बदलते वक़्त के साथ किसान आधुनिक खेती का रूख कर रहे हैं। नयी तकनीकों को जानकर उन्हें अमल में ला रहे हैं और बंपर पैदावार हासिल कर रहे हैं। यही कारण है कि अब कृषि को भी व्यवसाय के तौर पर देखा जा रहा है।
किसान अगर खेती-बाड़ी के प्रति जागरूक होकर कृषि विभाग के सहयोग से आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करें तो वो अपने जीवन में एक सकारात्मक बदलाव ला सकता है। ऐसा ही कुछ किया मथुरा दास ने। मध्य प्रदेश के हरदा ज़िले में एक गाँव पड़ता है, जिसका नाम है चारखेड़ा। इस गाँव के रहने वाले किसान मथुरा दास के पास 40 एकड़ ज़मीन है। एक वक़्त था जब वो खरीफ़ सीज़न में अरहर और सोयाबीन, रबी सीज़न में गेहूं और चने की खेती किया करते थे।
मथुरा दास सीधे भंडारित किये गए बीजों की बुवाई किया करते थे। उन्होंने कभी भी खेती की उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल नहीं किया। उन्हें वैज्ञानिक तौर-तरीकों से फ़ार्म के प्रबंधन और रखरखाव के बारे में जानकारी का भी अभाव था। आधुनिक खेती के बारे में वो ज़्यादा कुछ नहीं जानते थे। उनकी सालाना आमदनी भी करीबन 5 लाख 57 हज़ार रुपये थी। परिवार बढ़ रहा था, ऐसे में आमदनी बढ़ाना भी ज़रूरी था। वो ऐसे विकल्पों की तलाश में थे, जो उनकी आय में बढ़ोतरी कर सकें।
विशेषज्ञों की सलाह पर शुरू किया काम
इसके लिए उन्होंने ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी (Rural Agriculture Extension Officer,RAEO) से मुलाकात की। RAEO की सलाह पर मथुरा दास ने कृषि विज्ञान केंद्र के विषय विशेषज्ञों से मुलाकात की। विशेषज्ञों ने उनके लिए वैज्ञानिक पद्धतियों के आधार पर कृषि योजना बनाई। उन्हें ज़रूरत के हिसाब से उच्च गुणवत्ता वाली कृषि सामग्रियों के इस्तेमाल करने की सलाह दी गई।
गन्ने की खेती से लेकर रेशम उत्पादन भी किया शुरू
आधुनिक खेती को अपनाते हुए गन्ने जैसी नकदी फसल और शहतूत की खेती के साथ रेशम उत्पादन इकाई स्थापित करने का सुझाव दिया गया। इन सुझावों पर अमल करते हुए मथुरा दास ने गन्ने की खेती के साथ-साथ रेशम कीट पालन भी शुरू कर दिया। मथुरा दास यहीं नहीं रुके। आधुनिक खेती के उन्नत तरीकों की सफलता को देखते हुए उन्होंने बीज उत्पादन भी शुरू कर दिया।
आमदनी हुई तीन गुने से भी ज़्यादा
आधुनिक खेती अपनाने से उत्पादन क्षमता भी बढ़ने लगी। सोयाबीन की उत्पादकता प्रति एकड़ 5 क्विंटल से बढ़कर 7.5 क्विंटल हो गई। गेहूं का भी उत्पादन बढ़ा। जहां पहले प्रति एकड़ 14 क्विंटल गेहूं होता था, अब वो बढ़कर 17.5 क्विंटल हो गया।
इसके अलावा, मथुरा दास ने प्रति एकड़ 110 क्विंटल बैंगन की उपज भी प्राप्त की। साथ ही रेशम उत्पादन से प्रति एकड़ के हिसाब से 40 हज़ार रुपये की आमदनी हुई। इस तरह से जहां पहले उनकी सालाना आय करीबन साढ़े 5 लाख रुपये थी। अब खेती की उन्नत तकनीकों और विविधीकरण को अपनाकर उनकी सालाना आमदनी करीबन 17.8 लाख रुपये हो गई है।
आधुनिक खेती से बढ़ी आमदनी तो हुआ आजीविका में सुधार
आज की तारीख में मथुरा दास खुशी से बताते हैं कि खेती ने उन्हें बहुत कुछ दिया है। उन्होंने एक नया ट्रैक्टर, तीन मोटरसाइकिल और नया घर खरीदा है। मथुरा दास वैज्ञानिक तकनीकों और फ़ार्म के अनुसार रणनीति तैयार करना, इसे ही अपनी सफलता की कुंजी मानते हैं। वो अपने साथी किसानों को सुझाव देते हैं कि आज के समय में फसल चक्र, फसल विविधीकरण और एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाना बहुत ज़रूरी है।
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