जैव या जैविक उर्वरक अथवा बायो फर्टिलाइजर को जीवाणु खाद भी कहते हैं। इनके इस्तेमाल से मिट्टी का उपजाऊपन बढ़ता है और सूक्ष्म जीवों की सेहत तथा पर्यावरण पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन ध्यान रहे कि वैज्ञानिकों ने बायो फर्टिलाइजर्स को रासायनिक उर्वरकों का विकल्प नहीं, बल्कि पूरक माना है। इससे रासायनिक खादों के, विशेष रूप से नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की करीब 15 से 25 प्रतिशत ज़रूरत की भरपायी होती है तथा रासायनिक खाद पर निर्भरता घटने से खेती की लागत में कमी आती है।
क्या है जीवाणु खाद की भूमिका?
बायो फर्टिलाइजर ऐसे उर्वरक हैं, जिसमें बैक्टीरिया और वायरस जैसे सूक्ष्मजीव जीवित अवस्था में मौजूद होते हैं। इन सूक्ष्मजीवियों को प्रकृति ने वायुमंडल में मौजूद नाइट्रोजन को सोखकर अमोनिया के रूप में मिट्टी और फसलों में पहुँचाने के लिए बनाया है। इस तरह बायो फर्टिलाइजर के जीवाणु पूरी तरह से प्राकृतिक होते हैं और अक्सर मिट्टी में पाये भी जाते हैं। अलबत्ता, जब इसे खेतों में अतिरिक्त मात्रा के रूप में डाला जाता है तो वहाँ मौजूद जीवाणुओं का घनत्व काफ़ी बढ़ जाता है।
जीवाणु खाद के सूक्ष्मजीवी मिट्टी में पहले से मौजूद अघुलनशील फॉस्फोरस और अन्य पोषक तत्वों को घुलनशील अवस्था में बदल देते हैं ताकि पौधे या फसल उन्हें आसानी से हासिल कर सकें। इसके प्रभाव से बीजों का अंकुरण जल्दी होता है। पौधों की टहनियों की संख्या में बढ़ोतरी होती है। फूल और फल जल्दी निकलते हैं और पोषक तत्वों से भरपूर बनते हैं। इस तरह उपज बढ़िया मिलती है और किसान की कमाई बढ़ती है।

आसान और सुरक्षित है जैविक खाद का इस्तेमाल
खेती के लिए जैविक उर्वरक का इस्तेमाल न सिर्फ़ आसान और सुरक्षित है बल्कि खेती के बेहतर भविष्य के लिए कहीं ज़्यादा उपयोगी है, क्योंकि इसका प्रभाव मिट्टी में लम्बे समय तक रहता है। इससे खेत, पानी, पर्यावरण और स्वास्थ्य, सभी को फ़ायदा होता है। बायो फर्टिलाइजर से मिट्टी में पाये जाने वाले कार्बनिक पदार्थों की भी भौतिक और रासायनिक दशा यानी उसकी क्षारीयता में भी सुधार होता है। इनके इस्तेमाल से फ़सल की पैदावार में 10 से 15 प्रतिशत तक वृद्धि होती है। तिलहनी फ़सलों में तो पैदावार के अलावा उपज में पाये जाने वाले तेल में भी वृद्धि होती है।
हम सभी जानते हैं कि रासायनिक खाद के लगातार और असंतुलित प्रयोग से हमारी खेती योग्य ज़मीन और पर्यावरण पर काफ़ी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मिट्टी में जीवांश की मात्रा घटने से उसकी उपजाऊ शक्ति लगातार घटती चली गयी है। हमारे जलाशयों और ज़मीन का पानी दूषित हुआ है। बायो फर्टिलाइजर के इस्तेमाल से इन सभी चुनौतियों को काफ़ी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। इसीलिए वैज्ञानिकों ने प्रकृतिक रूप से पाये जाने वाले ऐसे जीवाणुओं की पहचान करके उनसे अनेक पर्यावरण हितैषी जैव उर्वरक तैयार किये हैं।
