सर्दियों में कड़ाके की ठंडक वाले दिनों में किसानों को पाला के रूप में एक ऐसी प्राकृतिक आपदा का मुक़ाबला करना पड़ता है, जिससे बचाव ख़ासा मुश्किल होता है। फ़सलों पर पाला पड़ना बेहद घातक होता है। दरअसल, जब वायुमंडल का तापमान 4 डिग्री सेल्सियस से कम होते हुए ज़ीरो डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है तो पाला पड़ता है। लेकिन यदि कृषि वैज्ञानिकों की सलाह को सही वक़्त पर और ठीक से अमल में लाया जाए तो पाला के प्रकोप को असाध्य मुसीबत बनने से रोका जा सकता है।
वैसे तो पाला कोई रोग नहीं बल्कि सिर्फ़ एक प्राकृतिक अवस्था और मौसमी मार है। लेकिन फ़सलों, सब्जियों, फूलों और फलों के उत्पादन पर पाला के प्रकोप का असर किसी भयंकर बीमारी से कम नहीं होता। पाला की वजह से रबी की सब्जियों और पपीता तथा केला जैसे फलदार पौधों को 80 से 90 प्रतिशत, दलहनी फ़सलों को 60 से 70 प्रतिशत तथा गेहूँ और जौ जैसे अनाज वाली फ़सलों को 10 से 15 प्रतिशत तक नुकसान हो जाता है।
पाला की वैज्ञानिक व्याख्या
4 डिग्री सेल्सियम के तापमान पर पानी जमने लगता है और अपने सबसे ऊपरी अणुओं के ज़रिये ऐसा उष्मारोधी कवच तैयार करता है जिससे उसके भीतरी अणु अपने द्रव स्वरूप को क़ायम रख पाते हैं। 4 डिग्री सेल्सियस से तापमान जितना गिरता है, उतना ज़्यादा पानी के बाहरी अणु ख़ुद को लगातार सख़्त से सख़्त बनाते रहते हैं। पानी के इसी अद्भुत गुण की वजह से जब झीलें जम जाती हैं तब भी उसके जलीय प्राणी जीवित रह पाते हैं। लेकिन अपनी सूक्ष्म मात्रा की वजह से ओस की नन्हीं बूँदों में अणुओं की मात्रा इतनी ज़्यादा नहीं होती कि वो फ़सलों के लिए उष्मारोधी कवच बना सकें। इसीलिए पाला, फ़सलों के लिए प्रकोप बन जाता है।
पाला पड़ने के लक्षण
पाला पड़ने वाले दिनों का मुक़ाबला करने के लिए उत्तर भारत के उन इलाकों के किसानों को बेहद तैयारी और सतर्कता की ज़रूरत पड़ती है, जहाँ रात का तापमान गिरकर शून्य डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुँच जाता है। दक्षिण के प्रायद्वीपीय इलाकों में किसानों का वास्ता पाला से नहीं पड़ता क्योंकि वहाँ ओस की बूँदों को जमाने वाली सीमा तक तापमान नहीं गिरता है। उत्तर भारत में आमतौर पर पाला पड़ने की आशंका वाला मौसम दिसम्बर के मध्य से लेकर जनवरी के मध्य तक होता है।
इस दौरान आसमान साफ़ रहता है, हवा तक़रीबन नहीं चल रही होती है और दिन हो या रात का तापमान बहुत कम हो जाता है। दिन में सूर्य की गर्मी से धरती जितना गर्म होती है वो सारी गर्मी भी विकिरण के ज़रिये वापस ज़मीन से वातावरण में स्थानान्तरित हो जाती है। इसीलिए रात में ज़मीन का तापमान ज़ीरो डिग्री सेल्सियस से भी नीचे गिर जाता है। ऐसी अवस्था में वातावरण में मौजूद नमी या ओस की नन्हीं-नन्हीं बूँदें जमकर बर्फ़ या हिम कणों में परिवर्तित हो जाती हैं। हिम-कणों के रूप धारण करने वाली ओस ही पाला कहलाती है।
