कहते हैं समाज को बदलने के लिए एक व्यक्ति की कोशिश ही काफ़ी होती है। ऐसी ही नेक सोच के साथ राजस्थान के कोटपूतली जिले के रहने वाले कैलाश चौधरी ने अपने क्षेत्र में काम किया। 6 दशक यानी पिछले 60 साल से कैलाश चौधरी खेती कर रहे हैं। वक़्त के साथ खेती में हुए आधुनिकीकरण को उन्होंने बखूबी देखा है। जहां पहले ऊंट और बैल से खेती होती थी, कैलाश चौधरी के देखते-देखते अब ट्रैक्टर और कई मशीनों ने उनकी जगह ले ली है। किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता पंकज शुक्ला, कैलाश चौधरी से मिलने सीधा उनके गाँव पहुंचे।
कैलाश चौधरी ने खेती से जुड़े कई पहलुओं के बारे में हमें बताया। इस लेख में आगे आप जानेंगे कि कैसे शून्य से शुरुआत कर आज कैलाश चौधरी ने सफलता पाई है। खेती से जुड़ा उनका लगाव और सफ़र आज भी उसी गर्मजोशी के साथ बदस्तूर जारी है। आज की तारीख में वो आंवले की खेती के मार्केटिंग गुरु भी कहलाए जाते हैं।
अपने गाँव के विकास के लिए किया काम
कैलाश चौधरी को शुरू से ही खेती में कुछ अलग करने की रुचि थी। साल 1977 में कैलाश चौधरी अपने गाँव कीरतपुरा के ग्राम प्रधान थे। उस दौरान गाँव में एक कमेटी का गठन हुआ, जिसके वो अध्यक्ष बने। ये वो दौर था जब कैलाश चौधरी ने अपने क्षेत्र के किसानों की उन्नति के लिए कमेटी सदस्यों के साथ मिलकर एक फैसला लिया। उन्होंने सभी गाँव वालों की सहमति से पूरे गाँव की चकबंदी करा दी।
क्या होती है चकबंदी?
आपको आसान भाषा में बतायें तो मान लीजिए अगर किसी किसान के छोटे-छोटे खेत, अलग-अलग जगह पर हैं, तो उनके अलग-अलग खेतों के आकार के आधार पर उन्हें किसी एक जगह पर उतनी हो भूमि देना चकबंदी कहलाता है। इस तरह से किसान के बिखरे हुए खेतों को एक जगह पर करने की प्रक्रिया को चकबंदी कहा जाता है।
गाँव में कृषि क्षेत्र में आया आंदोलन
1980 आते-आते सबके खेतों में बिजली कनेक्शन डलवाए। एक दिन में ही 25-25 बिजली कनेक्शन लगे। ट्यूबवेल भी लगवाए। उस दशक में उनके गाँव में कृषि क्षेत्र में एक आंदोलन का दौर आया। पैदावार में 5 गुना की बढ़ोतरी हुई।
सामने आने लगे थे रासायनिक खेती के दुष्परिणाम
1993-94 में तहसील में कृषि विज्ञान केंद्र खुला। वहां कैलाश चौधरी जाते रहते थे। वैज्ञानिकों से सलाह लेते रहते थे। उस वक़्त विदेशों में जैविक खेती की चर्चा शुरू हो गई थी। रासायनिक खेती के दुष्परिणाम सामने आने लगे थे। किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में कैलाश चौधरी ने बताया कि उस वक़्त कनाडा में गेहूं का उत्पादन गिर गया था। वहां की कृषि योग्य भूमि सख्त होती जा रही थी। इस कारण वहां पानी की ज़रूरत ज़्यादा हो गई।
कैलाश चौधरी कहते हैं कि भारत में भी अधिक पैदावार के लिए हरित क्रांति पर ज़ोर दिया जा रहा था, लेकिन केमिकल युक्त खेती होने के नकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे थे। इस संकट से कैसे निपटा जाए, इसके लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क किया। वैज्ञानिकों ने उन्हें बताया कि कृषि कचरे के इस्तेमाल से इस समस्या का हल निकाला जा सकता है।