जैव उर्वरक की किस्में
- राइजोबियम: ये ऐसा जैविक उर्वरक है जो सभी तिलहनी और दलहनी फ़सलों के लिए वरदान की भूमिका निभाता है, क्योंकि ये इसके पौधों की जड़ों में सहजीवी के रूप में बसेरा करके उनके लिए नाइट्रोजन की सप्लाई करते हैं। राइजोबियम को बीजों के साथ मिलाने के बाद बुआई करने पर जीवाणु जड़ों में प्रवेश करके छोटी-छोटी गाँठें बना लेते हैं। इन गाँठों में जीवाणु बहुत ज़्यादा मात्रा में रहते हुए, प्राकृतिक नाइट्रोजन को वायुमंडल से ग्रहण और रूपान्तरित करके पौधों को पोषक तत्व मुहैया करवाते हैं। इसीलिए दलहनी और तिलहनी फसलों जैसे चना, मूँग, उड़द, अरहर, मटर, सोयाबीन, सेम, मसूर और मूँगफली आदि के पौधों की जितनी ज़्यादा गाँठें होती हैं, उनका पौधा उतना ज़्यादा स्वस्थ होता है और अधिक पैदावार देते है।
- एजोटोबैक्टर: एजोटोबैक्टर, मिट्टी और जड़ों की सतह में स्वछन्द या मुक्त रूप से रहते हुए वायुमंडलीय नाइट्रोजन को पोषक तत्वों में परिवर्तित करके पौधों को उपलब्ध करवाता है। एजोटोबैक्टर का इस्तेमाल सभी गैर दलहनी फसलों के लिए किया जाता है।
- एजोस्पिरिलम: बैक्टीरिया और नीलहरित शैवाल जैसे कुछ सूक्ष्मजीवों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन का उपयोग करने और फ़सली पौधों को इसमें मौजूद पोषक तत्वों को उपलब्ध करवाने की क्षमता होती है। यह खाद मक्का, जौ, जई और ज्वार की चारा वाली फ़सलों के लिए बहुत उपयोगी होती है। इसके प्रयोग से फ़सल उत्पादन में 5 से 20 प्रतिशत तक वृद्धि होती है। जबकि बाजरा की पैदावार 30 फ़ीसदी तक और चारा वाली फ़सलों की उत्पादन क्षमता 50 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।
- नीले और हरे शैवाल: चावल के लिए जैव उर्वरक के रूप में नीले-हरे शैवाल का उपयोग बहुत ही लाभदायक है। चावल के लिए यह नाइट्रोजन और पोषक तत्वों का भंडार है। यह मिट्टी की क्षारीयता को भी कम करने में मदद करता है। इसे इस्तेमाल से करीब 25 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन या 50 से 60 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की बचत कर सकते हैं।
ये भी पढ़ें नील हरित शैवाल (Blue-Green Algae): जैविक खाद के उत्पादकों के लिए उपज और कमाई बढ़ाने का शानदार विकल्प
- माइकोराइजा: यह संवहनी पौधों की जड़ों के साथ कवक का सह-सम्भव संयोजन है। यह फॉस्फोरस को तेज़ी से पौधों को उपलब्ध करवाने में सहयोगी है। यह फल वाली फ़सलों के लिए पैदावार में बहुत फ़ायदेमन्द है जैसे-पपीता।
- फॉस्फोरस विलायक जीवाणु: ये मिट्टी के अन्दर की अघुलनशील फॉस्फोरस को घुलनशील फॉस्फोरस में परिवर्तित करके पौधों को उपलब्ध करवाता है। इसका उपयोग सभी फ़सलों में किया जा सकता है। इससे मिट्टी में पाये जाने वाले फॉस्फोरस की कमी पूरी होती है।

जैव उर्वरकों का इस्तेमाल कैसे करें?