पाले का फ़सलों पर प्रभाव
पाला की वजह से पौधों की कोशिकाओं के अन्दर और बाहर मौजूद पानी सिकुड़कर जमने लगता है। इससे कोशिकाएँ फट जाती हैं। कोशिकाओं की झिल्लियों में जो फॉस्फोलिपिड होते हैं वो ठोस कण बन जाते हैं। इससे झिल्लियों में बहाव रुक जाता है। कोशिकाओं के मर जाने से पौधों पर रोगाणुओं तथा कीटाणुओं का हमला अधिक होता है। पाले से कोमल टहनियाँ नष्ट हो जाती हैं। इसका अधिकतम दुष्प्रभाव पत्तियों और फूलों पर पड़ता है। अधपके फल सिकुड़ जाते हैं और पत्तियों तथा बालियों में दाने नहीं बनते। इससे उनके भार में कमी आ जाती है।
पाला से होती है पूर्ण तबाही
पाले से प्रभावित फ़सलों का हरा रंग समाप्त हो जाता है और वो सफ़ेद पड़ने लगते हैं। पौधों की पत्तियाँ, फूल और फल सब मुर्झा जाते हैं। फलों और दानों के ऊपर धब्बे नज़र आते हैं तथा फ़सलों का स्वाद भी ख़राब हो जाता है। सब्जियों में इसका दुष्परिणाम उन पौधों पर ज़्यादा होता है जो ज़मीन के काफ़ी नज़दीक लगती हैं। पाला के प्रकोप से पौधों में परोलिन नामक अमीनो अम्ल हार्मोन की मात्रा बहुत बढ़ जाती है और उनकी वृद्धि रुक जाती है।
कम तापमान के कारण पौधों में एन्जाइम की क्रियाएँ भी प्रभावित होती हैं। इससे प्रकाश संश्लेषण यानी पोषण के लिए अपना भोजन बनाने, साँस लेने तथा विकसित होने की प्रक्रियाएँ भी सुस्त पड़ जाती हैं और अन्ततः पौधे या तो मरने लगते हैं या फिर अपने जीवन को बचाने के लिए उन्हें बेहद संघर्ष करना पड़ता है। पाले के साथ पौधों के इस संघर्ष का भारी प्रभाव उनकी उस पैदावार पर भी पड़ता है जिसके लिए किसान फ़सल लगाते हैं या खेती करते हैं।
क्या है काला और सफ़ेद पाला?
पाला की प्रकृति भी दो तरह की होती है। काला पाला उस अवस्था को कहते हैं जब ज़मीन के पास हवा का तापमान बिना पानी के जमे ज़ीरो डिग्री सेल्सियस से कम हो जाता है। वायुमंडल में नमी इतनी कम हो जाती है कि ओस का बनना रुक जाता है। ये पानी के जमने को रोकता है। दूसरी ओर, सफ़ेद पाले का दशा में वायुमंडल में तापमान ज़ीरो डिग्री सेल्सियस से कम हो जाता है और उसकी नमी यानी ओस ज़्यादा ठंडक की वजह से बर्फ़ या हिम कमों के रूप में बदल जाती है। फ़सलों या खेती-बाड़ी के लिए सफ़ेद पाले की अवस्था सबसे ज़्यादा हानिकारक और घातक होती है। इसीलिए यदि पाला के प्रकोप वाले दिनों की अवधि ज़्यादा दिनों तक रहती है तो खड़ी फ़सल के पौधे मर भी जाते हैं।
कैसे करें पाले से फ़सल का बचाव?