कृषि विज्ञान केंद्र ने किया पूरा सहयोग
वैज्ञानिकों ने कैलाश चौधरी को सलाह दी कि फसल कटाई के बाद जो कचरा बचता है, उससे कंपोस्ट तैयार किया जा सकता है। उस कंपोस्ट को खेत में इस्तेमाल में लाएं। रासायनिक खाद के इस्तेमाल को कम कर, कचरे के कंपोस्ट के उपयोग को बढ़ा दें। इससे फसल फिर से अच्छी होना शुरू हो जाएगी। पानी भी कम लगेगा और ज़मीन भी नरम रहेगी। ज़मीन की पानी सोखने की क्षमता बढ़ेगी। कैलाश चौधरी ने वैज्ञानिकों की इस सलाह पर 1994 से काम करना शुरू कर दिया। तब से लेकर अब तक वो पूरी तरह से जैविक खेती कर रहे हैं।
कैलाश चौधरी बताते हैं कि कृषि विज्ञान केंद्र से ही उन्होंने जैविक खेती के सारे गुर सीखे। जैविक खाद और दवाई बनाने से लेकर कंपोस्ट बनाना सीखा। नीम और धतूरे से कीटनाशक बनाने का तरीका सीखा। देसी गाय के गौमूत्र और गोबर का इस्तेमाल जैविक खेती में कैसे किया जाता है, इसके बारे में भी कृषि विज्ञान केंद्र ने ट्रेनिंग दी।
शुरुआत में आंवले की खेती में हुआ नुकसान
कैलाश चौधरी बताते हैं कि जब कृषि विज्ञान केंद्र ने बागवानी को इस पूरे क्षेत्र में बढ़ावा दिया तो 1998 में उन्हें भी आंवले के 40 पेड़ दिए गए। क्षेत्र के एक-एक किसान को 40 पेड़ बांटे गए। इस तरह से कैलाश चौधरी और उनके भाई को आंवले के 80 पेड़ मिले। इन पेड़ों को फ़ार्म में लगाया और इनका पालन-पोषण करना शुरू कर दिया। उस वक़्त उन्हें और उनके भाई को आंवले की खेती से जुड़ी कोई जानकारी नहीं थी। कृषि विज्ञान केंद्र ने पूरा सहयोग दिया।
तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद पेड़ में फल आना शुरू हुए। 2002 आते-आते उत्पादन बढ़ने लगा तो उनके छोटे भाई आंवले की उपज लेकर मंडी पहुंच गए। वहां कोई खरीदार नहीं मिला। उन्होंने आंवले के कट्टे को एक आढ़ती के घर रखवा दिया। तीन से चार दिन बीत गए। कोई खरीदार नहीं मिलने की वजह से आंवले, कट्टे में रखे-रखे सड़ गए। उनमें फंगस लग गया।
गाँव में नहीं था आंवले का बाज़ार, फिर पहुंचे जयपुर
आंवले की खेती से मुनाफ़े के उलट फसल को पहुंचे नुकसान से दुःखी होकर कैलाश चौधरी कृषि विज्ञान केंद्र पहुंचे। उन्होंने वैज्ञानिकों से कहा कि आपने एक ऐसी फसल की खेती के लिए क्यों बोला, जिसमें एक रुपया भी जेब में नहीं आता। कृषि विज्ञान केंद्र में उनकी मुलाकात उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के रहने वाले एक वैज्ञानिक से हुई। उस वैज्ञानिक ने बताया कि आंवले की खेती किसानों के लिए कई मायनों में अच्छी है। इससे कई उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। उस वैज्ञानिक ने उन्हें प्रतापगढ़ में सुल्तानपुर रोड पर स्थित गोंड़े गांव जाने की सलाह दी। कैलाश चौधरी ने बताया कि जब वो गाँव पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां महिलाएं खुद ही आंवले के कई उत्पाद तैयार कर रही हैं। हाथ से ही वो इन उत्पादों को तैयार करती थीं और फिर सड़क किनारे रेहड़ी लगाकर उनको बेचा जाता था।