बीज उपचार विधि: एक लीटर पानी में लगभग 100 से 110 ग्राम गुड़ के साथ जैव उर्वरक अच्छी तरह मिलाकर घोल बना लें। इसको 20 किलोग्राम बीज पर अच्छी तरह छिड़ककर बीजों पर इसकी परत बना दें। इसके बाद बीजों को छायादार जगह पर सुखा लें। जब बीज अच्छे से सूख जाएँ उसके तुरन्त बाद बिजाई कर दें।
कन्द उपचार विधि: गन्ना, आलू, अरबी और अदरक जैसी फ़सलों में बायो फर्टिलाइजर के प्रयोग के लिए कन्दों को उपचारित किया जाता है। एक किलोग्राम एजोटोबैक्टर और एक किलोग्राम फॉस्फोरस विलायक जीवाणु का 25 से 30 लीटर पानी में घोल तैयार कर लें। इसके बाद कन्दों को 10 से 15 मिनट घोल में डुबो दें और फिर निकालकर रोपाई कर दें।
पौध जड़ उपचार विधि: सब्जी वाली फ़सलें, जिनके पौधों की रोपाई की जाती है जैसे टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी और प्याज़ इत्यादि फसलों में पौधों की जड़ों को जैव उर्वरकों के ज़रिये उपचारित किया जाता है। इसके लिए चौड़ा और खुला बर्तन लें। अब इसमें 6 से 8 लीटर पानी लें, एक किलोग्राम एजोटोबैक्टर और एक किलोग्राम फॉस्फोरस विलायक जीवाणु को क़रीब 250 से 300 ग्राम गुड़ मिलाकर घोल बना लें। इसके बाद पौधों को उखाड़कर उसकी जड़ें साफ़ कर लें और 70 से 100 पौधों के बंडल बना लें। अब उनको जैव उर्वरक के घोल में 10 से 15 मिनट के लिए डुबो दें और निकालकर तुरन्त रोपाई करें।
मिट्टी उपचार विधि: 5 से 10 किलोग्राम बायो फर्टिलाइजर फ़सल के अनुसार, 80 से 100 किलोग्राम मिट्टी या कम्पोस्ट खाद का मिश्रण करके 10 से 12 घंटे के लिए छोड़ दें। इसके बाद अन्तिम जुताई के वक़्त खेत में मिला दें।
जैव उर्वरकों के इस्तेमाल में सावधानियाँ
बायो फर्टिलाइजर के विशेषज्ञों के अनुसार, जैव उर्वरक ख़रीदते समय उर्वरक का नाम, उसका इस्तेमाल किन-किन फ़सलों में किया जा सकता है और इसके इस्तेमाल के लिए क्या अन्तिम तारीख़ तय की गयी है, इन बातों का अवश्य ख़्याल रखना चाहिए। इस बात का भी ख़ास ध्यान रखा जाना चाहिए कि बायो फर्टिलाइजर को हमेशा छायादार स्थान पर ही रखा जाए, क्योंकि धूप से इसकी गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। जैव उर्वरक का इस्तेमाल उसकी ‘एक्सपायरी डेट’ के बाद हर्ग़िज़ नहीं करना चाहिए। फ़सल के अनुसार ही जैव उर्वरक का चयन करें, नहीं तो उत्पादन प्रभावित हो सकता है। फ़सल और कम्पनी के मापदंडों के अनुसार ही जैविक खाद की मात्रा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- Spice Farming In Uttar Pradesh : मसाला की खेती से बढ़ाएं अपनी आमदनी, पाएं 20,000 रुपये प्रति हेक्टेयर अनुदान!उत्तर प्रदेश के अमेठी ज़िले के किसानों के लिए मसाला की खेती (Spice Farming In Uttar Pradesh) एक सुनहरा अवसर लेकर आई है। सरकार की एक ख़ास स्कीम के तहत किसानों को न सिर्फ आर्थिक मदद दी जा रही है, बल्कि उन्हें लाभदायक खेती के गुर भी सिखाए जा रहे हैं।
- Sustainable farming के लिए स्वस्थ मिट्टी और नैनोटेक्नोलॉजी का इस्तेमाल क्यों है ज़रूरी? बता रहे हैं जाने-माने वैज्ञानिक डॉक्टर विष्णु डी. राजपूतडॉ. विष्णु डी. राजपूत ने नैनोटेक्नोलॉजी के ज़रिए कृषि में नई दिशा दी है, जिससे फ़सल की गुणवत्ता और मिट्टी की सेहत में सुधार हुआ है।
- प्राकृतिक खेती अपनाकर शोभा देवी ने अपनाई स्वस्थ जीवन शैली और पाया बीमारियों से छुटकाराप्राकृतिक खेती के ज़रिए शोभा देवी ने न सिर्फ़ अपने परिवार की सेहत सुधारी, बल्कि अच्छी आमदनी भी हासिल की।