पाले से फ़सल को बचाने के लिए किसी भी तरह से वायुमंडल के तापमान को ज़ीरो डिग्री सेल्सियस से ऊपर बनाये रखना ज़रूरी हो जाता है। इसके लिए अनेक परम्परागत, आधुनिक और रासायनिक तरक़ीबों को अपनाना चाहिए। पाला से होने वाले नुकसान के मुक़ाबले ये तरीके इस्तेमाल में आसान और बहुत कम खर्चीले हैं।
1. खेतों की सिंचाई
जब भी पाला पड़ने की आशंका हो या मौसम विभाग से पाले की चेतावनी दी गयी हो तो फ़सल को हल्की सिंचाई देनी चाहिए। इससे तापमान ज़ीरो डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फ़सलों को पाले के प्रकोप से बचाया जा सकता है। फ़व्वारा विधि से सिंचाई वाले खेतों को लेकर ख़ास ध्यान रखना चाहिए कि स्प्रिंक्लर को सूर्योदय तक लगातार चलाया जाए वर्ना यदि सुबह 4 बजे तक स्प्रिंक्लर को बन्द कर देंगे तो सूर्योदय से पहले ही फ़सल पर ओस की बूँदें जमकर पाला बन जाएँगी। इससे फ़ायदे की अपेक्षा नुकसान अधिक होता है।
2. पौधे को ढककर
नर्सरी के कोमल पौधों को पाले से सबसे अधिक नुकसान होता है, इसीलिए उन्हें रात में प्लास्टिक की चादर से ढकने की सलाह दी जाती है, क्योंकि प्लास्टिक के अन्दर का तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है। इससे ओस की बूँदें जमाव बिन्दु तक नहीं पहुँच पातीं और पौधे पाले से बच जाते हैं। नर्सरी पर छप्पर डालकर भी पौधों को पाले से बचाया जा सकता है।
प्लास्टिक की चादर वाली तकनीक कुछ महँगी पड़ती है। इसीलिए बड़े खेतों में इसका इस्तेमाल करना मुश्किल होता है। पुआल के छप्पर से भी पौधों को ढका जा सकता है। लेकिन ढकते समय ख़ास ध्यान रखें कि पौधों का दक्षिण-पूर्वी भाग खुला रहे, ताकि पौधों को सुबह और दोपहर को धूप मिलने में कोई कमी नहीं रहे। पुआल का प्रयोग दिसम्बर से फरवरी तक करें। मार्च आते ही इसे हटा दें।
3. खेत के पास धुआँ करके
गाँवों में खेतों-खलिहानों में कृषि पैदावार के अपशिष्ट पदार्थ के रूप में पुआल, गोबर, पौधों की जड़ें, बाजरे की तुड़ी जैसी अनेक चीज़ें बची रहती हैं। जब भी पाला पड़ने की आशंका नज़र आये तो रात में इन्हीं अपशिष्टों को जलाकर धुआँ पैदा करें। इस धुएँ से ज़मीन की उस गर्मी का सरंक्षण होता है जो विकिरण से नष्ट हो जाती है। इस तरह तापमान जमाव बिन्दु तक नहीं गिर पाता और पाले से सुरक्षा मिल जाती है।
4. वायुरोधक से शीतलहर की रोकथाम
पाले से बचाव के लिए खेत के चारों ओर मेड़ों पर पेड़ों और झाड़ियों की बाड़ लगाने से भी फ़ायदा होता है। इससे शीतलहरी हवाओं का प्रवाह घटता है। पेड़ों और झाड़ियों की बाड़ की ऊँचाई जितनी ज़्यादा होगी, शीतलहर से सुरक्षा भी उसी के अनुपात में बढ़ जाएगी। यदि खेत के चारों ओर मेड़ पर पेड़ों और झाड़ियों की आड़ खड़ा करना सम्भव नहीं हो, तो कम से कम उत्तर-पश्चिम दिशा में ज़रूर इसकी कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि शीतलहर का दिशा यही होती है। पेड़ की ऊँचाई के चार गुना दूरी तक जिधर से शीतलहर आ रही है और पेड़ की ऊँचाई के 25-30 गुना दूरी तक जिधर शीतलहर की हवा जा रही है, यदि इस हिसाब से खेत की बाड़बन्दी हो सके तो पाले से फ़सल सुरक्षित रहती है।
5. पाला अवरोधी फ़सलें उगाना
जिन इलाकों में पाला पड़ने की आशंका ज़्यादा हो वहाँ चुकन्दर, गाजर, गेहूँ, मूली, जौ इत्यादि फ़सलें बोने से पाले का प्रभाव कम पड़ेगा। पाले से प्रभावित होने वाली फ़सलों की अवरोधी किस्मों की बुआई करने से भी काफ़ी राहत रहती है। जैसे- आलू की कुफरी शीतमान, सिन्दूरी और कुफरी देवा, मटर की BL-1, BL-3 आदि प्रजातियों की बुआई करने से पाला से होने वाली क्षति से बचाव होता है।