महिलाओं के इस काम से कैलाश चौधरी को भी प्रेरणा मिली। कैलाश चौधरी प्रतापगढ़ से आंवले के उत्पाद के कई सैम्पल लेकर आए। उन्होंने घरवालों को खिलाया। सबको पसंद आया। इसके बाद 2002 से उन्होंने आंवले से कई प्रॉडक्ट्स बनाने की शुरुआत कर दी। इन्हें बेचने के लिए कोटपूतली में ही स्टॉल लगवाया। कैलाश चौधरी ने बताया कि उस दौरान कोटपूतली में आंवले के उत्पादों को बड़ा बाज़ार नहीं मिला। फिर वो 2003 में जयपुर स्थित पंत कृषि भवन पहुंचे। वहां बड़े अफ़सरों से मिले। उन्हें अपने प्रॉडक्ट्स के बारे में बताया। साथ ही बाज़ार नहीं होने की समस्या का भी ज़िक्र किया। सबसे पहले तो अफ़सरों ने कैलाश चौधरी को बधाई दी। उनका हौसला बढ़ाया। इसके बाद अफसरों ने उन्हें भवन में ही स्टॉल लगाने के लिए कहा। बगैर कोई पैसे खर्च किए, कोई लाइसेंस बनाये, उन्होंने अपने प्रॉडक्ट्स को बेचना शुरू कर दिया। प्रॉडक्ट्स बहुत तेज़ी से बिकने लगे। वैन में प्रॉडक्ट्स ले जाते और लंच तक बेचकर आ जाते। इससे कैलाश चौधरी का मनोबल बड़ा।
ऐसे बने मार्केटिंग गुरु
1990 का ज़िक्र करते हुए कैलाश चौधरी बताते हैं कि उस समय उनके खेत में 600 से 700 क्विंटल अनाज होता था। उस समय वो मुख्य रूप से गेहूं की खेती करते थे। अनाज को सही बाज़ार नहीं मिलता था। मंडी में सरकारी खरीद में कई दिन लगते थे। 400 से 450 रुपये प्रति क्विंटल का भाव था। एक दिन उन्होंने किसी अखबार में पढ़ा कि जयपुर का एक किसान अपने अनाज को एक ब्रांड के ज़रिए 600 से 700 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेच रहा है। उन्होंने सोचा हम भी क्यों न यही गेहूं बोयें, जो इतना महंगा बिक रहा है। उन्हें लगा शायद इस गेहूं के बीज अलग होंगे। वो बीज लेने उस पते पर जयपुर चले गए। जब वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि गेहूं तो वही है, बस उसकी क्लीनिंग, ग्रेडिंग,पैकिंग और ब्रांडिंग की जा रही है। फिर इस गेहूं को वो किसान आस-पास की कॉलोनियों में बेचता था।
इसके बाद कैलाश चौधरी वापस गाँव आ गए और अपनी फसल को चौधरी ब्रांड के साथ जयपुर लेकर पहुंच गए। उन्होंने सबसे पहले ग्राहकों का विश्वास जीतने का काम किया। गुणवत्ता के साथ कोई समझौता नहीं किया। 40 किलो के एक कट्टे में 100 से 150 ग्राम उपज ज़्यादा ही डालते थे। कैलाश चौधरी बताते हैं कि हाथों-हाथ उनकी फसल नगद में पूरी बिक जाती थी। वो अपनी पारंपरिक पोशाक धोती-कुर्ता में ही अपनी फसल बेचने जाते थे। इससे उनकी फसल सेठों के मुकाबले पहले बिकती थी। ऐसा करके कैलाश चौधरी मार्केटिंग के गुरों को पूरी तरह समझने लगे । आंवले के प्रॉडक्ट्स की मार्केटिंग में में भी उनका यही अनुभव काम आया।
कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित
कैलाश चौधरी को कई बड़े पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है। उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब तक 100 से ज़्यादा पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है। कैलाश चौधरी किसान साथियों को सलाह देते हुए कहते हैं कि खेती से बड़ा और कोई काम नहीं है। इसमें अपार संभावनाएं हैं। खेती में हज़ारों विकल्प हैं। बागवानी, सब्जी की खेती, नर्सरी, पशुपालन, डेयरी उत्पाद, किसी भी क्षेत्र को अपनाकर उसमें कड़ी मेहनत से लग जायें, फिर उसमें सफ़ल होकर किसी अन्य खेती के विकल्प को भी चुन सकते हैं। इससे आमदनी के कई अवसर खुलेंगे।