- बिहार के पूर्णिया में पशुपालकों के लिए वरदान: देश की तकनीक से बनी ‘Sex Sorted Semen Facility’ का उद्घाटनप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने 15 सितंबर को पूर्णिया स्थित एक अत्याधुनिक सीमन स्टेशन पर ‘Sex Sorted Semen Facility’ (लिंग-चयनित वीर्य सुविधा) का उद्घाटन किया। ये न केवल बिहार बल्कि पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत की पहली ऐसी सुविधा है, जिसे ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भावना के तहत स्वदेशी तकनीक ‘Gausort’ से लैस किया गया है।
- Rabi Campaign 2025: पूसा सम्मेलन में तय हुई रबी की रणनीति, अब भारत बनेगा दुनिया की Food Basketनई दिल्ली स्थित पूसा में 15 से 16 सिंतंबर से चल रहे दो दिवसीय ‘राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन-रबी अभियान 2025’ (‘National Agriculture Conference – Rabi Campaign 2025’) कृषि क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत का संकेत दे रहा है।
- India’s Dairy Revolution: NDDB में महाशक्तिशाली सांड़ ‘वृषभ’ का जन्म, सुपर बुल और Genomic Selection से तकनीक का चमत्कारराष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (National Dairy Development Board) ने हाल ही में देश के पहले ‘Super Bull’ यानी महाशक्तिशाली सांड़ ‘वृषभ’ के जन्म की घोषणा की है। ये कोई आम सांड़ नहीं है, बल्कि अत्याधुनिक जीनोमिक चयन (Genomic Selection) और इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन–एंब्रियो ट्रांसफर (IVF-ET) तकनीक का चमत्कार है।
- प्राकृतिक खेती से गांव में नई पहचान बना रहे हैं हिमाचल के रहने वाले रोहित सापड़ियाप्राकृतिक खेती अपनाकर रोहित सापड़िया ने कैसे अपनी ज़िंदगी बदली, ख़र्च कम किया और दूसरों को भी खेती की ओर प्रेरित किया, जानिए।
- Rabi Abhiyan 2025: ‘एक राष्ट्र-एक कृषि-एक टीम’ के संकल्प के साथ तैयार होगा New Action Planदिल्ली में 2 दिवसीय ‘राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन-रबी अभियान 2025’ (Two-day ‘National Agriculture Conference – Rabi Abhiyan 2025’) का आगाज़ हो गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में हो रहे इस सम्मेलन का उद्देश्य न सिर्फ आगामी रबी सीज़न 2025-26 के उत्पादन लक्ष्यों को तय करना है, बल्कि Integrated Strategy के ज़रिए देश के किसानों की आमदनी बढ़ाना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए स्ट्रैटजी बनानी है।
- खुशबू और सफलता की नई कहानी: सीमैप की ‘Kharif Mint Technology’ ने बदल दी मेंथा की खेती का नक्शाCentral Institute of Medicinal and Aromatic Plants (सीमैप – CIMAP), लखनऊ के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी क्रांतिकारी टेक्नोलॉजी डेवलप की है जो मेंथा की खेती के पुराने नियमों को ही बदल देती है।
- AI-Based Weather Forecasting: AI की बदौलत बारिश की हर बूंद का अंदाजा! अब नहीं होगी मेहनत बेकार, मिलेगा अगले 4 हफ्ते का पूरा प्लानभारत सरकार ने कृषि क्षेत्र में एक ऐतिहासिक और दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रोग्राम शुरू किया है- एआई-आधारित मौसम पूर्वानुमान (AI-based weather forecasting)। ये सिर्फ एक टेक्नोलॉजी प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि करोड़ों किसानों की जिंदगी बदलने का एक ज़रिया है।
- रजीना देवी की सफलता की कहानी प्राकृतिक खेती से मिली नई राहरजीना देवी की प्रेरणादायक सफलता कहानी, जहां प्राकृतिक खेती ने कम लागत और अधिक लाभ से उन्हें नई पहचान दिलाई।