6. खेत में बालू मिलाकर
खेतों में कुछ वर्षों के अन्तराल पर बालू मिला देने से भी फ़सल का पाले से बचाव हो सकता है, क्योंकि बलुई मिट्टी वाली सतह धूप में जल्दी गर्म होती है तथा इसकी गर्मी भी लम्बी अवधि तक बनी रहती है। इसी गुण की वजह से पाले से कुछ हद तक लड़ने में बालू सहायक साबित होता है।
7. हीटर से
सब्जी या फलदार पौधों की दो पंक्तियों के बीच या मेड़ों के आसपास हीटर लगाकर भी पाले के प्रभाव को कम किया जा सकता है। हीटर की गर्मी से मिट्टी और पौधों के आसपास का तापमान बढ़ जाता है और इसकी गर्मी से मिट्टी की ऊपरी सतह पर धुएँ की दीवार सी बन जाती है जो मिट्टी की गर्मी को देर तक बनाये रखती है। लेकिन ये विधि ख़ासी महँगी और अव्यावहारिक भी साबित हो सकती है क्योंकि इसके लिए सही वक़्त पर पर्याप्त बिजली का उपलब्ध होना मुश्किल हो सकता है।
8. समय से बुआई
पाले से फ़सलों को बचाने का सबसे उपयुक्त तरीका सस्य क्रियाओं (crop operations) में हेर-फेर करना है। पाला अधिकतर फ़सलों में फूल आने की अवस्था पर पड़ता है। अतः प्रभावित क्षेत्रों में फ़सल की बुआई समय से पहले करना बहुत उपयोगी साबित होता है। फलदार पेड़ों और तालाबों तथा जलाशयों के नज़दीक वाली फ़सलों पर भी पाले का असर कम पड़ता है।
9. रासायनिक तरीके से पाले का मुक़ाबला
बारानी फ़सल में जब पाला पड़ने की आशंका हो तो फ़सल पर व्यावसायिक गन्धक के तेज़ाब का 0.1 प्रतिशत (10 मिलीमीटर रसायन 100 लीटर पानी में घोल का छिड़काव इस प्रकार करें, जिससे पौधे पूरी तरह से भींग जाएँ। इससे पाले के अलावा पौधों की रोगों से लड़ने की क्षमता में भी वृद्धि होती है और फ़सलें अपेक्षाकृत जल्दी पकती हैं। गन्धक के तेज़ाब के छिड़काव से गेहूँ, चना, सरसों, आलू और मटर आदि को भी पाले से बचाया जा सकता है। तेज़ाब के घोल के छिड़काव से फ़सल के आसपास के वातावरण का तापमान बढ़ जाता है और पाले से बचाव हो जाता है।
10. डाई मिथाइल सल्फो-ऑक्साइड (DMSO) का छिड़काव
डाई मिथाइल सल्फो-ऑक्साइड (DMSO) पौधों से पानी बाहर निकालने की क्षमता में बढ़ोतरी करता है। इससे उनकी कोशिकाओं में मौजूद पानी जमने नहीं पाता, उनकी दीवारें नहीं फटतीं और पौधा सूखता नहीं है। इस रसायन का छिड़काव पाले की आशंका होने पर 75-100 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोलकर करना चाहिए। ज़रूरत दिखे तो पहले छिड़काव के 10-15 दिनों बाद DMSO का एक और छिड़काव भी किया जा सकता है।
11. ग्लूकोज का छिड़काव
फ़सल पर ग्लूकोज के छिड़काव से पौधों की कोशिकाओं में घुलनशील पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है। इससे तापमान गिरने पर भी कोशिकाओं की सामान्य कार्य पद्धति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है और फ़सल पाले के प्रकोप से बच जाती है। साधारणत: एक किलोग्राम ग्लूकोज प्रति हेक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर फूल आने की अवस्था में छिड़काव करना चाहिए। ज़रूरत के अनुसार, 10-15 दिनों बाद इसी घोल का पुनः छिड़काव भी किया जा सकता है।
12. साइकोसिल का छिड़काव
साइकोसिल के छिड़काव से पौधों की बढ़वार रुक जाती है। लेकिन फ़सलों पर पाले के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके लिए फ़सलों और सब्जियों में फूल आने की अवस्था पर 0.03 प्रतिशत साइकोसिल रसायन का छिड़काव करना चाहिए।
ये भी पढ़ें- Trichoderma: जानिए पौधों के सुरक्षा-कवच ‘ट्राइकोडर्मा’ के घरेलू उत्पादन और इस्तेमाल का तरीका