ये भी पढ़ें- Millets Farming: मोटे अनाज की खेती को बीज और मार्केट के ज़रिए बढ़ावा दे रहा MEmillets
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
![मंडी भाव की जानकारी](https://www.kisanofindia.com/wp-content/uploads/2022/05/mandi728.webp)
ये भी पढ़ें:
- Equipments For Hydroponic Farming: जानिए हाइड्रोपोनिक खेती के उपकरणों के बारे मेंहाइड्रोपोनिक खेती के उपकरणों (Hydroponic Farming Equipments) में ग्रो लाइट्स, पंप, नली, पीएच मीटर, पोषक तत्व समाधान, ग्रो बेड्स, और कंटेनर शामिल होते हैं।
- Poultry Health Management: पोल्ट्री की देखभाल और प्रबंधन कैसे करें? जानिए कुछ प्रभावी टिप्सपोल्ट्री स्वास्थ्य प्रबंधन (Poultry Health Management) रोगों से बचाव, उत्पादकता बढ़ाने, गुणवत्ता सुधारने और आर्थिक नुकसान कम करने के लिए ज़रूरी है।
- Budget 2024: Agriculture Sector में सरकार की मुख्य घोषणाएं, कृषि क्षेत्र के बजट में बढ़ोतरीइस साल कृषि क्षेत्र के लिए बजट (Budget 2024) को बढ़ाकर 1.52 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। जानिए आम बजट 2024 में कृषि क्षेत्र के लिए मुख्य ऐलान।
- National Mango Day 2024: मल्लिका, आम्रपाली और प्रतिभा समेत पूसा की उन्नत आम की किस्मेंहमारे देश में लगभग 1500 से अधिक आम की किस्में (Mango Varieties) पाई जाती हैं, जो उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक फैली हुई हैं।
- Sheep Farming Tips: भेड़ों की देखभाल और प्रबंधन के उन्नत तरीकेभेड़ पालन में सफलता के लिए साफ-सुथरा और सुरक्षित आवास, पोषक आहार और नियमित टीकाकरण, ज़रूरी है। यहां हम भेड़ पालन के टिप्स (Sheep Farming Tips) शेयर कर रहे हैं।
- Tuber Crops Cultivation: जानिए कंद फसलों की खेती से जुड़ी जानकारी और कमाएं मुनाफ़ाकंद फसलों की खेती (Tuber Crops Cultivation), जैसे आलू और शकरकंद, किसानों के लिए लाभकारी है। ये पौष्टिक, उच्च मूल्य वाली और कम पानी की आवश्यकता वाली होती हैं।
- Nutritional Balance In Livestock Feed: पशुओं के लिए संतुलित आहार कैसा हो?पशुओं की खुराक में पोषण संतुलन (Nutritional Balance In Livestock Feed) उनकी सेहत, उत्पादकता, रोग प्रतिरोधकता और पशुपालकों के आर्थिक विकास के लिए ज़रूरी है।
- Millet Business Ideas: FPO OTLO के मिलेट्स व्यवसाय से जुड़े 4 हज़ार किसान और महिलाओं को रोज़गारबहुत से FPO और कंपनियां मिलेट्स व्यवसाय में उतरी हैं। प्रोसेसिंग कर मिलेट्स से ढेर सारी हेल्दी चीज़ें बना रही हैं, ऐसा ही एक FPO गुजरात के डांग ज़िले में काम कर रहा है।
- Balanced Diet For Livestock: जन्म से लेकर गर्भावस्था तक क्यों ज़रूरी पशुओं के लिए संतुलित आहार? जानिए हरविंदर सिंह सेपशुओं के लिए संतुलित आहार (Balanced Diet For Livestock) से पशुपालक न केवल लागत में कमी ला सकते हैं, बल्कि दूध का भी बंपर उत्पादन भी ले सकते हैं।
