।
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