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- बरेली के युवा किसान आयुष गंगवार बने जैविक खेती में नई सोच: सफ़लता की कहानी और जानकारीबरेली के आयुष गंगवार ने अपनी पारंपरिक खेती छोड़कर जैविक खेती की शुरुआत की। उन्होंने सरकारी योजनाओं और स्थानीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों का लाभ उठाया।
- Carrot Seeds: गाजर के साथ ही गाजर के बीज उत्पादन से होगा किसानों को डबल फ़ायदा?जसपाल हर साल गाजर की खेती करते हैं और आखिर में गाजर के बीज का उत्पादन भी कर लेते हैं जिससे लगभग 100 किलोग्राम बीज तैयार होता है।
- अक्टूबर माह में कब और कहां हो रहा है Kisan Mela और कहां मिलेगा रबी फसलों के उन्नत किस्मों का बीजदेश के अलग-अलग कृषि संस्थाओं ने अपने आस पास के कृषि मौसम के मिज़ाज को देखते हुए किसान मेले (Kisan Mela) की डेट जारी कर दी हैं। संचार के अलग अलग माध्यमों से किसानों तक किसान मेले का निमंत्रण पहुंचा रहा है, ये इसलिए भी किया जा रहा है ताकी ज्यादा से ज्यादा किसान अपने… Read more: अक्टूबर माह में कब और कहां हो रहा है Kisan Mela और कहां मिलेगा रबी फसलों के उन्नत किस्मों का बीज
- Ginger processing: अदरक प्रसंस्करण की स्वदेशी तकनीक अपनाकर किसान कर रहे लाखों की कमाईहिमालय की तलहटी में बसा है कलसी ब्लॉक जो उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मौजूद है। ये पूरा इलाका लगभग 270 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यहां पर होने वाले अदरक प्रसंस्करण ने कलसी ब्लॉक दूसरे इलाकों से काफी आगे बढ़ा दिया है। जिससे यहां की अर्थव्यवस्था मज़बूत हुई है। अदरक प्रसंस्करण की स्वदेशी… Read more: Ginger processing: अदरक प्रसंस्करण की स्वदेशी तकनीक अपनाकर किसान कर रहे लाखों की कमाई
- जानिए कैसे बनी पप्पामल अम्मा जैविक खेती की महागुरु,109 साल की उम्र में निधनपद्मश्री से सम्मानित तमिलनाडु की किसान पप्पामल (रंगम्मल) का 109 वर्ष की आयु में निधन हो गया। पीएम मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।
- गहत की खेती: उत्तराखंड में गहत की फसल बनी ब्रांड, भारत समेत वैश्विक रूप से बढ़ी मांगभारत में एक बहुमूल्य फसल का उत्पादन होता है जो अपनी परम्परागत तरीके के लिए भी जानी जाती है। इसका नाम गहत (Horse gram Farming) है जो देव भूमि उत्तराखंड में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण फसल है। भारत में गहत की फसल का इतिहास काफी पुराना है। दुनियाभर में कुल 240 प्रजातियों में से… Read more: गहत की खेती: उत्तराखंड में गहत की फसल बनी ब्रांड, भारत समेत वैश्विक रूप से बढ़ी मांग
- मिर्च की जैविक खेती: सिक्किम के लेप्चा समुदाय ने पारंपरिक खेती से लिखी सफलता की कहानीहिमालय के दिल में बसा है सिक्किम और यहां के द्ज़ोंगू क्षेत्र के देसी लेप्चा समुदाय जो काफी लंबे वक्त से पारंपरिक जैविक खेती (Organic Farming) करता आ रहा है। ये लोग केमिकल फ्री, बारिश पर आधारित मिश्रित खेती को करते हैं जो उनकी सांस्कृतिक विरासत को गहराई से दिखाता है। लेप्चा समुदाय इस क्षेत्र… Read more: मिर्च की जैविक खेती: सिक्किम के लेप्चा समुदाय ने पारंपरिक खेती से लिखी सफलता की कहानी
- Success Story of CFLD on Oilseed: सरसों की नई किस्म से विजेंद्र सिंह खेती में लाए क्रांतिविजेंद्र सिंह का एक मामूली किसान से लेकर ज़िले में फेमस कृषि (Success Story of CFLD on Oilseed) में नयापन लाने का सफ़र किसी प्रेरणा से कम नहीं है। 1972 में फिरोजाबाद के टूंडला में टी.बी.बी सिंह इंटर कॉलेज से अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने अपने परिवार का भरण-पोषण करने… Read more: Success Story of CFLD on Oilseed: सरसों की नई किस्म से विजेंद्र सिंह खेती में लाए क्रांति