- European Union ने भारतीय मत्स्य निर्यात के लिए खोले नए द्वार, 102 और फर्मों को मिली मंज़ूरीयूरोपीय संघ (European Union) दुनिया के सबसे बड़े और सबसे सख्त मानकों वाले आयात बाजारों में से एक है। उसके खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता के मानक (Food safety and quality standards) काफी हाई हैं। ऐसे में, 102 नई यूनिट्स का मंजूरी पाना इस बात का प्रमाण है कि India’s export control mechanism (एक्सपोर्ट इंस्पेक्शन काउंसिल – EIC) कितना मजबूत और भरोसेमंद है।
- Mushroom Production Training से सहरसा की महिलाएं लिख रहीं आत्मनिर्भरता की कहानी, दे रहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूतीबिहार के सहरसा ज़िले (Saharsa district of Bihar) अगवानपुर के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) में आयोजित चार दिवसीय मशरूम प्रोडक्शन ट्रेनिंग (Mushroom production training) ने न सिर्फ महिलाओं को एक नई राह दिखाई है, बल्कि उन्हें ‘आत्मनिर्भर भारत’ की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया है।
- हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने किसानों के लिए विकसित की गेहूं की नई क़िस्म WH 1309गेहूं की नई क़िस्म WH 1309 पछेती बिजाई के लिए वरदान है, अधिक पैदावार और रोगरोधी गुणों के साथ किसानों को देगा स्थिर लाभ।
- Role of Technology in Agriculture: कृषि में प्रौद्योगिकी की भूमिका से बदल रहा है भारतीय खेती का भविष्यकृषि में प्रौद्योगिकी की भूमिका किसानों की आय, पैदावार और आत्मनिर्भरता बढ़ा रही है। जिससे भारत में खेती-किसानी की तस्वीर बदल रही है।
- Rangeen Machhli App: ICAR का ‘रंगीन मछली’ ऐप जो दे रहा सजावटी मत्स्य पालन और आजीविका के अवसरों को बढ़ावाRangeen Machhli App सिर्फ एक साधारण जानकारी देने वाला टूल नहीं है, बल्कि ये मछली पालन के शौकीनों (hobbyists), किसानों और बिजनेसमैन के लिए एक पूरी गाइड है। आइए जानते हैं इसकी ख़ास बातें।
- सफ़ेद चादर-सा काशी फूल: झारखंड की संस्कृति और जीवन से जुड़ी अनोखी पहचानझारखंड की संस्कृति और जीवन से जुड़ा काशी फूल शरद ऋतु का प्रतीक है। यह फूल आजीविका और धार्मिक महत्व दोनों में अहम भूमिका निभाता है।
- National Gopal Ratna Award 2025: देश के डेयरी किसानों और तकनीशियनों का सर्वोच्च सम्मान, जानिए कैसे करें अप्लाईराष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार 2025 (National Gopal Ratna Award 2025) देश के डेयरी किसानों, सहकारी समितियों और तकनीशियनों (Dairy farmers, co-operatives and technicians) के लिए एक शानदार अवसर है। ये न केवल एक Prestigious honors और Financial Aid प्रदान करता है, बल्कि देश के Dairy Sector में वैज्ञानिक और टिकाऊ तरीकों को अपनाने के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन भी है।
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के 5 साल, क्या कहते हैं मछली पालन से जुड़े ताज़ा आंकड़े?प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना: ब्लू इकोनॉमी की ताकत, तकनीक और रोजगार से बदल रहा है भारत का मत्स्य क्षेत्र।
- सरस आजीविका मेला 2025: Vocal for Local और ग्रामीण आजीविका का संगम 22 सितंबर तक22 सितंबर तक दिल्ली में आयोजित सरस आजीविका मेला 2025, लखपति दीदियों और ग्रामीण महिलाओं के उत्पाद, संस्कृति, वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत का उत्सव है।