शकरकन्द की उन्नत खेती | शकरकन्द के स्वाद में मौजूद मिठास की वजह से आम धारणा है कि उसमें शर्करा भरपूर होती है जबकि वैज्ञानिक तथ्य इसके बिल्कुल विपरीत हैं। सच्चाई ये है कि शकरकन्द में स्टार्च की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है। इसकी वजह से ही इसका स्वाद ख़ूब मीठा होता है। शकरकन्द को पोषक तत्वों का ख़ज़ाना माना जाता है, इसीलिए परम्परागत तौर पर उपवास के दिनों में इसका फलहार की तरह सेवन किया जाता है। शकरकन्द को वैसे तो पूरे भारत में उगाया जाता है, लेकिन इसकी खेती के लिए 21 से 26 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है।
शकरकन्द उत्पादक देशों की सूची में भारत का छठा स्थान है। लेकिन भारत में शकरकन्द की उत्पादकता दर ख़ासी कम है। इसीलिए भारत में शकरकन्द की उन्नत खेती में उन्नत कृषि तकनीकों को अपनाना बेहद ज़रूरी है। देश के असिंचित क्षेत्रों में जहाँ शकरकन्द का औसत उत्पादन 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रहता है, वहीं सिंचित इलाकों में 200 से 260 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज मिलती है।

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शीतोष्ण तथा समशीतोष्ण जलवायु वाले इलाकों जैसे ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में इसकी खेती सबसे ज़्यादा होती है। सालाना 75 से 150 सेंटीमीटर बारिश वाले इलाकों को शकरकन्द की खेती के लिए बेहतरीन माना गया है। अच्छी जल निकासी वाली दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी वाले खेतों को शकरकन्द की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। ऐसे खेती की मिट्टी का pH मान 5.8 से 6.7 होना चाहिए।
शकरकन्द की उन्नत किस्में
ICAR-केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान (ICAR-Central Institute for Arid Horticulture) के विशेषज्ञों के अनुसार, शकरकन्द की उन्नत किस्मों के नाम हैं – पूसा सफ़ेद, पूसा रेड, राजेन्द्र शकरकन्द 51, पूसा सुहावनी, नम्बर 4004, S-30, S-35, S-43, वर्षा, कोंकण, अश्वनी, श्री बन्दिनी, श्री नन्दनी और किरण आदि।
खेत की तैयारी
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करते हैं। इसके बाद दो-तीन जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करके मिट्टी को भुरभुरा और खेत को समतल बना लेना चाहिए। अन्तिम जुताई से पहले खेत में 170 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सड़े गोबर की खाद मिला देने से पैदावार बढ़िया मिलती है।
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शकरकन्द के बीजों की कटिंग
शकरकन्द की खेती में इसके कन्द की कटिंग करके रोपाई की जाती है। बीज-दर की बात करें तो एक हेक्टेयर में शकरकन्द की रोपाई के लिए 40 से 45 हज़ार कटिंग या बीज के टुकड़ों को पर्याप्त माना गया है। कन्द की प्रत्येक कटिंग में कम से कम 3 से 4 गाँठें होनी आवश्यक हैं। रोपाई के वक़्त कटिंग की लम्बाई 25 से 30 सेंटीमीटर रखते हैं। कटिंग को 8 से 10 मिनट के लिए बोरेक्स 2.5 प्रतिशत के घोल में रखने के बाद सुखाना चाहिए और फिर बुआई करनी चाहिए। इस प्रक्रिया से शकरकन्द का बीजोपचार हो जाता है।
शकरदन्द की रोपाई की विधि