- गहत की खेती: उत्तराखंड की पौष्टिक दाल और इसके फ़ायदेजानें पहाड़ी इलाकों में गहत की खेती के फ़ायदे, पोषण मूल्य और इसके अनोखे गुण। गहत, एक पौष्टिक दाल है और सेहत के लिए बेहद फ़ायदेमंद होती है।
- टिड्डी प्रबंधन: सबसे खतरनाक रेगिस्तानी टिड्डियों से कैसे करें फसलों का बचाव?भारत में पाई जाने वाली रेगिस्तानी टिड्डी सबसे ज़्यादा खतरनाक होती है। इनका झुंड जब खेतों, हरे-भरे घास के मैदानों में आता है और ज़्यादा विनाशकारी रूप ले लेता है।
- रबी सीज़न 2024-25 के लिए फॉस्फेटिक और पोटैसिक उर्वरकों पर सब्सिडी, किसानों को क्या लाभ?केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि रबी सत्र में ₹24,475 करोड़ की उर्वरक सब्सिडी से किसानों की लागत कम होगी और आय बढ़ेगी।
- किसानों के लिए बनी ‘पीएम-आशा’ योजना में शामिल किए गए 4 मुख्य घटक‘पीएम-आशा’ योजना से मूल्य को नियंत्रित करने में मदद मिल पाएगी। इस मद में 15वें वित्त आयोग के दौरान 2025-26 तक कुल वित्तीय व्यय 35 हजार करोड़ रुपये होगा।
- National Bamboo Mission: देश के किसानों के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन, जानिए योजना, सब्सिडी और लाभों के बारें मेंभारत सरकार के राष्ट्रीय बांस मिशन योजना (National Bamboo Mission) के अंतर्गत किसानों को बांस की खेती के लिए 50 हजार रुपये की सब्सिडी मिलती है।
- World Food India 2024: वर्ल्ड फ़ूड इंडिया 2024 का काउंटडाउन शुरू, फ़ूड इनोवेशन का ग्लोबल मंचभारत में मेगा फ़ूड इवेंट- वर्ल्ड फ़ूड इंडिया 2024 (World Food India 2024) होने जा रहा है। ये इवेंट राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 19 से 22 सितंबर तक आयोजित किया जाएगा।
- कृषि में मकड़ियों का महत्व: कीट प्रबंधन और जैविक खेती में उनका योगदानमकड़ियां कभी भी फ़सलों को नुकसान नहीं पहुंचाती है बल्कि कृषि में मकड़ियों का महत्व होता है। साथ ही मकड़ियां पर्यावरण के स्वास्थ्य के सूचक भी होती हैं।
- Uses Of Moringa In Fish Farming: मछली पालन आहार में मोरिंगा का उपयोग है फ़ायदेमंदमछली पालन आहार में मोरिंगा का उपयोग मछलियों के लिए एक तरह का सुपरफूड है। यह मछलियों को बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है।
- Milky Mushroom Farming Success Story: दूधिया मशरूम की खेती में सफलता कैसे मिली इस किसान को, पढ़िए कहानीBCT कृषि विज्ञान केंद्र, हरिपुरम के STRY Program द्वारा कालापूरेड्डी गणेश को दूधिया मशरूम की खेती को अपनी आमदनी का मुख्य तरीका बनाने का हौसला मिला।
- Maize Cultivation Methods: जानिए मक्का की खेती के तरीकेवैज्ञानिकों ने मक्का की खेती के कई नए तरीके खोजे हैं जिनसे कम मेहनत में ज़्यादा फ़सल मिल सकती है और इन नए तरीकों से किसान कम ख़र्च में ज़्यादा मक्का उगा सकते हैं।
- Integrated Aquaculture Poultry Goat Farming System: एकीकृत जल कृषि पोल्ट्री बकरी पालन प्रणाली से कमाएं मुनाफ़ाएकीकृत जल कृषि पोल्ट्री बकरी पालन एक ऐसा तरीक़ा है जिसमें मछली पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन और खेती करना सभी कार्य एक साथ किए जाते हैं।
- 7 कृषि योजनाओं को मंज़ूरी, करीब 14 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च करेगी सरकारप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला किया गया है कि सरकार किसानों पर 14 हजार करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है।