- Fish farming Practices: तालाब बनाने से लेकर मछलियों के बीज और बाज़ार भाव पर विनीत सिंह से बातमछली पालन में उन्नत प्रबंधन (Advanced Management in Fisheries) शामिल करता है: स्वच्छ जल और आहार प्रबंधन, रोग नियंत्रण, प्रौद्योगिकी उपयोग, और सरकारी योजनाएं।
- Live Fish Packing: भारत का पहली लाइव फ़िश यूनिट! वंदना का मंत्र, अच्छा दाना और भरपूर ऑक्सीजनलाइव फ़िश पैकिंग तकनीक (Live Fish Packing Technique) मछलियों को जीवित रखते हुए पैक और परिवहन करने की प्रक्रिया है, जिससे वो लंबे समय तक ताज़ी रह सकती हैं।
- जैविक खेती के तरीके: बागपत के इस किसान ने Multilayer Farming का बेहतरीन मॉडल अपनायाविनीत चौहान ने 5 साल पहले बागवानी की शुरुआत की। वो पूरी तरह से जैविक खेती के तरीके (Organic Farming Techniques) अपनाते हुए ऑर्गेनिक उत्पादन लेते हैं।
- Dragon Fruit Farming: ड्रैगन फ़्रूट फ़ार्मिंग में कितनी लागत और क्या है बाज़ार? जानें किसान सुनील सेड्रैगन फ़्रूट की खेती में लागत और लाभ की बात करें तो किसानों को पहला उत्पादन तीन से चार लाख रुपये का मिलता है। एक एकड़ से 4 से 5 टन का उत्पादन मिल जाता है।
- Vegetable Nursery Guide: सब्ज़ियों की नर्सरी कैसे तैयार कर सकते हैं? जानिए नसीर अहमद सेकिसान नसीर अहमद पिछले करीब 5-6 सालों से सब्ज़ियों की नर्सरी (Vegetable Nursery Business) का बिज़नेस कर रहे हैं। सब्ज़ियों की नर्सरी से जुड़ी कई अहम बातें उन्होंने बताईं।
- Barley Cultivation Variety: जौ की उपज दोगुनी करने वाली नयी किस्म है DWRB-219भारतीय गेहूं और जौ अनुसन्धान संस्थान ने जौ की उपज की DWRB-219 किस्म ईज़ाद की है, जिसकी पैदावार परम्परागत किस्मों के मुक़ाबले दोगुनी है।
- Allelochemical Weed Management: कपास की खेती में अंतरवर्तीय फसल प्रणाली से खरपतवार नियंत्रणकपास की फ़सल को खरपतवार से सुरक्षित रखने में अंतरवर्तीय फसल प्रणाली (Intercropping System) की तकनीक बेहद उपयोगी और किफ़ायती साबित होती है।
- यहां से लें Pearl Farming की ट्रेनिंग, आवेदन करने की ये है आखिरी तारीख़ICAR- Central Institute Of Freshwater Aquaculture, Bhubaneswar (CIFA) मीठे पानी में मोती पालन (Pearl Farming) के राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है।
- Drip Irrigation Technique: पानी और पैसा दोनों बचाएं ड्रिप इरिगेशन से, जानें टपक सिंचाई तकनीक के फ़ायदेड्रिप सिंचाई प्रणाली (Drip Irrigation System) एक अत्याधुनिक सिंचाई तकनीक है जो पानी की बचत और फसलों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में मदद करती है।
- Crop Rotation In Agriculture: जानिए क्यों अहम है खरीफ़ मौसम में उन्नत फ़सल चक्रखरीफ़ मौसम के दौरान कृषि में फ़सल चक्र (Crop rotation in agriculture) अपनाकर किसान अपने खेत को कई तरह की परेशानियों से बचाते हैं।
- खरीफ़ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) में कितनी हुई बढ़ोतरी?भारत सरकार अपने बफ़र स्टॉक या सार्वजनिक वितरण प्रणाली को बनाए रखने के लिए लगभग 23 फसलों के उपज को MSP पर खरीद करती है।