शकरकन्द की कटिंग की रोपाई समतल जगह के अलावा मेड़ों पर भी हो सकती है। इसकी कटिंग से नर्सरी में मई से लेकर जून-जुलाई तक पौधे तैयार करना चाहिए। और, अगस्त-सितम्बर में इससे खेतों मेंरोपाई करते हैं। कटिंग की रोपाई के वक़्त कतार से कतार की दूरी दो फ़ीट और पौधे से पौधे के बीच की दूरी को एक फ़ीट रखते हुए मिट्टी की सतह से क़रीब 3 से 4 इंच नीचे यानी 6 से 8 सेंटीमीटर की गहराई रोपना चाहिए।
शकरकन्द की फ़सल में सिंचाई
शकरकन्द की कटिंग की रोपाई के बाद यदि खेत में नमी कम हो तो 5 से 7 दिनों बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए। यदि वर्षा कम हो रही हो तो आवश्यकतानुसार 10 से 12 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
शकरकन्द की फ़सल में रोग नियंत्रण
शकरकन्द की फ़सल में लीफ़ स्पॉट, ब्लैक रॉट और सॉफ़्ट रॉट रोग लगते हैं। लीफ़ स्पॉट का नियंत्रण डाइथेन M-45 अथवा डाइथेन Z-78 की एक ग्राम मात्रा का एक लीटर पानी में घोलकर बनाकर छिड़काव से किया जाता है। ब्लैक रॉट के नियंत्रण के लिए टीवर को मर्क्यूरिक क्लोराइड या बोरेक्स 2.5 प्रतिशत से शोधित करके नर्सरी तैयार करनी चाहिए।

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शकरकन्द के पोषक तत्व
(प्रति 100 ग्राम में) |
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तत्व | मात्रा |
कैलोरी | 86 प्रतिशत |
जल | 77 प्रतिशत |
प्रोटीन | 16 ग्राम |
कार्बोहाइड्रेट | 20.1 ग्राम |
शर्करा | 4.2 ग्राम |
रेशे | 3 ग्राम |
वसा | 0.1 ग्राम |
सन्तृप्त वसा | 0.02 ग्राम |
ओमेगा 6 | 0.01 ग्राम |
शकरकन्द की फ़सल में कीट नियंत्रण
शकरकन्द में स्वीट पोटेटो वीविल या सूंडी और स्वीट पोटेटो, स्पैनक्स या कैटरपिलर कीट लगते हैं। वीविल के नियंत्रण के लिए थायोडान-35 EC की 2 मिलीलीटर मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर या कार्बोरिल की 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। कैटरपिलर के नियंत्रण के लिए 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में लेड आर्सिनेट का घोलकर बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
शकरकन्द के खेत में निराई-गुड़ाई
शकरकन्द की रोपाई के 20 से 25 दिनों बाद पहली निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। साथ ही पौधों पर मिट्टी भी चढ़ानी चाहिए। इसके बाद भी आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करके खेत को खरपतवार से मुक़्त रखना बेहद फ़ायदेमन्द साबित होता है। शकरकन्द की बेल की पलटाई भी दो-तीन बार ज़रूर करना चाहिए, ताकि फ़सल का कन्द तन्दरुस्त बन सके और पैदावार ज़्यादा मिले।
शकरकन्द की कटाई
शकरकन्द की अलग-अलग किस्मों के अनुसार, जब बेलों की पत्तियाँ पीली पड़ने लगें तो समझना चाहिए कि फ़सल खुदाई के लिए तैयार हो गयी है। कटाई के वक़्त पहले खेत की सतह पर फैली लताओं यानी वाइन को काटकर अलग कर देना चाहिए। इसके बाद कन्द यानी ट्यूबर को प्राप्त करने के लिए खुदाई करना चाहिए। वाइन की कटिंग के 4 से 6 दिन पहले खेत में पानी लगा देना चाहिए, ताकि खुदाई के समय मिट्टी मुलायम रहे और कन्द (ट्यूबर) कटने नहीं पाये। इससे उपज की गुणवत्ता बेहतर बनी रहती है। कटाई के बाद उपज को दो-चार दिन धूप में सुखाने के बाद ही बाज़ार में बेचने के लिए भेजना चाहिए।
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